ये हैं हमारे देश के सरकारी अस्पताल

Wednesday, Jul 15, 2015 - 01:27 AM (IST)

हालांकि लोगों को सस्ती और स्तरीय शिक्षा तथा चिकित्सा, लगातार बिजली व स्वच्छ पानी उपलब्ध करवाना केन्द्र और राज्य सरकारों का दायित्व है परन्तु इसमें हमारी सरकारें असफल रही हैं। सरकारी अस्पतालों में इस कदर अव्यवस्था फैली है कि रोगियों को निराशा ही हाथ लगती है। 

24 जून को बिहार के गोपालगंज जिले के मांझा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में 28 वर्षीय सुशीला देवी को प्रसव के बाद रक्त स्राव होने लगा तो डाक्टरों ने उसे गोपालगंज सदर अस्पताल रैफर कर दिया परन्तु घंटों तक एम्बुलैंस उपलब्ध नहीं करवाई गई और बहुत ज्यादा खून बह जाने से उसकी मृत्यु हो गई। 
 
8 जुलाई को जालंधर के सिविल अस्पताल में एक बच्चे के जन्म के दौरान डाक्टर से उसके सिर पर ब्लेड का कट लग गया। बच्चे के पिता के अनुसार 10 जुलाई रात से बच्चा बेहद रो रहा था परन्तु अस्पताल वालों ने उस पर ध्यान नहीं दिया और 12 जुलाई को बच्चे की मृत्यु हो गई।
 
8 जुलाई को ही गुजरात में असारवा के सरकारी अस्पताल में घुटने में संक्रमण से पीड़ित युवक को लाया गया जिसका तत्काल आप्रेशन करने की जरूरत थी परन्तु आप्रेशन 2 दिन बाद 10 जुलाई को किया गया। आप्रेशन के बाद भी जब रोगी दर्द से तड़पता रहा तो कोई सीनियर डाक्टर उसकी जांच करने नहीं आया और अंतत: 11 जुलाई को उसकी मृत्यु हो गई।
 
10 जुलाई को राजस्थान में सिहोर के जिला अस्पताल में रीना बाई के इलाज में लापरवाही से गर्भ में ही बच्चे की मृत्यु हो गई। वह 9 जुलाई को रात भर प्रसव पीड़ा झेलती रही लेकिन नॄसग स्टाफ ने डाक्टर को नहीं बुलाया और 10 जुलाई की सुबह जब महिला डाक्टर उसे देखने आई तब तक न सिर्फ गर्भ में ही नवजात शिशु मर चुका था बल्कि उसकी बच्चेदानी भी फट गई थी जिस कारण अब वह जीवन भर मां नहीं बन पाएगी।
 
12 जुलाई को पश्चिम बंगाल के दक्षिण दिनाजपुर जिले में बलूरघाट स्थित राजकीय अस्पताल में एक नर्स ने डायरिया से पीड़ित 8 दिन की एक बच्ची के हाथ से पट्टी हटाने के दौरान उसका अंगूठा ही काट कर कूड़े में फैंक दिया और वहां से चलती बनी। 
 
इसका पता उसकी मां ममोनी मंडल को रात 10.30 बजे चला जब उसने बच्ची के बाएं हाथ से लगातार खून बहता देखा। बच्ची की मां जोर-जोर से चिल्लाने लगी लेकिन उसकी पुकार सुनने के लिए कोई भी डाक्टर वार्ड में मौजूद नहीं था। जब 11 बजे डाक्टर आया तो उसने बच्ची को नार्थ बंगाल मैडीकल कालेज और अस्पताल में ले जाने को कहा। जब बच्ची के परिजन वहां पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि वे उसे आपात्कालीन प्लास्टिक सर्जरी के लिए 600 किलोमीटर दूर कोलकाता ले जाएं।
 
इतना ही नहीं, हमारे सरकारी अस्पतालों में और भी तरह-तरह की अव्यवस्थाएं समय-समय पर देखने में आती रहती हैं। अभी कुछ ही समय पूर्व उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के सरकारी अस्पताल में एक स्वीपर द्वारा एक घायल रोगी को टांके लगाने का मामला प्रकाश में आया था।
 
यहां तक कि अब तो पोस्टमार्टम के लिए आने वाली लाशों से अंग निकाल कर पोस्टमार्टम करने वाले स्टाफ द्वारा बेचने का खुलासा भी हुआ है। मेरठ के पोस्टमार्टम हाऊस के कर्मियों का एक वीडियो भी सामने आया है जिसमें वे मृतकों के शरीर से अंग निकाल कर 5000 से 20,000 रुपए तक में तांत्रिकों को बेच रहे हैं। मेरठ के जिला अस्पताल के अधिकारियों का कहना है कि उन्हें पता ही नहीं है कि कब से यह अमानवीय धंधा चल रहा है।
 
ये तो देश के विभिन्न राज्यों में स्थित कुछ सरकारी अस्पतालों में फैली अव्यवस्था की चंद उदाहरण मात्र हैं जबकि राजधानी दिल्ली में भी सरकारी अस्पतालों की हालत कुछ अलग नहीं। न सिर्फ वहां के अस्पतालों में आधुनिक मशीनरी तथा समुचित संख्या में डाक्टर उपलब्ध नहीं हैं बल्कि सफाई का भी बुरा हाल है तथा वार्डों में चूहे तक दौड़ते फिरते हैं जिसका सबसे बड़ा कारण सरकार की उदासीनता है।
 
उल्लेखनीय है कि ‘परचेजिंग पावर पैरिटी’ के आधार पर प्रति व्यक्ति सरकारी खर्च सिर्फ 2750 रुपए है जबकि रूस में 50,000 रुपए, ब्राजील में 29,500 रुपए  व चीन में 14,700 रुपए है। भारत में कुल जी.डी.पी. का 1/1.2 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च होता है जबकि अमरीका में यह राशि 8.3 प्रतिशत है।
 
आम आदमी महंगे प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करने के लिए जा नहीं सकता और सरकारी अस्पतालों में उसे संतोषजनक चिकित्सा सुविधाएं  प्राप्त नहीं होतीं। ऐसे में आम जन को स्वास्थ्य से संबंधित कैसी-कैसी परेशानियों से गुजरना पड़ रहा है यह अनुमान लगाना कठिन नहीं। 
 
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