‘बेमौसमी वर्षा’ से टूटी किसानों की कमर और अब बढ़ेगी ‘महंगाई’

Wednesday, Mar 25, 2015 - 12:00 AM (IST)

अच्छी वर्षा के दौर के बाद इस वर्ष किसानों और सरकार को पूरा भरोसा था कि रबी की फसल के सारे रिकार्ड टूट जाएंगे लेकिन वर्षा के अच्छे दौर के बाद उत्तरी भारत में सक्रिय ‘वैस्टर्न डिस्टरबैंस’ के कारण पिछले डेढ़ महीने से खराब मौसम का एक दौर चल पड़ा।

इस ‘सैकेंडरी साइक्लोनिक एक्टीविटी’ से राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब तथा उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में भारी वर्षा और ओलावृष्टि हुईई। कहां तो इस बार देश में रिकार्ड उपज की आशा की जा रही थी, कहां तो अब पिछले वर्ष से भी कम फसल होने की आशंका उत्पन्न हो गई है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार पिछले एक दशक में पहली बार फसलों की इतनी तबाही हुई है।

पंजाब में 6000 एकड़ रकबे में खड़ी फसल बर्बाद हुई है तथा गेहूं की उपज में 10 से 15 प्रतिशत तक कमी आ सकती है। इंजन से भी खेतों में खड़ा पानी निकालने की कोशिशें कई जगह नाकाम रहीं और ऊपर से बर्बाद हुई फसल को कटवाने पर भी 1000 रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से खर्च आएगा। यही नहीं खराब फसल की कटाई में विलम्ब भी होगा तथा धान, ग्रीष्मकालीन सब्जियों और गन्ने की बिजाई इस कारण लेट होगी।

राजस्थान के 26 जिलों के 4247 गांवों में 14.5 लाख एकड़ फसल तबाह हुई है। वहां के किसानों का कहना है कि पिछले 50 वर्षों में उन्होंने इस तरह की भारी तबाही नहीं देखी। वहां जीरा, ईसबगोल, गेहूं, जौ, अदरक, धनिया, सरसों और संतरों की फसल को भारी नुक्सान पहुंचा है। वहां के किसानों को शिकायत है कि अधिकारी अपने दफ्तरों में बैठ कर ही होने वाली क्षति के अपने हिसाब से आंकड़े बनाते हैं।

उत्तर प्रदेश में लगभग 27 लाख एकड़, महाराष्ट्र में 7.5 लाख एकड़, पश्चिम बंगाल में 50,000 एकड़ फसल बर्बाद हुई है। झारखंड के कुछ जिलों में भी लगभग 30 प्रतिशत फसल नष्टï हो गई है। उत्तर प्रदेश में आलू की 70 प्रतिशत और गेहूं की 50 प्रतिशत फसल बर्बाद हुई है जबकि मध्य प्रदेश में 15 जिलों के 1400 गांवों की पूरी फसल तबाह हो गई है।

महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान व गुजरात में गेहूं, चना, सरसों, आलू, प्याज, टमाटर, काबुली चना की फसलों को भारी क्षति पहुंची है और इस वर्षा से गेहूं की क्वालिटी भी प्रभावित होगी।

खाद्यान्न व डीजल के भावों में कमी आने के कारण इस वर्ष फरवरी तक लगातार 4 महीनों से थोक मूल्य सूचकांक में गिरावट आ रही थी, परंतु उपरोक्त बर्बादी की वजह से अब कम फसल होने के कारण कुछ समय पहले तक घट रही महंगाई के पुन: बढऩे का भारी खतरा पैदा हो गया है।

केंद्र सरकार को विदेशों से अधिक तिलहन का आयात करना पड़ सकता है। भारत विश्व में खाद्य तेलों का सबसे बड़ा आयातक है तथा अपनी जरूरत का 60 प्रतिशत तेल विदेशों से आयात करता है। अब सरकार को पहले से भी अधिक मात्रा में खाद्य तेलों का आयात करना पड़ेगा।

बाजार विशेषज्ञों के अनुसार रबी की फसलें इतनी बड़ी मात्रा में बर्बाद हुई हैं कि इसका प्रभाव बाजार और आम आदमी की जेब पर पडऩा तय है। इस घटनाक्रम से खुदरा महंगाई 6 प्रतिशत तक पहुंच सकती है अर्थात घरेलू उपयोग की वस्तुओं की कीमतें 20 से 30 प्रतिशत बढ़ सकती हैं।

राज्यों द्वारा क्षति के अनुमान लगा लिए जाने के बाद केंद्र सरकार द्वारा राहत संबंधी पग उठाए जाएंगे। केंद्र सरकार ने फसलों को गई क्षति का अनुमान लगाने के लिए प्रभावित राज्यों में अपनी टीमें भी भेजी हैं।

पहले ही अनेक समस्याओं से जूझ रहे कृषक वर्ग की तो जैसे इस प्राकृतिक आपदा ने कमर ही तोड़ दी है। अत: अब आवश्यकता इस बात की है कि अधिकारियों द्वारा दफ्तर में बैठ कर अपने हिसाब से क्षति के आंकड़े बनाने की बजाय किसानों को हुई क्षति का सही-सही आकलन करके उन्हें पूरा मुआवजा दिया जाए ताकि उनका हौसला न टूटे।

यदि उन्हें पूरा मुआवजा नहीं मिलेगा तो पहले ही संकट के शिकार कृषकों में आत्महत्याएं बढ़ेंगी और उनके परिजन खेतीबाड़ी से तौबा कर लेंगे जिसकी देश को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।   

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