क्या बच्चे स्कूल में भी सुरक्षित नहीं

Monday, Oct 02, 2017 - 12:38 AM (IST)

गुडग़ांव के एक स्कूल के बाथरूम में बस कंडक्टर द्वारा दूसरी कक्षा के छात्र के यौन शोषण करने का प्रयास तथा गला रेत कर हत्या करने के बमुश्किल दो महीने बाद ही एक निजी स्कूल में एक स्वीपर को गिरफ्तार किया गया है। उस पर आरोप है कि उसने सोमवार को दो लड़कियों का शोषण किया जब वे बाथरूम से अपनी क्लास को लौट रही थीं। गुडग़ांव के डी.एल.एफ. फेज 3 में स्थित उक्त स्कूल में दोनों बच्चियां तीसरी कक्षा में पढ़ती हैं। 

यह घटना तब सामने आई जब दोनों लड़कियों में से एक लड़की ने ‘अच्छे स्पर्श’ तथा ‘बुरे स्पर्श’ के संबंध में बच्चों को समझाने के लिए आयोजित एक काऊंसलिंग सैशन के दौरान स्टाफ सदस्य को इसके बारे में बताया। कई लोग कह सकते हैं कि इन मुद्दों को मीडिया जरूरत से ज्यादा उछाल रहा है। बच्चों का यौन शोषण होने की सम्भावनाएं अब स्कूलों, दोस्तों के घरों, बाजार, यहां तक कि घरों पर भी कहीं ज्यादा हैं क्योंकि मासूम बच्चे इस तरह के खतरों से अनजान होते हैं और आसानी से डर जाते हैं जिससे वे इनके बारे में किसी से आसानी से बात नहीं कर पाते। 

यौन शोषण किसी भी सामाजिक-आर्थिक समूह के बच्चों के साथ सरकारी या निजी किसी भी स्कूल में घट सकता है परंतु कुछ ऐसे पग हैं जिन्हें उठा कर जोखिम को कम किया जा सकता है। अभिभावकों तथा स्कूलों दोनों को ये पग उठाने चाहिएं जिससे बच्चे शैक्षिक संस्थानों में स्वयं को सुरक्षित महसूस करें। इसके लिए यह भी जरूरी है कि सरकार सुनिश्चित करे कि मूल कानून सख्ती से लागू हों, जैसे कि अपराधियों को दंडित करना। 

जहां तक स्कूलों का सवाल है निगरानी के लिए ज्यादा से ज्यादा सी.सी.टी.वी. कैमरे लगाए जाने चाहिएं। एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि अपने स्कूल का नाम खराब होने से बचाने के लिए कई शिक्षक तथा प्रिंसिपल इन अपराधों की सूचना पुलिस को देते ही नहीं हैं। वास्तव में यह एक ऐसा तथ्य है जिससे यौन अपराधी को मदद मिलती है। उसे बच्चों और शिक्षकों की चुप्पी का फायदा उठा कर दोबारा ऐसा करने का मौका मिलता है। ताजा आंकड़ों के अनुसार स्कूलों में यौन शोषण के 55 प्रतिशत मामलों में नॉन-टीचिंग स्टाफ का हाथ होता है जिनमें ड्राइवर, क्लीनर, कैंटीन स्टाफ, स्कूल का मैडीकल स्टाफ, नर्सरी तथा जूनियर क्लासेज में डे केयर वर्कर, प्रबंधकीय स्टाफ आदि शामिल हैं। 

30 प्रतिशत मामलों में शिक्षक तथा बाकी स्कूल आने वाले बाहरी लोगों का हाथ होता है। ऐसे में बेहद आवश्यक है कि स्कूल अपने टीङ्क्षचग तथा नॉन-टीचिंग स्टाफ की पड़ताल अच्छे से करे। हाई कोर्ट का आदेश है कि ड्राइवर, हैल्पर, क्लीनर का फिजीयोलॉजिकल टैस्ट तथा सैशन करवाया जाना चाहिए। हालांकि, भारतीय स्कूलों में इसे लागू करना कठिन है परंतु इस दिशा में कोशिश करनी आवश्यक है। स्कूलों में कांट्रैक्ट्स पर नियुक्त किए जाने वाले स्टाफ पर भी ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि उनमें स्कूल से किसी तरह के जुड़ाव की भावना नहीं होती। स्कूल को ऐसे सारे स्टाफ की नियुक्ति से पहले पुलिस वेरिफिकेशन करवानी चाहिए। कांट्रैक्ट पर नियुक्त स्टाफ स्कूल का खर्चा घटाते हैं परंतु बच्चों की सुरक्षा के लिए वे एक बड़ा खतरा हैं। 

अभिभावकों को भी अब अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर हमेशा सतर्क रहने की जरूरत है। माता-पिता को बच्चों के जीवन का सक्रिय हिस्सा बनना होगा। उन्हें सम्भावित खतरे के शुरूआती लक्षणों के बारे में भी बताना चाहिए। उनसे केवल उनकी पढ़ाई तथा होमवर्क के बारे में ही बात करना काफी नहीं है, दिन भर की उनकी गतिविधियों के बारे में भी उनसे जानने में दिलचस्पी लें। जैसे कि उन्होंने किसके साथ लंच किया, वे किस-किस से मिले। आया, हैल्पर या ड्राइवर पर निर्भर रहने के बजाय उन्हें खुद को बच्चों की स्कूल ड्यूटी में ज्यादा शामिल करना चाहिए। अक्सर अलग-अलग समय पर उनके स्कूल जाने से स्कूल स्टाफ अलर्ट रहेगा। घर पर नियुक्त स्टाफ की भी पूरी पड़ताल करनी जरूरी है।

बच्चों को यौन शोषण के लक्षणों के बारे में बताएं तथा उनमें इतना आत्मविश्वास भर दें कि ऐसी कोई घटना होने पर वे तुरंत इसके बारे में आप से बात करें। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह बच्चों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रकोष्ठ बनाए और बच्चों के यौन शोषण के मामलों में तुरंत तथा असरदार न्याय मिलना भी आवश्यक है।

Advertising