बिहार में चुनाव जीतना अब भाजपा के लिए कठिन हो रहा है

punjabkesari.in Wednesday, Aug 05, 2015 - 02:12 AM (IST)

नीतीश कुमार की जद (यू) ने बिहार में ‘लालू का कुशासन’ समाप्त करने के लिए भाजपा के साथ मिल कर जो अभियान 1990 के दशक में शुरू किया था, उसे पूरा करने में वह 2005 में सफल हो गए और 2010 में दूसरी बार सत्ता में आकर उन्होंने अल्पसंख्यक वोटों पर पूर्णत: कब्जा कर लिया।

बिहार में भाजपा-जद (यू) गठबंधन ठीक-ठाक चल रहा था परंतु 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा द्वारा नरेंद्र मोदी का नाम प्रधानमंत्री के रूप में उछालने पर जद (यू) ने 16 जून, 2013  को  इससे सम्बन्ध तोड़ लिया। गठबंधन टूटने के बाद हुए लोकसभा के चुनावों में जहां भाजपा ने भारी सफलता प्राप्त की, वहीं जद (यू) व अन्य सभी दलों को मुंह की खानी पड़ी। इसके बाद भाजपा को बिहार में रामविलासपासवान (लोजपा) तथा जीतन राम मांझी (हम) का साथ मिला तो नीतीश की जद (यू) ने अपने  ‘दुश्मन’ लालू की राजद, पुराने जनता परिवार के सदस्यों व कांग्रेस से हाथ मिला लिया। 
 
गत मास हुए विधान परिषद चुनावों में जद (यू) व सहयोगियों की भारी हार और भाजपा की सफलता को देखते Þए नई विधानसभा के गठन हेतु चुनावी जोड़-तोड़ व राजनीतिक गतिविधियां तेज हो चुकी हैं और नीतीश कुमार ने एक बड़ी रणनीतिक चाल चलते हुए स्वयं चुनाव न लडऩे तथा पूरा ध्यान महागठबंधन प्रत्याशियों के प्रचार पर लगाने की घोषणा कर दी है। प्रधानमंत्री पद के लिए भी उपयुक्त उम्मीदवार माने जाने वाले नीतीश कुमार की इस घोषणा से आम लोगों को तो हैरानी Þई है परन्तु इससे महागठबंधन के सदस्यों का मनोबल बढ़ेगा। 
 
महागठबंधन के जीतने पर नीतीश कुमार इसका नेता होने के नाते चुनाव लड़े बिना भी मुख्यमंत्री के लिए मनोनीत किए जा सकते हैं और अगले 6 महीनों में अपनी पार्टी के किसी भी विधायक की सीट खाली करवा कर चुनाव जीत कर वह बाकायदा विधायक बन जाएंगे। यह भी उल्लेखनीय है कि जहां लालू यादव कानूनी कारणों से चुनाव नहीं लड़ पा रहे, वहीं उनकी पत्नी राबड़ी देवी ने भी चुनाव न लडऩे की घोषणा करते Þए कहा है कि उनके दोनों बेटे चुनाव लड़ेंगे।
 
इस बीच बिहार भाजपा में फूट के संकेत दिखाई दे रहे हैं। अब तक भाजपा में मुख्यमंत्री की दौड़ में सुशील मोदी आगे थे परंतु अब पूर्व केंद्रीय मंत्री सी.पी. ठाकुर, रामविलास पासवान, नंद किशोर यादव व  उपेंद्र कुशवाहा के नाम भी चर्चा में आ जाने से पार्टी में ‘असंतोष’ के स्वर उभरने लगे हैं। 
 
पिछले दिनों भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा द्वारा नीतीश कुमार की सराहना करते Þए उन्हें ‘विकास पुरुष’ कहने व बाद में नीतीश के निवास पर उनसे भेंट ने शत्रुघ्न के भाजपा से मोहभंग की अटकलों को भी जन्म दिया है। नीतीश कुमार द्वारा शत्रुघ्न को ‘बिहार का गौरव’ बताने से भी शत्रुघ्न सिन्हा द्वारा जद(यू) का दामन थामने संबंधी अटकलबाजियों का बाजार गर्म Þआ है परन्तु शत्रुघ्न सिन्हा ने इन सबका खंडन करते हुए कहा है कि ‘‘आपको जो करना है करो और मुझे जो करना है मैं करूंगा।’’
 
हालांकि पिछले दिनों नीतीश कुमार द्वारा लालू यादव को ‘भुजंग’ कहने से दोनों में मतभेद की हवा उडऩे लगी थी परन्तु नीतीश ने तुरंत ही यह कह कर इसे शांत कर दिया कि उन्होंने यह शब्द भाजपा के लिए कहा था। यही नहीं, वह लालू यादव के निवास पर देर रात उनसे मिलने भी गए और लालू ने भी उनकी इस टिप्पणी को गंभीरता से नहीं लिया जिससे दोनों के बीच खटास संबंधी अटकलों को विराम लग गया। 
 
ये चुनाव एक ओर नरेंद्र मोदी और अमित शाह तथा दूसरी ओर नीतीश कुमार तथा जद (यू) एवं लालू के राजद के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्र बन गए हैं। अभी कुछ नहीं कहा जा सकता कि ऊंट किस करवट बैठेगा पर एक बात तय है कि यदि नीतीश के नेतृत्व वाले महागठबंधन में सीटों को लेकर कोई विवाद न हुआ और इन्होंने एकजुट होकर चुनाव लड़ा तो निश्चित ही भाजपा के लिए यह चुनाव जीतना कठिन हो जाएगा।
 
                                                                                                                                                                                           —विजय कुमार

 


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