‘हमारी भाभी’

Sunday, Jul 12, 2015 - 12:51 AM (IST)

भाभी और ननद का रिश्ता बड़ा ही प्यारा होता है। दोनों ही अच्छी दोस्त, अंतरंग मित्र बन कर अपने मन की बातें आपस में बांट कर खुश और हल्का महसूस करती हैं।
 
हमारी स्वदेश भाभी जी की एक या दो नहीं पूरी आठ ननदें थीं। कुछ उनसे बड़ी और कुछ उनसे छोटी। हम सभी बहनें उनके नि:स्वार्थ प्यार और विनम्र व्यवहार से इतना प्रभावित थीं कि सभी यह सोचतीं और महसूस करती थीं कि ‘‘स्वदेश भाभी मुझे ही सबसे अधिक चाहती हैं और मेरे ही सबसे अधिक करीब हैं।’’
 
हमारे पूज्य पिता अमर शहीद लाला जगत नारायण जी और दोनों भाइयों रमेश जी तथा विजय जी का राजनीति और पत्रकारिता से शुरू से ही करीबी रिश्ता रहा है। संयुक्त परिवार होने के साथ-साथ हमारा परिवार एक ऐसा परिवार था जहां रिश्तेदारों और मिलने-जुलने के लिए आने वालों का हमेशा तांता लगा ही रहता था।
 
हमारे घर का बाहर का दरवाजा केवल रात को 5-6 घंटे के लिए ही बंद होता था। ऐसे बड़े परिवार की बहू बनना और निभाना आसान नहीं था। यह वह समय था जब पूरे घर में मदद के लिए केवल एक या दो सहायक ही होते थे।
 
वह इतने मिलनसार स्वभाव की थीं कि हम ननदें ही नहीं बल्कि हमारी सहेलियां भी जब हमारे साथ या अकेली कभी उनसे मिलने आ जाती थीं तो उनके स्वभाव और सेवा भावना से अत्यंत प्रभावित होकर लौटती थीं और उनकी प्रशंसा करती नहीं थकती थीं।
 
जहां तक हमारा संबंध है हम सबसे तो वह सगी बहनों से भी अधिक प्यार करती थीं। उन्हें दिखावे से नफरत थी।  हर काम खिले माथे करना उनके स्वभाव में शामिल था। सदा परिवार में अपने बड़ों के पीछे चलती थीं।  
 
मुश्किलों के दौर में भी घर के सभी सदस्यों-सास, ससुर, ननदों, परिवार के दामादों, जेठ-जेठानी, अपने पति, बच्चों एवं परिवार के अन्य सभी बच्चों तथा रिश्तेदारों की जरूरतों का ध्यान रखना यह सब हमारी प्यारी भाभी ने माथे पर बिना किसी शिकन के बहुत सफलतापूर्वक निभाया।
 
यही सब गुण देख कर हमारी मां कभी-कभी भाव-विभोर होकर कहती थीं कि स्वदेश तो देवी का रूप है। वह अत्यंत सेवाभावी थीं और विवाह के तुरंत बाद ही ससुराल आकर जब उनका चूड़ा भी नहीं उतरा था उन्होंने घर के कामकाज में अपनी सास मां (स्व. शांति देवी जी) के साथ हाथ बंटाना शुरू कर दिया।
 
बीबी जी के लाख मना करने के बावजूद वह काम से कभी भी हाथ नहीं खींचती थीं। हम ननदें जब भी मायके आतीं तो उनके कमरे में उनके पास सोना पसंद करती थीं। वह हमारी ही नहीं बल्कि हमारे पतियों की भी पसंद-नापसंद और आने पर जरूरतों का ध्यान रखा करती थीं। 
 
वह हम ननदों का ही नहीं बल्कि हमारी बच्चियों के प्रति भी उनका स्वभाव मित्रवत होता था। हमारी बच्चियां भी नि:संकोच उनसे अपनी समस्या कह दिया करती थीं और वह नि:संकोच उनकी समस्या  सुलझाया करती थीं।
 
वह गरीबों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहतीं और जब कभी भी हम किसी जरूरतमंद को उनके पास सहायता के लिए भेजतीं तो वह उसे अच्छी तरह खिला-पिला कर वापस भेजा करती थीं और वे उनके दरवाजे से खुश होकर लौटते थे। वह कभी भी किसी को चुभने वाली बात नहीं कहती थीं और जो बात उन्हें अच्छी न लगे उसकी उपेक्षा कर देती थीं।
 
वह हमारी भाभी ही नहीं, हमारी मां, बहन और सबसे अच्छी सहेली थीं। उनका स्वभाव अत्यंत शांत था और वह अत्यंत सहनशील थीं। उनकी अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ थी। इसके अलावा भी उन्हें अन्य विषयों का अच्छा ज्ञान था। उन्होंने अपने बच्चों ही नहीं बल्कि अपने से छोटी ननदों की भी पढऩे में सहायता की और अपनी छोटी ननद (सुधा तलवाड़) की सगाई पर तो उन्होंने अपनी साड़ी पहना कर तैयार किया था। उनमें कुछ नया जानने और सीखने की इच्छा बहुत थी।
 
 वह अत्यंत खुले दिल वाली और बहुत अच्छी वक्ता थीं। जो कोई भी उनका भाषण सुनता था उनकी प्रशंसा किए बिना नहीं रह पाता था क्योंकि उनमें अत्यंत आकर्षक ढंग से कविताओं और उद्धरणों का भी समावेश होता था। 
 
लेकिन जब यही देवी समान भाभी कभी न उठने के लिए रोगशैया पर पड़ीं तो हम सब हत्प्रभ, दुखी और परेशान हो गए। भगवान का यह बेरहम इंसाफ हर किसी की समझ से बाहर था। हंसती, मुस्कुराती, दूसरों की हमदर्द जिंदगी एक दम खामोश हो गई। 
 
डाक्टरों की लाख कोशिशों, प्रियजनों की अनथक प्रार्थना और सेवा भी बेअसर हो गई। शायद हम से अधिक भगवान को उनकी जरूरत थी। पिछले जन्म का तो हमें पता नहीं इस जन्म में उन्होंने किसी का बुरा किया नहीं था फिर भी न जाने क्यों भगवान ने उन्हें इतना कष्ट दिया।
 
हमारा दृढ़ विश्वास है कि उन्होंने वह साढ़े छ: वर्ष कोमा में नहीं बल्कि अद्वितीय योग निद्रा एवं ङ्क्षचतन में बिताए जिसके फलस्वरूप अब वह अवश्य स्वर्गीय आनंद में हैं।
उनके विषय में तो यही कहा जा सकता है कि  : 
स्नेह तोडऩा और विलग होना आसान नहीं है
विदा दे सके पास हमारे वह सामान नहीं है 
भावों की यह गठरी न ठुकराना रे पथिक फिर आना रे...
 
—संयोगिता वर्मा, सुदर्शन त्रेहन, स्वराज लता, स्नेह लता, सुधा तलवाड़ एवं शुभलता
 
Advertising