अभी बड़ी संख्या में जनता द्वारा लोकतंत्र का फल चखना बाकी : न्यायमूर्ति चंद्रचूड़

Tuesday, Aug 09, 2022 - 03:31 AM (IST)

हमारे सत्ताधारियों को न्यायपालिका की खरी-खरी बातें चुभती हैं, परंतु आज जहां कार्यपालिका और विधायिका निष्क्रिय हो रही हैं, न्यायपालिका जनहित के महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकारों को झिंझोड़ने के साथ-साथ शिक्षाप्रद टिप्पणियां भी कर रही है। इसी संदर्भ में सुप्रीमकोर्ट के जज न्यायमूर्ति धनंजय वाई. चन्द्रचूड़ ने कहा है कि : 

‘‘भारत का राजनीतिक लोकतंत्र तब तक ‘संकट’ में रहेगा जब तक इसे सामाजिक लोकतंत्र तथा सामाजिक न्याय का समर्थन नहीं मिलता। देश की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ अनिवार्य रूप से अपने भीतर झांकने का एक अवसर होना चाहिए क्योंकि देश में आज भी बड़ी संख्या में महिलाओं और अन्य अनेक समुदायों के लोगों द्वारा लोकतंत्र का फल चखना बाकी है।’’ नई दिल्ली में एक विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में बोलते हुए उन्होंने संविधान में बताए आदर्शों को प्राप्त करने के लिए देश में सामाजिक लोकतंत्र को बढ़ावा देने का आह्वान किया और कहा : 

‘‘1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से देश ने अनेक बड़ी सफलताएं प्राप्त की हैं परंतु स्वतंत्रता दिवस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को याद करने का एक और रस्मी समारोह बन कर ही नहीं रह जाना चाहिए और देखना चाहिए कि हम अपने संविधान निर्माताओं द्वारा संविधान में बताए गए बुनियादी आदर्शों को पूरा करने में कितना सफल हुए हैं।’’ 

‘‘विरासत में मिले सामाजिक और आर्थिक ढांचे के परिणामस्वरूप अनेक नागरिकों को अभी भी सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में समानता नहीं मिली जबकि बाबा साहिब डा. भीमराव अंबेदकर ने कहा था कि, ‘जब तक हमारे वर्तमान राजनीतिक लोकतंत्र में सामाजिक लोकतंत्र को शामिल नहीं किया जाएगा, तब तक यह हमारे किसी काम का नहीं।’’ 

‘‘बेशक विभिन्न कानूनों के जरिए सबको एक समान अवसर प्रदान करने की बात कही गई है, परन्तु भेदभाव भरे माहौल में लोगों के बीच अवसरों का बंटवारा समान रूप से नहीं किया गया है। परिणामस्वरूप जिनके पास पहले से ही बहुत कुछ है, उनके लिए तो और अवसरों के दरवाजे खुल रहे हैं, लेकिन जिनके पास नहीं है, उनके लिए अवसरों के दरवाजे बंद हैं।’’ ‘‘अत: सामाजिक न्याय प्रदान करने और अनिवार्य रूप से सभी के लिए एक-समान अवसर उपलब्ध करने के लिए संघर्ष करना चाहिए। विशेषकर वंचित समुदायों के लोगों को सशक्त करने के लिए काम करने की आवश्यकता है।’’ 

‘‘इस पर भी आत्ममंथन करना चाहिए कि क्या महिलाओं को अपनी स्वतंत्रता का उपभोग करने व प्रभावशाली ढंग से सार्वजनिक जीवन में भाग लेने की दिशा में पर्याप्त अवसर उपलब्ध करवाए गए हैं? महिलाओं की क्षमताओं और स्वतंत्रताओं को बढ़ावा देने वाले कानून अपर्याप्त व सीमित हैं।’’ न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ द्वारा टिप्पणियों के माध्यम से सरकार और समाज को आइना दिखाने का यह कोई पहला अवसर नहीं है। कुछ समय पूर्व उन्होंने कहा था कि ‘‘असहमति को एक सिरे से राष्ट्र विरोधी और लोकतंत्र विरोधी बता देना लोकतंत्र पर हमला है। विचारों को दबाना देश की अंतरात्मा को दबाने के समान है।’’ 

‘‘सवाल करने की गुंजाइश को समाप्त करना और असहमति को दबाना सभी तरह की प्रगति, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, सामाजिक बुनियाद को नष्ट कर देता है और इन अर्थों में असहमति लोकतंत्र का एक ‘सेफ्टी वाल्व’ है।’’ 

‘‘इस तरह हर सरकार को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि वह अपनी मशीनरी को कानून के दायरे में विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संरक्षण के लिए तैनात करे और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगाने या डर की भावना पैदा करने की किसी भी कोशिश को नाकाम करे। विचार-विमर्श या संवाद करने की प्रतिबद्धता प्रत्येक लोकतंत्र का, विशेष रूप से सफल लोकतंत्र का, अनिवार्य तत्व है।’’ श्री चंद्रचूड़ ने अपनी उक्त टिप्पणियों से समाज और सरकार को समान रूप से आइना दिखाया है जिन पर संबंधित पक्षों द्वारा गंभीरतापूर्वक चिंतन- मनन तथा अमल करने के लिए तुरंत हरकत में आने की जरूरत है, ताकि देश आगे बढ़े व आम लोगों की कठिनाइयां कम हो सकें।—विजय कुमार    

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