‘हमारी दादी’

Saturday, Jul 11, 2015 - 12:59 AM (IST)

वह अपने बाल सदा जूड़े में बांध कर रखतीं, उनके माथे पर बड़ी लाल बिंदी और आंखों में हमेशा एक विनम्र चमक होती और होंठों पर हमेशा प्यारी-सी मुस्कुराहट खेलती रहती। 

यह चेहरा था हमारी पूज्य दादी मां श्रीमती स्वदेश चोपड़ा का जिसे देखते हुए हम चारों बड़े हुए। वह हमारे जीवन का धु्रव तारा थीं और उन्होंने जो कुछ भी हमें सिखाया हम कभी भूल नहीं पाएंगे। 
 
बचपन से ही उन्होंने हमें स्वयं पर विश्वास करना सिखाया और यह भी सिखाया कि यदि हम पूरी मेहनत और लगन से काम करेंगे तो दुनिया की कोई भी शक्ति हमें सफल होने से रोक नहीं सकती। 
 
उन्होंने हमें सही और गलत में अंतर करना सिखाया और सबसे बढ़कर प्यार करना सिखाया। यह प्यार मात्र अपने परिवार की सीमाओं तक बंधा हुआ प्यार नहीं था बल्कि समस्त विश्व के लिए था।
 
वह कभी किसी के बारे में उसकी पीठ के पीछे भी बुरा नहीं कहती थीं और न ही वह कभी भी किसी की कह हुई बात किसी दूसरे से कहती थीं। वह हमारी मित्र भी थीं और मार्ग दर्शक भी जिनके साथ रहने पर पीढ़ी का अंतराल समाप्त हो जाता था और उनके पास हर कोई इस विश्वास के साथ अपनी बात कह सकता था कि दादी से कही हुई बात किसी दूसरे तक नहीं पहुंचेगी। इसीलिए हम सब भी अपनी छोटी-छोटी समस्याएं और मासूम से रहस्य उन्हें बिना किसी संकोच के बता सकते थे।
 
बच्चों को खुश करने के हमारी दादी के पास अनेक तरीके थे। जैसे कि वह हमारे लिए कभी अपने हाथों से खीर बना कर खिलाया करतीं और हमारी छोटी-छोटी फरमाइशें पूरी करने से मना नहीं करती थीं। 
 
हमें खुश करने के उनके उपायों में एक उपाय यह भी था कि बचपन में वह हम चारों को हर महीने पॉकेट मनी दिया करती थीं जोकि हमारे लिए इकट्ठे होकर मिल बैठने का एक अवसर होता था।
 
हम चारों अक्सर दादी के पास बैठ कर हंसते-खेलते, आपस में मजाक करते और दादी से किस्से-कहानियां तथा चुटकुले सुना करते थे। कोई चुटकुला सुनाते समय दादी मां बीच में ही हंस पड़ा करती थीं और हंसती ही चली जातीं। उनकी हंसी में एक ऐसा आकर्षण था कि हम सब उसमें बंध कर रह जाते थे।
 
आमतौर पर प्रत्येक परिवार में माता-पिता और दादा-दादी का कोई एक सर्वाधिक लाडला बच्चा होता है, परंतु आज यह लेख लिखते समय हम चारों को यह महसूस हुआ कि हम चारों ही यह सोचते थे,‘‘शायद दादी से मेरी सबसे अधिक बनती है’’ परंतु आज जब वह हमारे बीच नहीं हैं तो हमें यह एहसास हुआ कि हमारी दादी ने तो हमारे साथ कभी भी भेदभाव नहीं किया और हम चारों ही समान रूप से उनके लाडले थे।
 
हम सबको इकट्ठे रहना दादी ने सिखाया और आज यदि हम सब इकट्ठे हैं तो यह हमारी दादी की बदौलत ही है। दादी ने हमें यही सिखाया था, ‘‘बेटा तुम लोगों के बीच मतभेद भी होंगे परंतु सबको साथ लेकर चलो क्योंकि एकता में ही बल है।’’
 
7 जुलाई को वह इस भौतिक संसार को तो छोड़ कर चली गईं परंतु वह हमारे दिलों में और उन लोगों के दिलों में सदैव जीवित रहेंगी जिनके जीवन में उन्होंने उजाला भरा।
 
साढ़े 6 वर्षों तक दादी कोमा में रहीं परंतु उस अंतराल में हमें यह संतोष होता था कि वह हमारे बीच हैं परंतु आज जब वह सदा के लिए जा चुकी हैं तो हम यह सोच कर उदास हो जाते हैं कि अब हम कभी उन्हें देख नहीं पाएंगे लेकिन इसके साथ ही उनकी शिक्षाएं हमें आगे बढऩे का हौसला भी देती हैं और हमें महसूस होता है कि सूक्ष्म रूप में आज भी वह हमारे बीच हैं और अपनी शिक्षाएं हमारे कानों में दोहरा रही हैं। 
 
हमारा सौभाग्य है कि हमारा बचपन उनके संरक्षण में बीता और हमें ऐसी दादी मिली जो ममता का सागर थीं और जिनसे बढ़ कर ममतामयी और स्नेहमयी कोई दादी मां तो हो ही नहीं सकतीं।  
—अभिजय, अरूष, अविनव, आमिया चोपड़ा 
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