सभी सरकारों ने चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को नष्ट किया : सुप्रीमकोर्ट

punjabkesari.in Thursday, Nov 24, 2022 - 04:16 AM (IST)

हालांकि चुनाव आयोग एक स्वायत्त संस्था है परंतु कई दशकों से इसकी स्वायत्तता पर कुठाराघात हो रहा है। सेवारत नौकरशाहों को मुख्य चुनाव आयुक्त एवं चुनाव आयुक्त नियुक्त करने की वर्तमान प्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस के.एम. जोसेफ के नेतृत्व वाली 5 न्यायाधीशों की पीठ ने कहा : 

‘‘चाहे कांग्रेस के नेतृत्व वाली यू.पी.ए. की सरकार रही हो या वर्तमान एन.डी.ए. की सरकार, एक के बाद एक आने वाली सरकारों ने इसकी स्वतंत्रता को पूर्णत: नष्टï कर दिया है।’’  ‘‘1996 के बाद से किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त को इसके प्रमुख के रूप में 6 वर्ष का पूरा कार्यकाल नहीं मिला है तथा मुख्य चुनाव आयुक्त के चयन संबंधी संविधान की चुप्पी का सभी राजनीतिक दलों ने अपने हित में लाभ उठाया है जिससे इसमें गिरावट आने लगी।’’ 

‘‘यू.पी.ए. सरकार के 10 वर्षों के कार्यकाल में 6 मुख्य चुनाव आयुक्त लगाए गए और वर्तमान एन.डी.ए. सरकार ने 8 वर्षों में 8 मुख्य चुनाव आयुक्त लगाए हैं। संविधान में कोई ‘चैक एंड बैलेंस’ नहीं है।’’ पीठ ने कहा कि संविधान की धारा 324 मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की बात तो करती है परंतु यह इसके लिए प्रक्रिया के बारे में नहीं बताती जिसे इस उद्देश्य का कानून बनाने के लिए संसद पर छोड़ दिया गया है लेकिन पिछले 72 वर्षों में इसने ऐसा नहीं किया जिससे केंद्र द्वारा इसका शोषण हो रहा है। 

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन को याद करते हुए पीठ ने कहा, ‘‘श्री शेषन ने चुनाव आयोग को स्वतंत्र बनाने के लिए कई निर्णय लिए। आयोग को उन जैसे व्यक्ति की आवश्यकता है। बिना प्रभावित हुए स्वतंत्र निर्णय लेने के लिए व्यक्ति का चरित्र महत्वपूर्ण है। हमें ऐसा व्यक्ति चाहिए।’’ 

इस संबंध में पीठ ने कहा कि ‘‘किसी से भी प्रभावित हुए बिना स्वतंत्रता पूर्वक निर्णय लेने में सक्षम मजबूत चरित्र वाले गैर राजनीतिक व्यक्ति को इस पद पर लगाना यकीनी बनाया जाए। चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति निष्पक्ष और पारदर्शी होनी चाहिए।’’ पिछले कुछ समय के दौरान जिस प्रकार चुनाव आयोग की कार्यशैली पर प्रश्र चिन्ह लगे हैं उन्हें देखते हुए शीर्ष अदालत के सुझावों को जल्द से जल्द लागू करना चाहिए ताकि सरकारों की आलोचना रुके।—विजय कुमार 


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