पूर्व आर्थिक सलाहकार-अरविंद सुब्रमण्यन ने भी अब कहा ‘नोटबंदी से विकास दर घटी’

Saturday, Dec 01, 2018 - 04:00 AM (IST)

8 नवम्बर, 2016 को केंद्र सरकार ने काला धन निकालने और नकली करंसी एवं आतंकवादियों की आय का स्रोत समाप्त करने के लिए अचानक 500 रुपए और 1000 रुपए के पुराने नोट बंद करके 500 और 2000 रुपए के नए नोट जारी कर दिए थे। नोटबंदी के पहले महीने में ही पैदा हुए धन के भारी अभाव के परिणामस्वरूप बैंकों के ए.टी.एम्स की कतारों में खड़े 100 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई तथा जाली करंसी के धंधे व आतंकवाद की घटनाओं में भी कमी नहीं आई। 

जहां शुरू से ही विरोधी दल नोटबंदी की आलोचना करते आ रहे हैं वहीं लोगों को नोटबंदी के लाभ बताने के लिए केंद्र सरकार द्वारा मनाई गई नोटबंदी की दूसरी वर्षगांठ के दौरान रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि नोटबंदी तथा जी.एस.टी. ने देश की प्रगति को रोका। इसी प्रकार ‘कृषि मंत्रालय’ से जुड़ी वित्तीय मामलों की स्थायी संसदीय समिति ने कहा कि नोटबंदी के चलते नकदी की कमी के कारण लाखों किसान रबी के सीजन में बुवाई के लिए बीज और खाद नहीं खरीद सके। अभी उक्त रिपोर्ट की स्याही सूखी भी नहीं थी कि अब केंद्र सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने नोटबंदी के फैसले के 2 वर्ष बाद इस मुद्दे पर अपनी चुप्पी तोड़ी है और नोटबंदी के निर्णय को ‘बड़ा भारी, क्रूर और मौद्रिक झटका’ (मॉनीटरी शॉक) करार देते हुए कहा है कि ‘‘500 रुपए और 1000 रुपए के पुराने नोटों को वापस लेने की घोषणा के कारण आॢथक वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा था।’’ 

4 वर्ष तक केंद्र सरकार में आर्थिक सलाहकार रहे श्री सुबह्मïण्यन ने कहा है कि ‘‘एक ही झटके में 86 प्रतिशत करंसी को वापस लेने का ऐलान कर दिया गया। इस फैसले से पहले ही आॢथक विकास की दर में जो सुस्ती आनी शुरू हो गई थी उसमें नोटबंदी के बाद और तेजी आ गई।’’ सुब्रह्मण्यन के अनुसार, ‘‘नोटबंदी मेरी समझ से परे एवं आधुनिक भारतीय इतिहास के सर्वाधिक विचित्र आॢथक प्रयोगों में से एक है। हाल ही के इतिहास में सामान्य दौर में किसी भी अन्य देश ने ऐसा नहीं किया।’’ उन्होंने बाजार में शीघ्र आ रही अपनी पुस्तक ‘आफ काऊंसिल : द चैलेंजेज ऑफ द मोदी-जेतली इकोनोमी’  में ‘द टू पजल्स आफ डिमोनेटाइजेशन-पोलीटिकल एंड इकोनोमिक’ शीर्षक से एक अध्याय इस विषय पर लिखा है। वह लिखते हैं, ‘‘नोटबंदी की पहली 6 तिमाही में जी.डी.पी. की औसत विकास दर 8 प्रतिशत थी तथा नोटबंदी के बाद यह आंकड़ा घटकर 6.8 प्रतिशत पर आ गया। पहली और बाद की चार तिमाही की तुलना करें तो यह दर क्रमश: 8.1 और 6.2 प्रतिशत रही। मुझे नहीं लगता कि कोई इस बात से असहमत होगा कि नोटबंदी के कारण विकास दर धीमी हुई।’’ 

श्री सुब्रमण्यन ने कहा ‘‘नोटबंदी का कल्याणकारी खर्चों, विशेष रूप से इन्फार्मल सैक्टर पर भारी प्रभाव पड़ा।’’ अलबत्ता वह इस विषय पर मौन रहे हैं कि नोटबंदी लागू करने से पूर्व उनसे विचार-विमर्श किया गया था या नहीं। इस संबंध में सरकार के आलोचकों का कहना है कि सरकार ने इस नाजुक मुद्दे पर श्री सुब्रमण्यन से विचार-विमर्श नहीं किया था। उनके अनुसार नोटबंदी का एक दिलचस्प पहलू यह कहा जा सकता है कि इसकी वजह से गरीबों ने अपनी कठिनाइयों को नजरअंदाज करना सीख लिया क्योंकि उन्हें लगा कि अमीर लोग तो उनसे भी ज्यादा परेशान हैं और उन्हें इस बात की तसल्ली थी कि अमीरों को हुए नुक्सान के सामने उनका नुक्सान तो कुछ भी नहीं है। सरकार द्वारा नोटबंदी के लाभ संबंधी दावों के बीच रघुराम राजन और ‘कृषि मंत्रालय’ के वित्तीय मामलों की स्थायी समिति के बाद अब पूर्व आॢथक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन द्वारा नोटबंदी की आलोचना से स्पष्टï है कि नोटबंदी लागू करने में कहीं न कहीं तो चूक हुई है जिससे यह अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने में असफल रही।—विजय कुमार 

Pardeep

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