खतरे में लग रही है अरविन्द केजरीवाल की कुर्सी

Sunday, Apr 30, 2017 - 01:19 AM (IST)

क्या अरविन्द केजरीवाल को नरेन्द्र मोदी पर व्यक्तिगत मारक टिप्पणियां करनी महंगी पड़ सकती हैं? कहते हैं मोदी के अतिप्रिय रणनीतिकार अमित शाह ने दिल्ली के लिए अपनी नई व्यूह रचना बना ली है और अगर सब कुछ इसी प्लॉन पर चला तो आने वाले कुछ महीनों में केजरीवाल के हाथ से दिल्ली की गद्दी जा सकती है। इस बात के संकेत भाजपा के दिल्ली प्रभारी श्याम जाजू के उस बयान से मिलते हैं जिसमें उन्होंने साफ  तौर पर कहा है कि अगले 3-4 महीनों में दिल्ली की सरकार गिर सकती है। 

राजौरी गार्डन उप चुनाव में करारी हार के बाद इस वक्त दिल्ली में ‘आप’ के पास 66 विधायक हैं, जिसमें से 3-4 तो पहले से मुकद्दमों में फंसे हुए हैं। 21 ‘आप’ विधायकों की सदस्यता को लेकर चुनाव आयोग का फैसला आने वाला है, अगर वे असंबद्ध घोषित किए जाते हैं, तो भाजपा से जुड़े सूत्रों का दावा है कि 15 अन्य ‘आप’ विधायक निरंतर उनके संपर्क में हैं। संपर्क सूत्र का कार्य कर रहे हैं स्वराज पार्टी के योगेन्द्र यादव और पार्टी से नाराज चल रहे कुमार विश्वास। कुछ ‘आप’ विधायक सीधे भाजपा के संपर्क में बताए जाते हैं। भाजपा सही मौके के इंतजार में है, केजरीवाल के इरादों व मंसूबों पर तब झाड़ू फेरने की तैयारी है जब आप की अंदरूनी कलह सतह पर आ जाएगी। 

ई.वी.एम. मुद्दे पर झाड़ू फिरेगी
कोई 2 दिन पूर्व केजरीवाल के कोर ग्रुप के 3 अहम सदस्य संजय सिंह, आशीष खेतान और आशुतोष केजरीवाल से मिलने उनके घर पहुंचे। साथ में पार्टी के असंतुष्ट माने जाने वाले कुमार विश्वास भी थे। दिल्ली के एम.सी.डी. चुनाव में पार्टी की करारी हार ने इन केजरीवाल करीबियों को अंदर तक हिला दिया था। इन चारों नेताओं ने समवेत स्वर में केजरीवाल से गुहार लगाई कि अब पार्टी को नकारात्मक राजनीति छोडऩी होगी। सूत्र बताते हैं कि इन नेताओं का स्पष्ट तौर पर मानना था कि अब ई.वी.एम. के मुद्दे को ठंडे बस्ते में डालना ही पार्टी के लिए श्रेयस्कर रहेगा। सूत्रों का यह भी दावा है कि कोर कमेटी की इस बैठक में कुमार विश्वास सबसे खुल कर बोले और एक तरह से उन्होंने अपने मन की पूरी भड़ास निकाली। 

विश्वास का भगवा रंग
आप के एक अहम स्तंभ कुमार विश्वास के भाजपा में शामिल होने की अटकलें तेज हो गई हैं। अभी एक रोज पूर्व इंडिया टुडे ग्रुप को दिए गए इंटरव्यू में कुमार विश्वास ने खुल कर अपने मन की बातें कहीं। सूत्र बताते हैं कि कुमार ने उसी दिन ‘आप’ छोडऩे का मन बना लिया था, जब पंजाब चुनाव के नतीजे आने के बाद उन्होंने एक शेयर ट्वीट किया था। केजरीवाल के निजी सहायक वैभव महेश्वरी ने इसका संज्ञान लेते हुए कुमार के खिलाफ सोशल मीडिया पर एक मुहिम छेड़ दी।

वैभव का कहना था कि यहां लोग जीत का श्रेय लेने तो आ जाते हैं, पर हार के समय मुंह छुपा लेते हैं। वैभव के इस ट्वीट के बाद केजरीवाल की पूरी ई-आर्मी सोशल मीडिया के सहारे कुमार पर टूट पड़ी, पर कुमार को बचाने के लिए तब भी केजरीवाल आगे नहीं आए। शाजिया इल्मी की तरह कुमार विश्वास ने भी पार्टी में रह कर भाजपा में जाने की जमीन तैयार कर ली। 

राज्यसभा और ‘आप’
अगर केजरीवाल के हाथों से दिल्ली की गद्दी जाती है तो उन्हें एक और करारा आघात सहने के लिए तैयार रहना होगा, अगले साल दिल्ली से राज्यसभा की 3 सीटें आप के खाते में आनी हैं, पहले इन तीनों सीटों के लिए प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव और कुमार विश्वास का दावा सबसे मजबूत था। समय बदला तो दिल्ली में ‘आप’ की राजनीति बदली, केजरीवाल के विश्वासी बदले, निष्ठाएं बदलीं और इस बदले परिदृश्य में राज्यसभा की इन तीनों सीटों के लिए लगभग चेहरे भी तय हो गए थे। ये त्रिमूर्ति थी संजय सिंह, आशीष खेतान और आशुतोष, पर जिस तरह से दिल्ली की राजनीति करवटें बदल रही है, यहां कुछ भी हो सकता है और दिल्ली से राज्यसभा की ये तीनों सीटें भाजपा के पाले में भी जा सकती हैं। 

दिल्ली का मेयर एक
दिल्ली नगर निगम में अपनी बम्पर जीत के बाद भाजपा एम.सी.डी. में कई नए प्रस्तावों को हरी झंडी दिखा सकती है। भाजपा के कर्णधारों का मत है कि भले ही एम.सी.डी. को 3 अलग-अलग जोन में बांट दिया गया हो, पर इसका मेयर एक ही होना चाहिए। फिलवक्त तीनों जोन के लिए अलग-अलग मेयर चुने जाते हैं। विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि भाजपा में इस बात को लेकर गंभीर विमर्श चल रहे हैं कि मेयर एक हो, पर तीनों जोन के लिए कमिश्नर अलग-अलग रखे जा सकते हैं।

65 लाख की घास
यूं तो न्याय और संवैधानिक प्रक्रियाओं में लोगों का भरोसा कायम करने में भारत की न्याय प्रणाली की एक महती भूमिका है, फिर भी कुछ न्याय रक्षकों की ओछी मानसिकता से इसकी गरिमा को ठेस पहुंचती है। उत्तर भारत के एक प्रमुख राज्य को जब दक्षिण भारत के एक चीफ  जस्टिस मिले तो उनके स्वागत में राज्यवासियों ने पलक पांवड़े बिछा दिए। उनके आवास व परिसर को सुसज्जित किया गया और केवल घास लगाने के लिए हैदराबाद की एक कम्पनी को कथित तौर पर 65 लाख रुपयों का भुगतान किया गया पर समय का चक्र देखिए, मात्र 3 महीनों में इन जज महोदय का ट्रांसफर दिल्ली हो गया, उनकी जगह जिस जज ने ली उन्हें 65 लाख की यह घास पसंद नहीं आई, 65 लाख की इस घास को उखाड़ा गया और जज महोदय की पसंद की घास के लिए उनकी पसंद की किसी अन्य कम्पनी को आर्डर दिए गए। 

अब तिवारी की बारी
जब से यू.पी. में योगी सरकार बनी है, राज्य के एक पूर्व बाहुबली हरिशंकर तिवारी के अच्छे दिन पैदल हो गए हैं। नहीं तो यू.पी. में अखिलेश सरकार गठित होने से पूर्व तिवारी जी का यह रिकार्ड था कि यू.पी. में बनने वाली हर सरकार में वह मंत्री रहे, चाहे सरकार भाजपा की हो, सपा या बसपा की। अब एक जंगल में दो शेर तो रह नहीं सकते, सो तिवारी जी के गोरखपुर स्थित घर के अहाते में जांच एजैंसियों की रेड पड़ गई। तिवारी समर्थकों ने इसे आनन-फानन में ठाकुर बनाम ब्राह्मण की जंग का रंग दे दिया। तिवारी समर्थकों ने क्या खूब बवाल काटा, यहां तक कि कमिश्नरी के गेट तक तोड़ दिए। 

हरिशंकर तिवारी के दाएं हाथ कहे जाने वाले ब्रजेश पाठक पहले बसपा में गए, फिर वे लखनऊ से इस दफे भाजपा की टिकट पर चुनाव जीत गए। वे तिवारी जी के पुत्र विनय शंकर तिवारी के गहरे मित्र रह चुके हैं पर इस संकट की घड़ी में तिवारी को ब्रजेश पाठक से भी कोई मदद नहीं मिल पाई। हालांकि तिवारी के खिलाफ झंडा बुलंद करने में गोरखपुर के ही विधायक राधामोहन सिंह सबसे आगे हैं। सनद रहे कि राधामोहन को जब भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो योगी ने उन्हें अपनी हिंदू वाहिनी से चुनाव लड़वा दिया और राधामोहन जीत गए। आज राधामोहन सिंह अपराध मुक्त गोरखपुर बनाने के लिए सबसे ज्यादा प्रदर्शन कर रहे हैं।

...और अंत में 
जस्टिस रंजन गोगोई की बैंच ने केन्द्र सरकार को लताड़ लगाई है कि लोकपाल की नियुक्ति क्यों अटकी हुई है? केन्द्र सरकार की ओर से पेश हुए वकील ने दलील दी कि चूंकि इस वक्त कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं है, इसीलिए निर्णय लेने में बाधा आ रही है। तो माननीय कोर्ट ने जानना चाहा कि फिर सी.बी.आई. डायरैक्टर की नियुक्ति कैसे हो गई, उसमें भी तो नेता प्रतिपक्ष की राय लेनी होती है?                  

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