कनाडा में महिलाओं की सुरक्षा

Monday, May 25, 2015 - 12:51 AM (IST)

ओटावा में जन्मी कनाडाई कॉमेडियन जेन ग्रांट टोरंटो में आयोजित एक कार्पोरेट समारोह में अपना कार्यक्रम बीच में ही छोड़ मंच से चली गई क्योंकि  कुछ पुरुष कार्यक्रम के दौरान भद्दे, अभद्र तथा ‘बलात्कारी’ लहजे में टिप्पणियों से उनका उत्पीड़ऩ कर रहे थे। 

‘ओंटारियो प्र्रिंटिंग एंड इमेजिंग एसोसिएशन्स एक्सीलैंस इन प्रिंट अवाडर्स’ समारोह में 45 मिनट के लिए मंच पर कॉमेडी पेश करने के लिए जेन ग्रांट को बुलाया गया था। किसी नाइट क्लब में तो ऐसे व्यवहार की अपेक्षा की भी जा सकती है परंतु जेन के अनुसार यह तो भद्र लोगों का समारोह प्रतीत होता था जहां सूट-बूट पहने दर्शक बैठे थे और वह अपनी कॉमेडी में अच्छा हास्य पेश कर रही थी।
 
अपने 16 वर्षीय करियर में अनेक अप्रिय क्लब शो भी कर चुकी कॉमेडियन जेन ग्रांट कहती हैं, ‘‘मैं उनमें से नहीं हूं जो बिना वजह शिकायत करें। मैंने ऐसे कई शो किए हैं जहां लोग कलाकारों को तंग करने की कोशिश करते हैं परंतु कुछ देर में शांत हो जाते हैं लेकिन यह तंग करना नहीं मेरा उत्पीड़ऩ था। मुझे सबके सामने अपमानित किया गया।’’
 
विरोधस्वरूप मंच छोड़ कर जाने के बाद उसने इस घटना पर अपने अनुभव सोशल नैटवर्किंग वैबसाइट फेसबुक पर सांझे किए। कनाडाई महिलाओं की ओर से इस पर अभूतपूर्व प्रतिक्रिया आई जिनका विचार है कि महिलाओं के बारे में या उनसे बात करते समय पुरुषों की भाषा के स्तर में सचमुच बहुत अधिक गिरावट आ गई है और इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप अब वे सभी एक मंच पर एकजुट होकर कनाडा में महिलाओं के उत्पीड़ित किए जाने के इस नए खतरे से लडऩे की कोशिश कर रही हैं। 
 
यह शायद ऐसी कई घटनाओं में से एक होगी जिससे दुनिया भर की महिलाएं सहानुभूति महसूस करती होंगी, विशेषकर भारत में, परंतु इस घटना ने कनाडा की महिलाओं को सचमुच चिंतित कर दिया है। हालांकि, वहां वे जिस बात पर पूरा भरोसा कर सकती हैं वह है कनाडा में पुलिस द्वारा महिलाओं की सुरक्षा व्यवस्था।  
 
हाल ही में कनाडा के एक छोटे से कस्बे विस्लर के एक होटल में गलती से मैंने अपने कमरे में मौजूद फोन के पहले बटन को दबा दिया जो आमतौर पर होटलों में रिसैप्शन या फ्रंट डैस्क से सम्पर्क करने के लिए होता है परंतु कनाडा में ऐसा नहीं है। वहां होटलों के फोन का पहला बटन, जिस पर लाल रंग का क्रॉस बना होता है, आपातकाल में सहायता मांगने के लिए होता है। 
 
जैसे ही आप इस बटन को दबा कर फोन उठा कर ‘हैलो’ कहते हैं यह पुलिस स्टेशन को ट्रांसफर हो जाता है। होटल में फोन उठाने वाला आपसे आपकी खैरियत के बारे में और आपकी आपात स्थिति के बारे में जानकारी मांगता है। यदि आप कहें कि आपने गलती से यह बटन दबा दिया था तो भी वह आपसे लाइन पर बने रहने को कहेगा। इसके बाद आपकी बात पुलिस वाले से होती है जो आपसे जानकारी लेता है कि क्या आप अकेले हैं, आपका नाम, उम्र पूछने के बाद कहता है कि आप जहां हैं, वहीं रहें।  
 
केवल 3 मिनट में होटल का सिक्योरिटी स्टाफ आपके कमरे की जांच कर रहा होगा कि कहीं आप किसी खतरे में तो नहीं हैं। इसके 5 से 7 मिनट के भीतर पुलिस आपके कमरे के दरवाजे  पर दस्तक देगी और आपका नाम, उम्र, वहां आने का मकसद, पते की जानकारी लेकर आपको बार-बार आश्वस्त करेगी कि किसी भी प्रकार की समस्या होने पर उन्हें जरूर सूचित करें। 
 
भारतीय सुरक्षा व्यवस्था के मापदंडों में इसे ‘जरूरत से ज्यादा प्रतिक्रिया’ माना जाएगा परंतु हर कोई कनाडाई पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था की तेजी, पेशेवर रुख तथा आपसी तालमेल की प्रशंसा जरूरी करेगा। किसी भी स्तर पर वे सुरक्षा को हल्के में नहीं लेते हैं। उनकी भाषा या व्यवहार में जरा भी रूखापन या अशिष्टता नहीं होती बल्कि गलती से फोन का पहला बटन डायल किए जाने का पता चलने पर भी पुलिस वाले कोई परेशानी, चिड़चिड़ाहट या क्रोध जाहिर नहीं करते हैं। 
 
यह भी कहा जा सकता है कि कनाडा जैसे कम जनसंख्या वाले देश में इस तरह के सुरक्षा तंत्र की व्यवस्था सम्भव हो सकती है। फिर भी यह एक तथ्य है कि वहां ऐसे सुरक्षा तंत्र का सचमुच अस्तित्व है और इसे लागू करने की भी पूरी कोशिश होती है। 
 
भारत में बेशक हमारे समक्ष विशाल जनसंख्या की समस्या है, तो भी सवाल यह है कि हमारे पास अधिक पुलिस वाले क्यों नहीं हैं। मई 2013 के आंकड़ों के अनुसार कनाडा में प्रत्येक 10 हजार निवासियों के लिए 202 पुलिस वाले थे जबकि भारत में 1 लाख निवासियों के लिए पुलिस वालों की संख्या केवल 130 थी।
 
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