बंगाल के एक डैंटल कालेज की ‘दुर्दशा की कहानी’

Saturday, Jun 13, 2015 - 03:02 AM (IST)

हालांकि लोगों को सस्ती और स्तरीय चिकित्सा, शिक्षा, स्वच्छ जल और लगातार बिजली उपलब्ध करवाना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है परन्तु स्वतंत्रता के 68 वर्ष बाद भी देशवासी इन सुविधाओं से वंचित हैं। 

सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा देख कर तो यही लगता है कि स्वयं अस्पतालों को इलाज की भारी जरूरत है। अधिकांश राज्यों में चिकित्सा सुविधाओं का हाल यह है कि एक-एक बैड पर 3-3 रोगी सोने के लिए विवश हैं। 
 
रोगियों के परिजनों को पट्टियां और रूई तक बाहर बनी दुकानों से खरीद कर लानी पड़ती है। अस्पतालों में न तो पीने के लिए शुद्ध पानी मिलता है और न ही शौचालय आदि की स्थिति संतोषजनक है जबकि प्राइवेट अस्पतालों में इलाज महंगा होने के कारण आम लोगों के सामथ्र्य से बाहर है।
 
अधिकांश सरकारी अस्पतालों में बिजली फेल हो जाने की स्थिति में जैनरेटरों का प्रबंध भी नहीं जिस कारण कई बार तो आप्रेशन थिएटर में आप्रेशन तक रुक जाते हैं और मरीजों की जान पर बन आती है और कई बार तो डाक्टरों को अपने मोबाइल फोनों की टार्च जलाकर आपे्रशन करने पड़ते हैं। 
 
इसका ज्वलंत प्रमाण अभी हाल ही में कोलकाता स्थित डाक्टर आर. अहमद डैंटल कालेज एवं हास्पिटल में मिला है। बंगाल का एकमात्र रैफरल डैंटल हास्पिटल होने के कारण यहां बंगाल के विभिन्न भागों से ही नहीं बल्कि बंगलादेश, भूटान और नेपाल तक से रोगी इलाज के लिए आते हैं। 
 
यह इस क्षेत्र का पहला डैंटल कालेज और अस्पताल है जिसकी स्थापना 1920 में उस समय के प्रमुख दंत चिकित्सक डा. आर. अहमद के नाम पर की गई थी। पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की बहन फातिमा जिन्ना भी इस कालेज में पढ़ चुकी है। 
 
आज यह कालेज व अस्पताल भारी दुर्दशा का शिकार है। कालेज के नए परिसर के दंत चिकित्सा विभाग में 17 हाइड्रोलिक कुर्सियों तो लगाई गई हैं परन्तु इनमें से अधिकांश कुर्सियों के हाइड्रोलिक्स सिस्टम काम ही नहीं करते जिस कारण इन कुर्सियों को आवश्यकता के अनुसार न तो ऊपर उठाया जा सकता है और न ही नीचे किया जा सकता है।
 
डैंटल कौंसिल ऑफ इंडिया (डी.सी.आई.) के नियमानुसार सर्जरी के लिए प्रयुक्त की जाने वाली कुर्सी में अनिवार्यत: विभिन्न प्रकाश तीव्रता वाले ‘2 ओवरहैड बल्ब’ लगे होने चाहिएं परन्तु अस्पताल की 17 में से 14 कुर्सियों के बल्ब या तो नदारद हैं या लम्बे समय से खराब पड़े हैं।
 
इस कारण यहां चिकित्सकों को अपने मोबाइल फोनों की टार्च की रोशनी में इलाज करना पड़ता है। अधिकांश कुर्सियों में रोगी का सिर टिकाने के लिए ‘हैड रैस्ट’ भी नहीं हैं।
 
अस्पताल के ग्राऊंड फ्लोर पर बनाए गए ‘माइनर आप्रेशन थिएटर’ की हालत तो और भी बुरी है जहां 11 में से 9 कुर्सियों के हाइड्रोलिक्स काम ही नहीं करते और दूसरे आवश्यक उपकरण भी उपलब्ध नहीं हैं। 
 
सर्जरी में प्रयुक्त होने वाली माइक्रो मोटरें, हैंड पीस और अन्य उपकरण तथा वांछित आक्सीजन की आपूर्ति भी संतोषजनक नहीं है। सरकार द्वारा समुचित संसाधन उपलब्ध न किए जाने के कारण रोगियों के उपचार के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों के स्टरलाइजेशन (विषाणुओं से उपकरणों के शुद्धिकरण) की भी कोई व्यवस्था नहीं है। कई बार तो डाक्टर ऐसे अस्वच्छ उपकरणों के साथ काम करने को विवश होते हैं।
 
वर्षों से सरकार की उपेक्षा का शिकार यह अस्पताल डी.सी.आई. द्वारा निर्धारित दंत चिकित्सा कालेज चलाने की शर्तें पूरी करने में असफल रहा है। डाक्टर आर. अहमद डैंटल कालेज एंड हास्पिटल की यह हालत राज्य में चिकित्सा व्यवस्था की बुरी हालत की मुंह बोलती तस्वीर है। 
 
जब बंगाल के इतने बड़े दांतों के एक अस्पताल की यह हालत है तो देश के अन्य सरकारी अस्पतालों की क्या हालत होगी इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।  
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