राजनीतिज्ञों में बढ़ रहा क्षमायाचना का नया रुझान

punjabkesari.in Monday, Feb 23, 2015 - 04:25 AM (IST)

नीतीश कुमार रविवार 22 फरवरी को चौथी बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में लौट आए। अपनी सुनियोजित राजनीतिक रणनीति के चलते चाणक्य कहलाने वाले 64 वर्षीय श्री नीतीश कुमार जबरदस्त राजनीतिक नौटंकी के बाद पुन: सक्रिय राजनीति में लौटे हैं जिसके लिए कुछ प्रेरणा उन्होंने दिल्ली में पुन: सत्तारूढ़ हुए अरविंद केजरीवाल से भी प्राप्त की है।

नीतीश कुमार ने 20 फरवरी को दोनों हाथ जोड़ कर कहा कि ‘‘मैं बिहार के लोगों से माफी मांगता हूं। मुख्यमंत्री के पद से त्यागपत्र देकर जिम्मेदारी से भागना मेरी भूल थी। इसके लिए मैं क्षमायाचक हूं। मैं भावात्मक कारणों से अब ऐसी भूल नहीं करूंगा।’’ इसके साथ ही उन्होंने राज्य की जनता को अच्छी गवर्नैंस उपलब्ध करने का वचन भी दिया। 
 
‘आप’ के नेता अरविंद केजरीवाल ने भी 10 फरवरी को दिल्ली में अपनी शानदार विजय से पूर्व ऐसी ही भावनाएं व्यक्त की थीं और 49 दिन शासन करने के बाद भाग जाने के लिए बार-बार दिल्ली के मतदाताओं से माफी मांगते हुए अपने नाम पर लगा हुआ ‘भगौड़े’ का ठप्पा मिटाने का प्रयास करते हुए जनहित में पूरे कार्यकाल तक काम करने का आश्वासन दिया था।
 
प्रचंड जनमत के साथ अरविंद केजरीवाल की चुनावी सफलता अब राजनीतिज्ञों द्वारा आम लोगों तक पहुंच बनाने और उनसे अपील करने के तरीके में बदलाव की एक नई लहर लेकर आई है। 
 
मोटे तौर पर लोगों ने भाजपा नेतृत्व के ‘अहंकार’ को इसकी पराजय के मुख्य कारणों में से एक माना है। हालांकि भारत में अभी तक राजनीतिक दल चुनावों में जीत-हार को राजनीति अथवा चुनावों का एक हिस्सा मानते रहे हैं परंतु विजय प्राप्त करने के लिए राजनीतिज्ञों के व्यवहार में ‘विनम्रता’ का पुट एक नए रुझान का आरंभ है। 
 
पंडित नेहरू के नेतृत्व में चीन के हाथों हार देश के लिए दुखद समाचार था परन्तु उसके लिए किसी ने माफी नहीं मांगी थी। इससे पहले कोई भी चुनाव उन्होंने  ‘विनम्रता’ के आधार पर नहीं लड़ा था। इंदिरा गांधी गवर्नैंस में अपनी लगभग प्रत्येक असफलता का ठीकरा ‘विदेशी हाथ’ पर फोड़ दिया करती थीं।
 
राजीव गांधी ने भी इंदिरा गांधी की हत्या के बाद ‘जब बड़े पेड़ गिरते हैं’ जैसे मुहावरेदार वाक्य तो इस्तेमाल किए परंतु क्षमा याचना नहीं की। यहां तक कि नरेंद्र मोदी ने भी आम चुनावों से पूर्व अपने चुनावी भाषणों में ‘समग्र विकास’ और ‘एक राष्ट्र’ की बात तो कही परंतु कभी भी गुजरात के दंगों के लिए माफी नहीं मांगी। 
 
भारतीय राजनीति के इतिहास में पिछले आम चुनावों में कांग्रेस को अब तक की सबसे कम सीटें मिली हैं। सोनिया और राहुल गांधी ने पराजय को तो स्वीकार किया परंतु देश की जनता चाहती थी और उसे आशा थी कि राहुल इस पराजय की जिम्मेदारी लेते हुए यदि देशवासियों से नहीं तो कम से कम कांग्रेस के कार्यकत्र्ताओं से तो क्षमा याचना अवश्य करेंगे। यदि वह ऐसा करते तो शायद विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस को कुछ सहानुभूति के वोट तथा जनसमर्थन मिल जाता क्योंकि अब विनम्रता किसी भी नेता के लिए अत्यंत आवश्यक हो गई है। 
 
इससे ही प्रेरणा लेते हुए भारत का कार्पोरेट सैक्टर विनम्रता की महत्ता प्रदर्शित करने में काफी तेजी ला रहा है। पैप्सीको इंडिया के चेयरमैन तथा सी.ई.ओ. डी. शिवकुमार ने ‘कम्पनियां क्यों नाकामयाब अथवा कामयाब होती हैं’ विषय पर कहा कि ‘‘कम्पनियों के नाकाम होने का मुख्य कारण उनका अहंकारी नेतृत्व है। हठधर्मिता की संस्कृति सफलता के सारे द्वार बंद कर देती है क्योंकि ऐसे लोगों का विश्वास होता है कि उनका ज्ञान ही सर्वश्रेष्ठ है और कोई भी काम कैसे करना है, यह उनसे बेहतर कोई नहीं जानता। यही अहंकारवादी संस्कृति है।’’
 
ऐसे संगठन के शीर्ष पर बैठे लोग बोलते हैं और नीचे के लोग सुनते हैं जबकि एक विनम्रतापूर्ण सर्वग्राह्य संस्कृति में समूचे प्रतिष्ठान अथवा देश में विविधतापूर्ण विचारधाराएं सामने आती हैं जिसके परिणामस्वरूप ये स्पष्ट और पारदर्शी होती हैं। 
 
हार्वर्ड बिजनैस स्कूल के डीन नितिन नौहरिया ने महिलाओं के प्रति स्कूल के गत वर्ष के व्यवहार के लिए अपनी विनम्रता प्रदर्शित करते हुए हाल ही में माफी मांगी व कहा कि ‘‘यदि नेता विनम्र नहीं है और या दूसरों के विचार सुनने को तैयार नहीं है तो यह लाभदायक की बजाय हानिकारक सिद्ध होता है।’’
 
लोग विनम्रता के साथ सम्मानजनक व्यवहार की अपेक्षा रखते हैं। नई पीढ़ी अब अधिकारवादी प्रणाली के पक्ष में नहीं, वह चाहती है कि सबके साथ एक जैसा व्यवहार किया जाए और सब लोग अपनी त्रुटियों अथवा खामियों का जिम्मा लें क्योंकि  सुधार की ओर पहला पग अपनी गलतियों को स्वीकार करना है। इससे न सिर्फ किसी भी नेता को ‘शालीन’ की छवि मिलती है बल्कि वह अधिक ‘आम आदमी’ बन जाता है। 
 
कुछेक यह भी मानते हैं कि घटिया कारगुजारी के लिए इस प्रकार की क्षमायाचना आवश्यक हो जाएगी क्योंकि आने वाले समय में राजनीतिज्ञों को उनकी कार्यकुशलता से जांचा-परखा जाएगा।  

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