लोकतंत्र के लिए सबसे हानिकारक रुझान

Monday, May 30, 2016 - 01:59 AM (IST)

राज्यसभा के 55 सांसद अगले महीने सेवानिवृत्त हो रहे हैं और पहले से रिक्त दो सीटों सहित इन सीटों के लिए चुनाव 11 जून को होने तय हैं और देश के 15 राज्य ऊपरी सदन के नए सांसदों का चयन करेंगे। हालांकि जिन चार राज्यों में अप्रैल-मई में विधानसभा चुनाव हुए हैं उनमें से तीन राज्य असम, केरल तथा बंगाल राज्यसभा चुनावों का हिस्सा नहीं होंगे। उत्तर प्रदेश (11 सीटें), तमिलनाडु व महाराष्ट्र (6), बिहार (5), आंध्र प्रदेश, कर्नाटक व राजस्थान (4) नए राज्यसभा सांसद चुनेंगे। 
 
जिन सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है उनमें से सर्वाधिक भाजपा (15), कांग्रेस (13) तथा बसपा (6) के सदस्य हैं। कांग्रेस अपनी रिक्त हो रही 13 सीटों में से केवल 9 पर वापस अपने सदस्यों का चयन करवा सकेगी जिससे वहां उसके कुल सदस्यों की संख्या कम होकर 60 रह जाएगी। 
 
भाजपा में गम्भीर चर्चा जारी है जिसके राज्यसभा में सांसदों की संख्या कुछ बढ़ कर 49 से 53 होने की सम्भावना है। सुशील मोदी तथा केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण को राज्यसभा के सांसद बनाने पर विचार हो रहा है। वहीं कांग्रेस कपिल सिब्बल, पी. चिदम्बरम तथा अपने अन्य नेताओं के नामों पर विचार कर रही है ताकि वह पुरजोर तरीके से राज्यसभा में अपनी नीतियों को रख सके। दूसरी ओर एक पार्टी जिसने राज्यसभा के लिए अपने उम्मीदवारों के नाम तय भी कर लिए हैं वह है आर.जे.डी.। पार्टी द्वारा वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी तथा लालू यादव की बेटी मीसा भारती को मनोनीत करने की सम्भावना है। 
 
जहां अधिकतर लोग वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी के नाम पर सहमत दिखाई देते हैं वहीं मीसा के नाम पर अनेकों को आपत्ति हो रही है। बेशक उसके अपनी मां राबड़ी देवी का स्थान लेने की अटकलें हों, वह इसके लिए पहली पसंद नहीं थी। राजनीतिक महत्वाकांक्षी मीसा ने पहले अपने परिवार पर दबाव डाला था कि उसे नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में उसके भाइयों के साथ शामिल किया जाए लेकिन परिवार की एक लम्बी बैठक के बाद इस मामले को टाल दिया गया परंतु इस बार वह अपने फैसले पर अटल थी और अपने पिता पर दबाव बनाने में सफल रही। 
 
सबसे पहले मीसा तब सुॢखयों में आई थी जब उसे पटना मैडीकल कॉलेज में सीट दी गई थी क्योंकि यह माना जाता था कि वह कोई मेधावी छात्रा नहीं है। दूसरी बार उसे लेकर विवाद तब पैदा हुआ जब उसने गाइनाकालोजी में डिसटिक्‍शन सहित एम.बी.बी.एस. परीक्षा में टॉप किया। तब परीक्षा परिणाम में हेरफेर किए जाने की चर्चा थी।
 
हालांकि, यह सिर्फ और सिर्फ आर.जे.डी. का चयन होगा कि वे अपने सदस्य के रूप में किसे राज्यसभा में भेजते हैं, बुद्धिजीवियों में इस मुद्दे पर असंतोष स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है। 2011 में पैट्रिक फ्रैंच ने भारतीय लोकतांत्रिक तंत्र पर एक पुस्तक ‘इंडिया: ए पोट्र्रेट’ में लिखा था कि राजनीतिक दलों में वंशवाद जारी रहा तो एक बार फिर से भारत वंशवाद के राजतंत्र के गर्त में समा सकता है। 
 
न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के पॉलिटिकल साइंटिस्ट कंचन चंद्र ने पाया कि नई संसद के 21 प्रतिशत सांसद राजवंशीय पृष्ठभूमि के हैं। इनकी संख्या यू.पी.ए. सरकार के वक्त के 29 प्रतिशत से कम हुई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल में भी 24 प्रतिशत सांसद राजवंशीय हैं। 
 
संसद में 36 राजनीतिक दलों में से 36 प्रतिशत नेताओं के पारिवारिक सदस्य उनसे पहले सांसद रह चुके हैं। ऐसा इसीलिए है क्योंकि 46 प्रतिशत भारतीयों को वंशगत उम्मीदवारों का साथ देने में कोई आपत्ति नहीं है। वास्तव में अब तो ‘हाइपर हैरिडेटरी’ (अति-वंशगत) चलन भी आम हो चला है यानी एक ही परिवार के कई सदस्य संसद का हिस्सा बन रहे हैं। 
जानकारों के अनुसार लोकतंत्र के लिए यह रुझान सबसे ज्यादा हानिकारक है क्योंकि ऐसे सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के हित में कार्य करने के लिए प्रेरित नहीं होते। 
 
हालांकि, भारत सामाजिक व सांस्कृतिक रूप से संघीय है परंतु यदि सदन के ऊपरी या निचले सदन में परिवार के आधार पर सदस्य चुने जाएंगे तो इसका राजनीतिक तंत्र अवश्य  खराब हो सकता है। कई राजनीतिक दल यह दलील देते हैं कि जब एक हीरो का बेटा हीरो या एक डॉक्टर का बेटा डॉक्टर बन सकता है तो क्यों एक राजनीतिज्ञ का बेटा अपने पिता के नक्शे कदमों पर न चले। परंतु क्या एक राजनीतिज्ञ का बेटा इस क्षेत्र में नाम कमाने के लिए जरूरी मेहनत तथा ईमानदारी दिखा सकेगा?
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