दिल्ली के किसी भी इलाके में ‘महिलाएं सुरक्षित नहीं’

Saturday, Aug 01, 2015 - 02:57 AM (IST)

दिसम्बर, 2012 के निर्भया बलात्कार कांड के पश्चात मचे कोहराम और देश व्यापी प्रदर्शनों के बाद केंद्र और राज्य सरकारों ने हरकत में आकर कुछ कानूनी प्रावधान किए थे जिनके चलते देश में महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में कुछ कमी आई परंतु जल्दी ही सब कुछ पुराने ढर्रे पर लौट आया है। 

यहां तक कि राजधानी दिल्ली में महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में लगातार वृद्धि हो रही है। वर्ष 2013 में 12,410 महिलाएं विभिन्न अपराधों की शिकार Þईं तथा 2014 में इनकी संख्या बढ़कर 14,687 हो गई। 
 
इसी प्रकार 2013 में बलात्कार के 1571 केस दर्ज किए गए जो 2014 में बढ़ कर 2069 हो गए। दक्षिणी दिल्ली के ‘पॉश’ इलाके ने तो महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में गोविंदपुरी, अम्बेदकर नगर व कंझावाला को भी पीछे छोड़ दिया है। वसंत विहार में इस वर्ष बलात्कार के मामले 80 प्रतिशत बढ़े हैं।
 
दिल्ली पुलिस द्वारा किए गए हाल ही के एक सर्वेक्षण के अनुसार बाहरी दिल्ली के अमन विहार और दक्षिण-पूर्व दिल्ली के अम्बेदकर नगर तथा गोविंदपुरी में बलात्कार की पीड़िताएं और बलात्कारी सभी अनपढ़, स्कूल में पढ़ाई छोड़ चुके और गरीब घरानों से संबंधित पाए गए। 
 
इन इलाकों में गत वर्ष बलात्कार के 103 केस हुए थे जिनमें 59 नाबालिगों से संबंधित थे व कम से कम 18 नाबालिग पीड़िताओं की उम्र 12 वर्ष से कम थी। एक पीड़िता ग्रैजुएट तथा अन्य दूसरी से पांचवीं कक्षा तक पढ़ी थीं। 
 
अप्राकृतिक संभोग के 25 मामलों में से 7 मामलों में पीड़िताओं के पिता,  4 मामलों में सौतेले पिता, 2 मामलों में बुजुर्गों के अलावा सहेलियां या पुरुष मित्र, चाचा, भाई, पड़ोसी, जीजा, चचेरे भाई व अन्य रिश्तेदार शामिल थे। 
 
राजधानी में 10 प्रतिशत मकानों में शौचालय नहीं हैं, 11 प्रतिशत लोग झोंपड़-पट्टियों में रहते हैं और 18.8 प्रतिशत मकानों में विवाहित जोड़ों के लिए अलग कमरे नहीं हैं। जर्जर मकानों, अंधियारी गलियों और बिना शौचालयों के मकानों वाले इन इलाकों में ज्यादातर अभियुक्त मजदूर, फैक्टरी वर्कर, गार्ड या ढाबों आदि पर कार्यरत अपने परिवारों से दूर रहने वाले लोग थे। 
 
‘सामाजिक अनुसंधान केंद्र’ की निदेशक रंजना कुमारी का कहना है कि ‘‘सरकार द्वारा उन इलाकों में जीवन-यापन की स्थितियों में सुधार करने की आवश्यकता है जहां महिलाओं को खुले में बने शौचालयों में जाना पड़ता है जिस कारण वे बलात्कारियों के निशाने पर आसानी से आ जाती हैं।’’
 
राजधानी में बुनियादी ढांचे का अभाव महिलाओं के विरुद्ध अपराधों को बढ़ावा दे रहा है। पर्याप्त प्रकाश व्यवस्था, सार्वजनिक परिवहन और पुलिस बलों की कमी स्पष्ट दिखाई देती है।
 
दिल्ली के पुलिस कमिश्नर बी.एस. बस्सी के अनुसार, ‘‘महिलाओं के विरुद्ध अपराध हमारी सामाजिक व्यवस्था पर एक धब्बा हैं। महिलाओं को सम्मान और आदर देने के दावों के बावजूद हमारा समाज पुरुषों की आपराधिक मानसिकता से मुक्त नहीं हो सका है।’’
 
श्री बस्सी ने महिलाओं को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण देने की आवश्यकता पर भी बल दिया ताकि उनके और पुरुषों के बीच शारीरिक क्षमता का अंतर कम हो सके और कहा कि इसके लिए वह पात्र लोगों की सहायता लेने की योजना भी बना रहे हैं।
 
देश की राजनीतिक राजधानी होने के नाते दिल्ली को सर्वाधिक सुरक्षित महानगर होना चाहिए था परंतु इसके विपरीत यह सर्वाधिक असुरक्षित और ‘बलात्कारों की राजधानी’ के रूप में कुख्यात होती जा रही है।
 
इसका निवारण करने के लिए पुलिस व्यवस्था को चाक-चौबंद करने, परिवहन प्रणाली और जीवन स्तर सुधारने, झोंपड़-पट्टियों में सार्वजनिक शौचालय बनवाने, आवास उपलब्ध करवाने व ऐसे अपराधों के विरुद्ध लोगों को सचेत करने के लिए जन अभियान चलाने की आवश्यकता है।
 
इसके साथ ही बच्चियों के माता-पिता को भी चाहिए कि वे अपनी बच्चियों को इस तरह के हमलों से सचेत रहने के लिए जागरूक करें और यदि उनके साथ कोई भी व्यक्ति किसी प्रकार का अभद्र व्यवहार करे तो वे उन्हें अवश्य सूचित करें।  
 
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