हिंदू-मुस्लिम भाईचारे के ‘प्रेरणादायक उदाहरण’

punjabkesari.in Friday, May 05, 2017 - 11:31 PM (IST)

भारत शुरू से ही ‘सर्वधर्म समभाव’ और ‘सर्वजन हिताय’ की भावना में विश्वास रखता आया है। इसी के अनुरूप अमृतसर में स्थित सिखों के सर्वोच्च धर्मस्थल श्री हरि मंदिर साहिब की नींव पांचवें गुरु श्री ïअर्जुन देव जी ने एक मुसलमान ‘संत साईं मियां मीर’ से रखवाई थी। 

हरमिलाप मिशन के ग्यारहवें प्रमुख श्री मुनि हरमिलापी जी की प्रेरणा से बरेली में एक मुसलमान ‘सेठ चुन्नू मियां’ उर्फ ‘फजल रहमान’ ने लक्ष्मी नारायण मंदिर बनवाया था जिसका उद्घाटन पूर्व राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने किया था। आज जब देश में साम्प्रदायिक ताकतें लोगों में घृणा की दीवार खड़ी करने की कोशिश कर रही हैं, भाईचारे के ऐसे उदाहरण भी सामने आ रहे हैं जो इस तथ्य की गवाही भरते हैं कि हम एक थे और एक ही रहेंगे :

1 मई को सीमा पर पाकिस्तानी सेना के हाथों शहीद हुए नायब सूबेदार परमजीत सिंह की छोटी पुत्री के पालन-पोषण, शिक्षा और विवाह तक सारा खर्च कुल्लू के डिप्टी कमिश्नर यूनुस तथा उनकी पत्नी सोलन की एस.पी. अंजुम आरा ने उठाने की घोषणा की है। देश की गंगा-जमुनी तहजीब को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मध्य प्रदेश के राणापुर गांव में मोहम्मद शब्बीर मकरानी ने 26 अप्रैल को सम्पन्न अपने बेटे सलीम के विवाह के निमंत्रण पत्र पर हिन्दुओं के आराध्य ‘राधा-कृष्ण’ का चित्र छपवाया और मेहमानों के लिए भोजन भी जैन धर्म के अनुसार बनवाया। सलीम ने कहा, ‘‘कुछ समय पूर्व हमारे इलाके में किसी छोटी सी बात पर हुए आपसी टकराव में पत्थरबाजी के चलते बड़ी संख्या में लोग घायल हुए और क्षेत्र में भारी तनाव पैदा हो गया। तब मैंने फैसला किया था कि अपनी शादी में अलग-अलग धर्मों (हिन्दू, मुस्लिम और जैन) का प्रतिनिधित्व करके क्षेत्र के लोगों को भाईचारे का संदेश दूंगा।’’

इसी वर्ष मार्च में केंद्रपाड़ा (ओडिशा) में आवासीय स्कूल ‘शोभनीय शिक्षाश्रम’ में आयोजित श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों के उच्चारण की प्रतियोगिता के कनिष्ठ वर्ग में भाग लेने वाली 46 बच्चियों में से 6 वर्षीय मुस्लिम बच्ची फिरदौस ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। एक मंदिर में आयोजित इस प्रतियोगिता में इस अवसर पर फिरदौस की मां आरिफा बीबी भी मौजूद थीं। 

सोनकच्छ और इंदौर के रहने वाले लोधी परिवारों ने अपने बच्चों का निकाह मक्का शरीफ में तय किया। परिवार के सदस्यों द्वारा निकाह के लिए 24 अप्रैल को विमान द्वारा मक्का रवाना होने से पूर्व हिन्दू समुदाय के लोगों ने काली सिंध नदी के किनारे उनके लिए भावभीने विदाई समारोह का आयोजन करके हिन्दू-मुस्लिम एकता का नमूना पेश किया। 

26 अप्रैल को ही हिंसाग्रस्त जम्मू-कश्मीर में शोपियां के ‘टरपेडपुरा’ गांव में, जहां केवल तीन कश्मीरी पंडित परिवार रहते हैं और बाकी सब पलायन करके दूसरे राज्यों को जा चुके हैं, प्यारी देवी नामक कश्मीरी पंडित महिला की मृत्यु के बाद मुस्लिम समुदाय के लोगों ने ही वृद्धा की अंतिम यात्रा की सारी तैयारी करवाई और उसमें शामिल होकर विधिवत पूरी रस्मों के अनुसार उनका अंतिम संस्कार सम्पन्न करवाया। गत वर्ष 27 सितम्बर को भी कश्मीर के पुलवामा जिले के ‘वाईबुग’ गांव में 78 वर्षीय कश्मीरी पंडित रामजी कौल की मृत्यु पर पड़ोसी मुसलमानों ने न केवल शोक मनाया बल्कि उनके अंतिम संस्कार में उनके बच्चों का हाथ बंटाकर भाईचारे का प्रमाण दिया था।28 अप्रैल को बंगाल में मालदा जिले के शेखूपुर गांव में रहने वाले विश्वजीत रजक नामक एक गरीब मजदूर की कैंसर से मृत्यु के बाद परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे कि उसका अंतिम संस्कार हो पाता। 

ऐसे में इलाके के मुसलमानों ने न सिर्फ पीड़ित परिवार की आर्थिक सहायता की बल्कि ‘राम नाम सत्य है’ बोलते हुए अर्थी को कंधा देकर उसे श्मशानघाट पहुंचाया। मृतक के पिता के अनुसार गांव के सौहार्दपूर्ण वातावरण को देखते हुए कभी नहीं लगा कि यहां दो धर्मों के लोग रहते हैंं। आज जबकि देश भर में गौ रक्षा को लेकर एक विवाद छिड़ा हुआ है और इसके पक्ष-विपक्ष में तरह-तरह की आवाजें सुनाई दे रही हैं, 3 मई को मुजफ्फरनगर के ‘पुरकाजी’ कस्बे में एक मुसलमान गौभक्त ‘सरवत अली’ ने अपनी दो बीघा भूमि वहां गौशाला बनाने के लिए दान दी। एक ओर जहां इस समय देश के वातावरण में कटुता व्याप्त है, सौहार्द व भाईचारे की ये मिसालें एक प्रेरणास्रोत  हैं कि भारत से सर्वधर्म समभाव की भावना मिट नहीं सकतीे।—विजय कुमार 


 


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