अमृतसर की दुर्घटना के लिए प्रशासन, रेलवे, आयोजक व जनता भी कुछ जिम्मेदार

punjabkesari.in Sunday, Oct 21, 2018 - 04:08 AM (IST)

19 अक्तूबर को दशहरा पर्व पर जब अमृतसर में जौड़ा फाटक से 60 फुट दूर धोबीघाट में रेल की पटरी पर खड़े होकर लोग ‘रावण दहन’ का कार्यक्रम देख रहे थे, तभी यह हृदय विदारक अनहोनी हो गई। रेल की पटरी पर आ गई हावड़ा मेल से बचने के लिए लोग दूसरे ट्रैक पर भागे पर उस पर भी तेज गति से डी.एम.यू. आ रही थी जो रेल पटरी पर खड़े होकर एल.ई.डी. पर ‘रावण दहन’ देख रहे लोगों के ऊपर से गुजर गई। इससे सरकारी सूत्रों के अनुसार कम से कम 61 लोगों की मृत्यु हो गई जबकि सैंकड़ों लोग घायल हो गए व 100 मीटर से 150 मीटर के दायरे में जगह-जगह लाशें ही लाशें बिखर गईं। 

इस घटना के संबंध में अनेक प्रश्न उठाए जा रहे हैं : 
लोगों का कहना है कि भीड़भाड़ वाला इलाका होने के कारण यहां से गुजरने वाली रेलगाडिय़ों की रफ्तार कम होनी चाहिए थी। यदि रावण दहन समय पर होता तो सबकी जान बच सकती थी। ‘हत्यारी गाड़ी’ का समय 6.50 बजे था पर वह भी पांच मिनट लेट आई। रेलवे और प्रशासन को पता था कि हर साल रेल पटरी के किनारे ‘रावण दहन’ होता है परंतु इसके बावजूद कोई चेतावनी जारी नहीं करने के कारण गाड़ी तेज रफ्तार से आई और इंजन ड्राइवर भी सतर्क नहीं था। रेल ट्रैक के इतना निकट रावण दहन की अनुमति प्रशासन ने कैसे दी और वहां संतोषजनक सुरक्षा प्रबंध क्यों नहीं किए गए? नगर निगम के साथ-साथ पुलिस प्रशासन की भूमिका भी कटघरे में है। दशहरे को लेकर हाई अलर्ट होने के बावजूद पुलिस ने कोई सुरक्षा प्रबंध नहीं किया। हालांकि 4000 से अधिक भीड़ पहुंचने वाली थी परंतु पुलिस विभाग ने कुछ पुलिस कर्मियों के सहारे ही पूरा आयोजन छोड़ दिया। 

निगम कमिश्नर सोनाली गिरि के अनुसार आयोजकों ने ‘रावण दहन’ के लिए अनुमति नहीं ली थी जबकि आयोजक पार्षद विजय मदान के अनुसार उन्होंने इसकी जानकारी डी.सी.पी. को दी थी। हरी बत्ती होने पर भी लोग पटरी पर रहे और स्थानीय प्रशासन व पुलिस के सदस्य घटनास्थल पर देर से पहुंचे। हमेशा की तरह इस बार भी किसी अकस्मात आपदा से निपटने के मामले में चिकित्सा प्रबंध अपर्याप्त साबित हुए। अस्पतालों में खून और जीवन रक्षक दवाओं की कमी थी। गुरु नानक देव अस्पताल तथा सिविल अस्पताल रोगियों की मरहम पट्टी तक ही सीमित रहे। हालांकि रेलवे ने घटना की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है परंतु देखा जाए तो इसके लिए रेलवे के साथ-साथ अन्य सभी लोग जिम्मेदार हैं। रेलवे प्रशासन की ओर से भी यहां से गुजरने वाली गाडिय़ों के चालकों को धीमी गति रखने संबंधी चेतावनी दी जानी चाहिए थी। 

आयोजक रेल लाइनों के निकट ‘रावण दहन’ आयोजित करने के लिए और आम लोग रेल लाइनों के बीच खड़े होकर ‘रावण दहन’ देखने की अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। भले ही यह दुर्घटना अमृतसर में हुई है परंतु देश में अनेक स्थान होंगे जहां रेल लाइनों के निकट ऐसे आयोजन होते होंगे। लुधियाना में भी अनेक स्थानों पर बिना अनुमति रेल लाइनों के निकट दशहरा मनाया जाता है। प्रशासन को चाहिए कि ऐसे आयोजनों के लिए पूर्व स्वीकृति लेना अनिवार्य किया जाए और जहां रेल लाइन आदि निकट होने के कारण किसी प्रकार की अप्रिय घटना का खतरा हो वहां इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। आमतौर पर स्टेशन से रवाना होते समय गाड़ी की गति कम रखी जाती है। विशेष रूप से त्यौहार के दिनों में तो इस ओर विशेष ध्यान देना चाहिए और शहर की सीमा में गाड़ी की गति कम रखी जाए। आम लोगों को भी रेल लाइनों के बीच खड़े होने और लापरवाही बरतने से संकोच करना चाहिए। रेलवे पटरियों पर खड़े होकर वीडियो बनाना और सैल्फी लेना भी उचित नहीं है, जैसा कि यहां देखा गया। 

बहरहाल, अमृतसर ‘रावण दहन कांड’ के पीड़ितों के घावों पर ‘मरहम’ लगाते हुए पंजाब सरकार ने मृतकों के आश्रितों को 5 लाख रुपए प्रत्येक और केंद्र सरकार ने 2 लाख रुपए क्षतिपूर्ति देने के अलावा घायलों के मुफ्त इलाज की घोषणा की है परंतु इतना ही काफी नहीं है। न सिर्फ ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए पुख्ता प्रबंध करने की जरूरत है बल्कि मृतकों और घायलों के आश्रितों को केंद्र व पंजाब सरकार तथा रेल मंत्रालय द्वारा नौकरी देने की भी आवश्यकता है ताकि वे अपने परिवारों का भरण-पोषण कर सकें।—विजय कुमार 


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Pardeep

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