भारत-पाक संबंध : एक कदम आगे, दो कदम पीछे

Friday, Jul 17, 2015 - 12:04 AM (IST)

अस्तित्व में आने के समय से ही जहां पाकिस्तान अत्यंत अस्थिर और सेना की कृपादृष्टि पर आश्रित रहा है वहीं इसके शासक अपनी सेना को उकसाने के लिए कश्मीर की समस्या का इस्तेमाल करते आ रहे हैं। 

पाकिस्तान के शासकों व सेना ने आतंकवादियों को भारत विरोधी गतिविधियों के लिए संरक्षण और प्रोत्साहन, प्रशिक्षण तथा अन्य सुविधाएं देकर भारत के विरुद्ध छद्म युद्ध भी छेड़ रखा है। इसी कारण जम्मू-कश्मीर दो दशकों से घोर अशांति का शिकार है। 
 
लगभग 6 दशक से जमी बर्फ पिघलाने या जम्मू-कश्मीर में स्थिति सामान्य करने की जैसे ही दोनों देशों में कोई कोशिश शुरू होती है तभी पाकिस्तान व उसके द्वारा समर्थित भारत विरोधी तत्व इसे बे-पटरी करने में जुट जातेहैं।
 
गत वर्ष भारत-पाक के विदेश सचिवों की वार्ता से पूर्व पाकिस्तानी राजदूत द्वारा कश्मीरी अलगाववादी नेताओं को वार्ता के लिए आमंत्रित करने के विरुद्ध रोष स्वरूप भारत ने विदेश सचिवों की वार्ता को रद्द कर दिया था।
 
अब 10 जुलाई को रूस के उफा शहर में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक से हट कर नरेंद्र मोदी व पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ में एक घंटे तक हुई पहली द्विपक्षीय वार्ता के बाद भी ऐसा ही होता लग रहा है।
 
वार्ता में जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवाज शरीफ के निमंत्रण पर अगले वर्ष दक्षेस देशों के सम्मेलन में भाग लेने के लिए पाकिस्तान जाने का निमंत्रण स्वीकार कर लिया, वहीं दोनों नेताओं ने ‘कश्मीर’ को वार्ता में शामिल किए बिना भविष्य में अनेक मुद्दों पर वार्ता के लिए सहमति जताई। 
 
इसमें आतंकवाद पर दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की शीघ्र बैठक बुलाने व नवाज द्वारा मुम्बई हमले के मुकद्दमे में तेजी लाने और इसके आरोपियों की आवाजों के नमूने भारत को देने पर सहमति जताना शामिल था।
 
दोनों नेताओं ने अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर शांति बहाल रखने का फैसला भी किया परन्तु इस बयान की स्याही सूखने से पहले ही पाकिस्तान के ही सत्ता प्रतिष्ठान द्वारा इसे तारपीडो करने की कोशिशें शुरू हो गईं। 
 
जब यह वार्ता हो रही थी, तभी पाक वित्त मंत्री इसहाक डार ने भारत को चेतावनी दे डाली कि ‘‘भारत के प्रति हमारा कोई नर्म रुख नहीं है तथा किसी भी आक्रमण की स्थिति में उसे माकूल जवाब दिया जाएगा।’’ 
 
12 जुलाई को पाक सरकार ने मुम्बई हमले के सरगना जकी-उर-रहमान लखवी की आवाज के नमूने देने से इंकार कर दिया और इसी दिन पाकिस्तानी सेनाओं ने कश्मीर में कुपवाड़ा जिले के केरन सैक्टर में घुसपैठ की एक बड़ी कोशिश की जिसे भारतीय सुरक्षा बलों ने नाकाम कर दिया।
 
13 जुलाई को भी पाक सेनाओं ने जम्मू-कश्मीर के मेंढर सैक्टर में नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन करके भारतीय चौकियों को निशाना बनाया और राष्ट्रीय सुरक्षा एवं विदेशी मामलों पर नवाज शरीफ के सलाहकार सरताज अजीज ने यह कह कर एक बार फिर भारत से विश्वासघात का प्रमाण दिया कि ‘‘कश्मीर मुद्दे को वार्ता के एजैंडे में शामिल नहीं किए जाने तक भारत से कोई बात नहीं होगी। हम कश्मीरियों को राजनीतिक, नैतिक और कूटनीतिक समर्थन देना जारी रखेंगे।’’ 
 
14 जुलाई को जम्मू-कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों ने कश्मीर के शोपियां जिले में एक गांव के सरपंच की गोली मार कर हत्या कर दी और 15 जुलाई को पाकिस्तानी रेंजरों ने अखनूर सैक्टर में भारत के रिहायशी इलाकों पर अंधाधुंध गोलीबारी की। 
 
यही नहीं पाकिस्तान ने, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 17 जुलाई को इस क्षेत्र के दौरे, जिसके दौरान उनके द्वारा जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष पैकेज की घोषणा करने की संभावना है, से ठीक 1 दिन पहले 16 जुलाई को भी पुन: संघर्ष विराम का उल्लंघन करते हुए पांच भारतीय चौकियों पर भारी गोलीबारी की।
 
स्पष्ट है कि एक ओर जहां दोनों देशों के मुख्य नेता आपसी संबंधों में जमी बर्फ पिघलाने की कोशिशें कर रहे हैं और दोनों ने ही कूटनीति से काम लेते हुए इस दिशा में आगे बढऩे का प्रयास किया है, पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठान में मौजूद निहित स्वार्थी तत्व ऐसा होने नहीं देना चाहते।
 
जब भी दोनों देशों के बीच संबंध सुधारने की दिशा में कोई सकारात्मक पहल होती है तो ये तत्व ‘एक कदम आगे और दो कदम पीछे’ वाली कहावत को सिद्ध करते हुए उसे तारपीडो करने में जुट जाते हैं।
 
ऐसे ही निहित स्वार्थी तत्वों के कुटिल इरादों को नाकाम करते हुए दोनों देशों के नेताओं को विवेकपूर्ण कूटनीति का प्रयोग करते हुए कुछ कठिन और जटिल फैसले लेने होंगे तभी इस क्षेत्र में शांति और खुशहाली का एक नया दौर आरंभ हो सकेगा।
 
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