जब शासक ही कानून तोड़ रहे हों तो अफसरशाही भी ऐसा क्यों न करेगी

Wednesday, Mar 18, 2015 - 04:20 AM (IST)

हमारे सांसदों, विधायकों, मंत्रियों आदि को एक विशेषाधिकार के अंतर्गत सरकारी आवास प्रदान किए जाते हैं और उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे उनमें कोई अन्य निर्माण नहीं करेंगे, परन्तु स्थिति इसके सर्वथा विपरीत है। 
 
हाल ही में रहस्योद्घाटन हुआ है कि 250 राजनीतिज्ञों ने, जिनमें केन्द्रीय मंत्री, वर्तमान और भूतपूर्व सांसद तथा विभिन्न राजनीतिक दलों के विधायक भी शामिल हैं, सी.पी.डब्ल्यू.डी. द्वारा उन्हें आबंटित बंगलों में अवैध निर्माण करके निर्धारित कानूनों को भंग किया है परन्तु उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की गई।
 
सरकारी रिकार्डों के अनुसार पिछले 10 वर्षों के दौरान एक भी राजनीतिज्ञ को सरकारी इमारतों में उसके द्वारा किए गए अवैध निर्माणों के संंबंध में न तो कोई नोटिस दिया गया और न ही उससे परिसर खाली करवाया गया।
 
अलाटशुदा बंगलों में ऐसा निर्माण करने वाले सत्तारूढ़ दल भाजपा के कुछ शीर्ष केन्द्रीय मंत्रियों व राजनीतिज्ञों में रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावड़ेकर, कलराज मिश्र, शाहनवाज हुसैन, शत्रुघ्न सिन्हा, सुमित्रा महाजन (लोकसभा की अध्यक्ष), हरसिमरत कौर बादल तथा रामविलास पासवान शामिल हैं।
 
इसी प्रकार विपक्षी दलों के राजनीतिज्ञों और सांसदों में राज बब्बर, सुरेश कलमाडी, संजय निरूपम, बी.जे. पांडा तथा पी.एल. पूनिया शामिल हैं। भाजपा के प्रादेशिक कार्यालय, बसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं बहुजन प्रेरणा ट्रस्ट के चेयरमैन व ट्रस्टी को अलाट कार्यालयों में भी अनधिकृत निर्माण किए गए हैं।
 
अनधिकृत निर्माणों में अतिरिक्त कमरे और हाल, बैडमिंटन कोर्ट, शौचालय, कार्यालय, बरामदे तथा ‘पोर्टा कैबिन’ बनाना शामिल है। इन सभी राजनीतिज्ञों ने ये सभी निर्माण अनुमति लिए बगैर किए हैं परन्तु सी.पी.डब्ल्यू.डी. ने इन अवैध निर्माणों को न ही गिराया और न ही कोई अन्य कार्रवाई की।
 
मिसाल के तौर पर सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने 14 पी.पी. मार्ग स्थित राज्य पार्टी कार्यालय में 900 वर्ग मीटर क्षेत्र में 3 अतिरिक्त कमरे बना लिए हैं। इसी प्रकार केन्द्रीय उपभोक्ता मामलों, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री रामविलास पासवान ने 21 साऊथ एवेन्यू स्थित अपने अलाटशुदा आवास में एस्बैस्टस शीट की छतों वाले 2 कैबिन बना लिए हैं। 
 
यही नहीं, अनेक मंत्री और सांसद आदि तो अपने अलाटशुदा आवासों का कुछ भाग रहने के लिए अपने रिश्तेदारों या परिचितों को दे देते हैं या फिर किराए पर चढ़ा कर रकम भी वसूलते हैं।
 
लोकसभा की अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के कार्यालय को इस संबंध में एक समाचारपत्र ने विस्तृत प्रश्रावली भेजी थी जिसका उनके कार्यालय ने कोई उत्तर नहीं दिया। इसी प्रकार रामविलास पासवान, शाहनवाज हुसैन तथा शत्रुघ्र सिन्हा आदि राजनीतिज्ञों को भेजी गई प्रश्रावली भी निरुत्तरित ही रही और बार-बार कोशिश करने के बावजूद रविशंकर प्रसाद तथा प्रकाश जावड़ेकर सहित अनेक मंत्रियों से संपर्क करने की कोशिश भी सफल नहीं हो सकी।
 
यहां एक अन्य बात भी उल्लेखनीय है कि पिछली लोकसभा के सदस्य न रहने के बावजूद कांग्रेस के श्री जगदीश टाइटलर ने मोदी सरकार के मानव संसाधन राज्यमंत्री रामशंकर कठेरिया को आबंटित सरकारी बंगले पर कब्जा कर रखा है। कठेरिया ने आरोप लगाया है कि उनके कई बार शिकायत करने के बावजूद टाइटलर बंगला खाली करने के लिए तैयार नहीं हैं। 
 
कठेरिया ने कहा है कि आखिर जगदीश टाइटलर किस हैसियत से इस बंगले में रह रहे हैं क्योंकि वह तो पिछली संसद में सांसद भी नहीं थे जबकि जुलाई, 2013 में ही सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश दिया था कि ‘रिटायर’ होने के बाद सरकारी बंगलों पर कब्जाधारियों को एक महीने के भीतर सरकारी आवास खाली कर देने चाहिएं। इसके साथ ही अदालत ने सरकारी आवासों पर ‘स्मारक’ बनाने पर भी एतराज जताया था।
 
‘यथा राजा तथा प्रजा’ वाली कहावत के अनुसार जैसा आदर्श देश के शासक प्रस्तुत करते हैं उसी रास्ते पर देश की जनता भी चलती है। मंत्रियों, सांसदों एवं अन्य जनप्रतिनिधियों को ‘लॉ मेकर्स’ अर्थात विधि या कानून के निर्माता कहा जाता है और इसी के अनुरूप यदि हमारे विधि निर्माता ही कानून की परवाह न करके ऐसे उदाहरण पेश कर रहे हैं तो फिर भला उनके नीचे काम करने वाली अफसरशाही कानून विरोधी काम क्यों नहीं करेगी?
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