‘अपर्णा यादव’ (छोटी बहू-मुलायम) जुड़ी भाजपा के साथ राजनीतिक परिवारों की टूटन में जुड़ा एक और अध्याय

Thursday, Jan 20, 2022 - 05:33 AM (IST)

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था जितनी मजबूत है, शासन करने वाली राजनीतिक पार्टियां और राजनीतिक परिवार उतने ही ‘कमजोर’ होने के कारण बार-बार टूट रहे हैं। 

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी देवी लाल (इनैलो) के पुत्र और पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के दोनों पुत्रों अजय सिंह चौटाला तथा अभय सिंह चौटाला में ठनी हुई है। अजय के दोनों पुत्र दुष्यंत और दिग्विजय अपनी अलग ‘जननायक जनता पार्टी’ बनाकर भाजपा सरकार में भागीदार हैं, जबकि चाचा अभय चौटाला अपनी पार्टी ‘इनैलो’ को ही देख रहे हैं। पंजाब की राजनीति में सबसे बड़े ‘बादल परिवार’ के सदस्य मनप्रीत सिंह बादल शिअद से नाता तोड़ कर कांग्रेस में चले गए थे और इस समय पंजाब सरकार में वित्त मंत्री हैं।

राजनीतिक असहमति का एक उदाहरण कांग्रेस का गांधी परिवार भी है जहां सोनिया गांधी की देवरानी मेनका गांधी और भतीजे वरुण गांधी उनसे अलग होने के बाद कांग्रेस की विरोधी पार्टी भाजपा में हैं। 

इसी प्रकार महाराष्ट्र में शिवसेना के 2006 में दोफाड़ होने के बाद उद्धव ठाकरे के चचेरे भाई राज ठाकरे ने ‘महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना’ (मनसे) बनाई। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा ) के सुप्रीमो व पूर्व मु यमंत्री मुलायम सिंह यादव के परिवार में 2017 में असहमति के स्वर उभरे जब परिवार 2 अलग-अलग खेमों में बंटता दिखाई दिया तथा मुलायम के भाई शिवपाल ने ‘समाजवादी सैकुलर मोर्चा’ बनाने की घोषणा कर दी। हालांकि अब चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश में सुलह हो गई है और शिवपाल यादव ने सपा के साथ गठबंधन करके चुनाव लडऩे का निर्णय कर लिया है परंतु उनका दल तो अलग ही है। 

इस समय जबकि उत्तर प्रदेश के चुनावों से पहले भाजपा और समाजवादी पार्टी (सपा) में एक-दूसरे के दलों के अधिक से अधिक नेताओं को अपने खेमों में खींचने की होड़ लगी हुई है, मुलायम सिंह यादव की दूसरी पत्नी साधना यादव के बेटे प्रतीक यादव की पत्नी एवं उनकी छोटी बहू अपर्णा यादव ने 19 जनवरी को भाजपा में शामिल होकर धमाका कर दिया है।
2017 में लखनऊ कैंट निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव लड़कर हार चुकी अपर्णा यादव इस बार भी वहीं से चुनाव लडऩे की इच्छुक है और इसके लिए मुलायम सिंह यादव पर दबाव डाल रही थी। 

मुलायम सिंह तथा शिवपाल यादव ने इस बारे अखिलेश से बात की थी परंतु वह किसी भी कीमत पर अपर्णा को टिकट देने को तैयार नहीं हुए। इससे परिवार में कलह पैदा हुई और अपर्णा ने भी भाजपा में शामिल होने का संकेत दे दिया जिसके नेताओं के साथ वह पहले से ही संपर्क में थी। जहां उसके आने से भाजपा खुश है वहीं अपर्णा यादव ने भाजपा में शामिल होने के बाद कहा है कि ‘‘सपा के शासन में गुंडागर्दी को इतना महत्व दिया जाता है कि बहन-बेटियां सुरक्षित नहीं थीं। शाम होते ही घरों के दरवाजे बंद हो जाते थे।’’ 

अपर्णा यादव ने तो यहां तक कह दिया है कि ‘‘प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश जी असफल रहे हैं और साथ ही वह परिवार में भी असफल रहे हैं। इसलिए वह विधानसभा चुनाव लडऩे से भी बच रहे हैं।’’ अपर्णा यादव के भाजपा में शामिल होने पर अखिलेश यादव ने कहा है कि ‘‘सबसे पहले तो मैं उन्हें बधाई देता हूं। अपर्णा जी के भाजपा में जाने की हमें सबसे ज्यादा खुशी है क्योंकि समाजवादी विचारधारा का विस्तार हो रहा है। मुझे उ मीद है कि यह विचारधारा वहां भी पहुंच कर संविधान और लोकतंत्र को बचाने का काम करेगी।’’ 

अपर्णा यादव के भाजपा में शामिल होने के संबंध में एक वर्ग का कहना है कि इससे भाजपा को लाभ होगा जबकि दूसरे वर्ग का मानना है कि इससे भाजपा को कोई लाभ होने वाला नहीं है, सिवाय इसके कि उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार के एक महत्वपूर्ण सदस्य को अपने पक्ष में करके भाजपा उसमें सेंध लगाने में सफल हो गई है। 

फिलहाल तो इतना ही कहा जा सकता है कि राजनीतिक परिवारों की टूटन की किताब में एक और अध्याय जुड़ गया है। वास्तव में राजनीतिक परिवारों में उठा-पटक का यह सिलसिला निजी महत्वाकांक्षाओं और सत्ता लोलुपता का ही परिणाम है, जिसके चलते भाई-भाई से और बेटे बाप से जुदा होकर रिश्तों-नातों को नकारते हुए ऐसा आचरण कर रहे हैं। सत्ता का मोह इन दिनों इस कदर बढ़ चुका है कि इस पर रोक लगना कठिन ही दिखाई देता है क्योंकि आज देश के हितों के मुकाबले में निजी स्वार्थ सर्वोपरि हो गए हैं।—विजय कुमार

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