2018 तक ‘गंगा’ तथा अन्य नदियों को ‘निर्मल’ बनाना मुश्किल

Thursday, Mar 26, 2015 - 01:06 AM (IST)

नदियां किसी भी देश के आर्थिक विकास का मुख्य आधार होती हैं। भारत में तो इन्हें जन आस्था और श्रद्धा का प्रतीक भी माना जाता है। लोग पुण्य प्राप्ति के लिए इनमें स्नान करते हैं परंतु आज गंगा और यमुना सहित देश की अधिकांश नदियों का पानी बेहद प्रदूषित व विषैला हो चुका है।
 
इनमें नहाना गंभीर चर्म रोगों को निमंत्रण देना है। इसी कारण चिकित्सक समय-समय पर लोगों को गंगा-यमुना सहित अन्य नदियों में स्नान न करने की सलाह देते रहते हैं। हमारी नदियों में रोज 37,000 मिलियन लीटर सीवरेज का गंदा पानी डाला जा रहा है। इसमें कारखानों का विषैला गंदा पानी, शहरों की गंदगी तथा अन्य रासायनिक अपशिष्ट शामिल हैं।
 
इससे नदियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। उनके किनारों की हरियाली समाप्त हो रही है और कटाव बढ़ रहा है। ऋषिकेश से कोलकाता तक गंगा के किनारे परमाणु बिजली घर व रासायनिक खाद तक के कारखानों और कानपुर के चमड़ा उद्योग का गंदा पानी गंगा में गिर रहा है। 
 
इसी कारण 2525 कि.मी. लम्बी गंगा नदी जो भारत की सबसे लम्बी तथा विश्व की दूसरी सबसे लम्बी नदी है, विश्व की पांचवीं सर्वाधिक प्रदूषित नदी बन गई है। इसका पानी कई स्थानों पर तो इतना प्रदूषित हो चुका है कि इसमें स्नान की बात तो दूर यह आचमन करने व सिंचाई के लिए भी उपयुक्त नहीं रहा। वहां खड़े होकर सांस तक नहीं ली जा सकती और यही हालत यमुना और नर्मदा आदि सहित देश की अन्य नदियों की भी है।  
 
1985 में एम.सी. मेहता ने गंगा में शहरों की गंदगी डालने से रोकने के लिए सुप्रीमकोर्ट में रिट दायर की थी जिस पर सरकार ने गंगा सफाई हेतु एक्शन प्लान शुरू किया था पर गत 30 वर्षों में इस पर 2000 करोड़ रुपए से अधिक राशि खर्च होने के बावजूद नतीजा वही ‘ढाक के तीन पात’ ही है।
 
अभी कुछ सप्ताह पूर्व ही सुप्रीमकोर्ट ने सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि ‘‘आप इसे इसी कार्यकाल में पूरा करना चाहते हैं या अगले कार्यकाल में? आपकी कार्ययोजना देख कर तो लगता है कि गंगा 200 वर्ष बाद भी स्वच्छ नहीं हो पाएगी। अत: ऐसे पग उठाएं जिससे गंगा अपनी पुरानी गरिमा प्राप्त करे और आने वाली पीढ़ी इसे देख सके।’’  इसके उत्तर में सरकार ने कहा था कि ‘‘इस पर काम 2018 तक पूरा हो सकता है।’’ 
बेशक अब सरकार ने गंगा को बचाने के लिए एक अलग कानून बनाने का निर्णय लिया है और वीरवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ होने वाली विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक में इस पर चर्चा किए जाने की संभावना है परंतु यह काम उतना आसान नहीं है। 
 
गंगा सहित अन्य नदियों की स्वच्छता के लिए न सिर्फ अंतर्राष्ट्रीय जानकारी बल्कि समुचित नदी प्रबंधन आवश्यक है। इसके लिए दीर्घकालिक योजना बनानी होगी। यूरोप में थेम्स, राइन और डेन्यूब नदियों को स्वच्छ करने में 20-20 वर्ष लगे थे। अत: न सिर्फ सुविचारित और व्यावहारिक समय-सीमा तय करने बल्कि उसे चरणबद्ध रूप से सख्ती से लागू करने की भी आवश्यकता है।
 
इसके लिए एक पग के रूप में देश में ‘सीवेज ट्रीटमैंट प्लांट’ बड़ी संख्या में लगाने होंगे ताकि नदियों में गंदा पानी डालना रोका जा सके। इस समय तो देश में कुल 57,000 मिलियन लीटर दैनिक सीवेज में से मात्र 20,358 मिलियन लीटर सीवेज के शोधन की ही क्षमता है।
 
इसके लिए गंगा व अन्य नदियों को ध्यान में रख कर शहरों का विकास, नदी संरक्षण नियमों का सख्तीपूर्वक पालन व नदियों में कचरा डालने पर रोक लगाना जरूरी है। इसके साथ ही नदियों के पुनरुद्धार के लिए आबंटित कोष के दुरुपयोग व भ्रष्टाचार को रोकना, सफाई के लिए समयबद्ध व वैज्ञानिक आधार पर योजना बनाकर कठोरतापूर्वक लागू करना भी आवश्यक है।
 
कोई भी देश अपने जल संसाधनों को नष्ट करके अपना अस्तित्व बचाए नहीं रख सकता। सरकार जितनी देर करेगी, लक्ष्य प्राप्ति में उतनी ही देर होगी और उसी हिसाब से खर्च भी बढ़ता चला जाएगा।
 
अत: यदि केंद्र सरकार अपने ‘नमामि गंगे’  प्रोजैक्ट को सही अर्थों में सिरे चढ़ाना और गंगा सहित अन्य नदियों को बचाना चाहती है तो उसे उक्त बातों पर तुरंत अमल करना होगा।
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