पंजाब के लोग अब खा रहे हैं जहरीला अन्न व पी रहे हैं संदूषित पानी

Friday, Mar 06, 2015 - 04:03 AM (IST)

मानव का लोभ और उसकी धन लिप्सा ही आज उसके लिए अभिशाप बनते जा रहे हैं। देश का ‘खाद्य कटोरा’ कहलाने वाले पंजाब में रासायनिक खादों और कीटनाशकों का इस्तेमाल छठे दशक में शुरू हुआ था जिससे देश ‘ग्रेन सरप्लस’ तो हुआ परंतु अधिक उपज प्राप्त करने के लोभ में किसान रासायनिक खादों व कीटनाशकों का अधिकाधिक प्रयोग करने लगे और इससे पर्यावरण को भारी क्षति भी पहुंची है। 

पंजाब देश में रासायनिक खादों और कीटनाशकों का सबसे बड़ा उपभोक्ता है और इनकी खपत राष्ट्रीय औसत से कई गुणा अधिक है। पंजाब में यूरिया की खपत प्रति हैक्टेयर 400-600 किलोग्राम और फास्फेट की खपत 100-200 किलोग्राम है जबकि राष्ट्रीय औसत क्रमश: 88 किलो व 39 किलो है। राष्ट्र की कुल 17 प्रतिशत कृषि भूमि की तुलना में पंजाब की कृषि भूमि 1.5 प्रतिशत है परंतु यहां कृषि रसायनों का उपयोग 17 प्रतिशत से भी अधिक होता है। 
 
भारत में 67 प्रतिबंधित कृषि रसायनों की बिक्री होती है जिनके परिणामस्वरूप मिट्टी में लेड, कैडमियम, फ्लोराइड, आर्सैनिक, पारा और यूरेनियम की वृद्धि होती जा रही है। अधिकांश रसायन जैव संग्रहणीय होने के कारण इंसानों और जानवरों के शरीर में ‘जम’ कर भारी क्षति पहुंचा रहे हैं। 
 
मिट्टी के रास्ते भूमिगत पानी में प्रविष्ट होने वाले विषैले तत्वों से भूमिगत पानी भी खराब हो रहा है जबकि नदियों और नहरों में गंदा पानी डालने से वे भी दूषित हो रही हैं। इस कारण पिछले 4 दशकों में कैंसर के अलावा, स्नायु, प्रतिरक्षा प्रणाली, हृदय और सांस रोग, तनाव, मधुमेह जैसी बीमारियां लगातार बढ़ रही हैं। फरीदकोट इलाके में 13 वर्ष से कम आयु के 87 प्रतिशत बच्चों के शरीर में यूरेनियम और मैंगनीज की भारी मात्रा पाई गई है। 
 
पानी में विभिन्न प्रकार के रसायन होते हैं जिनके कारण कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं। इन कीटनाशकों का शरीर पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है। इससे स्नायु प्रणाली तो प्रभावित होती ही है, प्रजनन क्षमता भी प्रभावित हो रही है। 
 
भूमिगत संक्रमित जल में लेड की मात्रा भी पाई जा रही है। लेड पानी के रास्ते हमारे शरीर में जाकर जमा हो जाता है। इसका सर्वाधिक प्रभाव बच्चों और महिलाओं पर पड़ता है। पीने योग्य पानी में कभी-कभी नाइट्रेट्स भी मिले होते हैं। ये मस्तिष्क तक पहुंचने वाली ऑक्सीजन की मात्रा को कम कर देते हैं जिससे बच्चों में ‘ब्लू बेबी सिंड्रोम’ उत्पन्न हो सकता है और नाइट्रेट्स आंत के कैंसर के लिए भी जिम्मेदार होते हैं।
 
सूचना के अधिकार के अंतर्गत प्राप्त जानकारी के अनुसार पंजाब की 35 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या संदूषित पानी पी रही है जबकि कुछ जिलों में तो यह संख्या 50 प्रतिशत तक है जिससे पंजाब सरकार का यह दावा झूठा सिद्ध होता है कि राज्य के सभी शहर तथा अधिकांश गांव पेयजल योजना के दायरे के अधीन आ गए हैं।
 
वर्ष 2008-09 में राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने 21 जिलों से पानी के 4734 नमूने लिए थे जिनमें से 1867 नमूने (39 प्रतिशत) फेल हो गए थे। इसी तरह 2014 में अप्रैल से नवम्बर की अवधि के बीच स्वास्थ्य विभाग ने 6351 नमूने लिए जिनमें से पानी के 2869 (36 प्रतिशत से अधिक) नमूने पीने के अयोग्य पाए गए। अधिकांश नमूने सरकारी स्कूलों से लिए गए थे। 
 
2008-09 में फिरोजपुर जिले से जो नमूने लिए गए उनमें से लगभग 50 प्रतिशत नमूने फेल पाए गए जबकि 2014 में राज्य के अनेक जिलों में पानी के 40 प्रतिशत से अधिक नमूने पीने के अयोग्य पाए गए। 
 
इनमें पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का जिला श्रीमुक्तसर साहिब भी शामिल है जहां 43 प्रतिशत पानी के नमूने पीने के योग्य नहीं थे। इसी प्रकार तरनतारन, लुधियाना, जालंधर और कपूरथला में लगभग 41 प्रतिशत और शेष जिलों में 30 से 38 प्रतिशत पानी के नमूने पीने के अयोग्य पाए गए। 
 
स्पष्टत: किसी भी चीज की अति बुरी होती है और कीटनाशकों तथा रासायनिक खादों के अधिक उपयोग से होने वाली बीमारियों के परिणाम अब हमारे सामने हैं। अभी भी यदि हमने रासायनिक खादों और कीटनाशकों का आवश्यकता से अधिक इस्तेमाल जारी रखा तो वह समय दूर नहीं जब इनसे उत्पन्न बीमारियों पर नियंत्रण पाना अति कठिन हो जाएगा और जान बचाने के लिए लोग प्रभावित क्षेत्रों से पलायन करने लगेंगे। 
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