‘जेलों में कोरोना महामारी’ से बचाव के लिए सभी ‘महिला कैदियों को रिहा किया जाए’

punjabkesari.in Saturday, Oct 10, 2020 - 03:02 AM (IST)

गत वर्ष अप्रैल में जारी ‘अपराध रिकार्ड ब्यूरो’ के आंकड़ों के अनुसार देश की 1400 जेलों में बंद कैदियों में 1649 महिलाएं ऐसी हैं जो अपने 1942 बच्चों के साथ जेलों में बंद हैं क्योंकि नियमों के अनुसार 6 साल के बच्चों को मां के साथ जेल में रहने की अनुमति है। कुछ विद्वानों ने महिला कैदियों को ‘कस्टोडियल मायनारिटी’ या ‘हिरासत में अल्पसंख्यक’ करार दिया है। 

भारत में ‘इम्प्रिजन डैश बोर्ड’ के अनुसार जून में देश की जेलों में 65 प्रतिशत के लगभग विचाराधीन महिला कैदियों सहित लगभग 23,000 महिला कैदी बंद थीं जबकि लॉकडाऊन के दौरान भी गिरफ्तारियां हुई हैं। वर्ष 2005 के ‘आपदा प्रबंधन कानून’ में जेलों को संक्रमण का ‘हॉट स्पॉट’ कहा गया है, अत: वर्तमान हालात में जेलों में कोरोना महामारी की शृंखला को तोडऩे के लिए वहां कैदियों की भीड़ को कम करना जरूरी है। इसी कारण विश्व स्तर पर एक बहस यह भी छिड़ी हुई है कि क्यों न जेलों में बंद अतिसंवेदनशील व्यक्तियों, विशेषकर महिला कैदियों को महामारी से बचाने के लिए रिहा कर दिया जाए। 

इसकी नजीर पेश करते हुए मई में न्यूयार्क की जेलों से चंद गर्भवती महिला कैदियों को रिहा किया गया। इंगलैंड तथा इथोपिया में भी चंद गर्भवती और छोटे बच्चों वाली महिला कैदियों को रिहा किया गया है। बेशक विश्व भर की जेलों में बंद कैदियों, विशेष रूप से महिलाओं पर कोरोना महामारी के दुष्प्रभाव की चर्चा हो रही है, लेकिन भारत में इसकी ओर कम ही लोगों का ध्यान है हालांकि भारतीय जेलों में कैद काट रही महिलाओं की स्थिति अत्यंत दयनीय है और वे भी इस खतरे से मुक्त नहीं हैं। 

* मध्य प्रदेश की शहडोल जेल में 14 महिला कैदी कोरोना पॉजिटिव पाई गईं। उनमें से एक महिला के साथ उसका डेढ़ वर्ष का बच्चा भी था। 
* जम्मू-कश्मीर की जिला जेल अम्बफला में 4 महिला कैदियों सहित 80 कैदी कोरोना संक्रमित पाए जा चुके हैं। 
* मुम्बई की बायकुला जेल में भी महिला कैदी संक्रमित पाई गई हैं।
* महाराष्ट्र की ठाणे जेल में एक गर्भवती कैदी कोरोना पॉजिटिव पाई गई।
* पटियाला सैंट्रल जेल में कुछ महिला कैदियों को कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद आइसोलेट किया गया।
* लुधियाना सैंट्रल जेल में भी एक महिला कैदी संक्रमित पाई गई है। 

कुछ इसी तरह के हालात को देखते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने  गृह, महिला एवं बाल विकास, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, सामाजिक न्याय, श्रम एवं ग्रामीण विकास मंत्रालय सहित अनेक मंत्रालयों, राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों का ध्यान महिलाओं, विशेष रूप से समाज के कमजोर वर्ग की महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की ओर दिलाते हुए एक विस्तृत एडवाइजरी जारी की है। इस एडवाइजरी में कहा गया है कि ‘‘सभी गर्भवती महिला कैदियों तथा जिन महिला कैदियों के साथ उनके बच्चे हैं उन्हें अनिवार्य रूप से जेलों से रिहा किया जाना चाहिए।’’  इसके साथ ही आयोग ने महिलाओं के लिए गारंटीशुदा रोजगार के अवसर पैदा करने की सलाह भी दी है। 

कोरोना महामारी के प्रकोप को देखते हुए मानवाधिकार आयोग का यह सुझाव उचित है बल्कि हम तो समझते हैं कि इस सुझाव का दायरा सभी महिला कैदियों तक कर देना चाहिए ताकि जेलों में भीड़ कुछ कम हो सके। ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि भीड़भाड़ की शिकार भारतीय जेलों में कैदियों की आक्युपैंसी दर 114 प्रतिशत है जबकि स्टाफ की 33 प्रतिशत कमी हैै।—विजय कुमार 


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