आदरणीय पिता लाला जगत नारायण जी की 43वीं पुण्यतिथि पर चंद यादें!

punjabkesari.in Monday, Sep 09, 2024 - 05:28 AM (IST)

पूज्य पिता लाला जगत नारायण जी को हमसे बिछुड़े आज 43 वर्ष हो गए हैं। उनका जन्म 31 मई, 1899 को वज़ीराबाद (पाक) में श्री लखमी दास चोपड़ा व श्रीमती लाल देवी के घर में हुआ और वह उनकी इकलौती संतान थे। सन् 1900 में वह अपने परिवार के साथ लायलपुर आ गए। मैट्रिक करने के बाद 1919 में लाहौर के डी.ए.वी. कालेज से बी.ए. की डिग्री लेने के पश्चात 1920 में पिता जी ने लॉ कालेज लाहौर में पढ़ाई शुरू की परन्तु महात्मा गांधी द्वारा ‘असहयोग आंदोलन’ का आह्वान करने पर देश की आजादी की लड़ाई लड़ते हुए वह पढ़ाई छोड़ सत्याग्रह में कूद पड़े। 1921 में इस आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें जेल जाना पड़ा और वह 1924 में जेल से रिहा हुए। जेल में उन्होंने लाला लाजपत राय के सैक्रेटरी के रूप में काम किया। 

पिता जी ने 1930 में गांधी जी के ‘नमक सत्याग्रह’ आंदोलन में भी भाग लिया और 1932 में जब गांधी जी ने मदिरापान के विरुद्ध आंदोलन चलाया तो पिता जी को इसमें हिस्सा लेने पर फिर जेल जाना पड़ा। पिता जी के जेल जाने के बाद मेरी माता शांति देवी जी ने भी मुझे गोद में उठाया और घर में 3 छोटे बच्चों को छोड़ कर सत्याग्रह में चली गईं। तब मेरी आयु 2 माह थी और हम दोनों 8 महीने जेल में ही रहे। पिता जी 1941 में ‘सत्याग्रह आंदोलन’ के दौरान डेढ़ वर्ष जेल में रहे तथा इसके अलावा स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विभिन्न आंदोलनों में कुल 9 वर्ष जेल में रहे। वह देश विभाजन से पूर्व लाहौर कांग्रेस के प्रधान थे परंतु अंतत: देश विभाजन के बाद हमारा परिवार भी लाहौर (पाक) छोड़ कर जालन्धर आ गया। जालंधर (भारत) आकर पिता जी ने 4 मई, 1948 को ‘ङ्क्षहद समाचार’ (उर्दू), 13 जून, 1965 को ‘पंजाब केसरी’ और 21 जुलाई, 1978 को ‘जग बाणी’ (पंजाबी) का प्रकाशन आरंभ किया। 

पूज्य पिता जी 1952 में पंजाब में चुनावों के बाद राज्य के शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवहन मंत्री बनाए गए जिससे उन्होंने बाद में त्यागपत्र दे दिया और कांग्रेस छोड़कर राज्यसभा के निर्दलीय सदस्य चुने गए। आतंकवाद के विरुद्ध संघर्षरत रहे पिता जी 9 सितम्बर, 1981 के दिन भी पटियाला में नेत्र चिकित्सा शिविर का उद्घाटन करके जालंधर आ रहे थे जब आतंकवादियों ने उनका पीछा करते हुए लाढूवाल के निकट उन्हें गोलियों से शहीद कर दिया। जब मैं अपने अतीत पर दृष्टिïपात करता हूं तो मुझे गर्व होता है कि मेरे पूज्य पिता जी और पूज्य माता जी ने देश की स्वतंत्रता में अपना भरपूर योगदान डाला। पूज्य पिता जी के बलिदान के कुछ समय बाद अपने समाचारपत्रों में आतंकवाद के विरुद्ध लिखने के कारण ही आतंकवादियों ने 12 मई, 1984 को मेरे बड़े भाई रमेश चंद्र जी की भी हत्या कर दी। उस समय पूज्य पिता जी के पोते पढ़ाई कर रहे थे और उन्हें पढ़ाई के अंतिम वर्षों में दफ्तर के काम में भी सहयोग देना शुरू करके तीनों अखबारों का कामकाज संभालना पड़ा। 

2011 में ‘पंजाब केसरी’ और ‘जग बाणी’ के डिजीटल प्लेटफार्मों, फेसबुक ऐप, ट्विटर, यू ट्यूब आदि भी शुरू कर दिए गए हैं जिन पर प्रतिदिन 2 करोड़ वीडियो व्यू आते हैं और ‘पंजाब केसरी’ तथा ‘जग बाणी’ की वैबसाइट तथा एप्लीकेशन पर हर महीने 1 करोड़ यूजर्स विजिट करते हैं। बाद में 6 अगस्त, 2013 को नई दिल्ली से ‘पंजाब केसरी परिवार’ के नए अखबार ‘नवोदय टाइम्स’ तथा इसके डिजीटल संस्करण का भी प्रकाशन आरंभ कर दिया गया। पूज्य पिता जी की याद में उनके पड़पोतों ने जरूरतमंदों को उपलब्ध करवाने के लिए रक्त जुटाने के उद्देश्य से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड,मध्य प्रदेश, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, झारखंड, जम्मू, चंडीगढ़ और राजस्थान में रक्तदान कैम्प लगाए और गत वर्ष 13512 यूनिट रक्त एकत्रित किया गया था। यह सब देख कर मुझे अच्छा लग रहा है कि मेरे महान माता-पिता ने जो कुछ देश के लिए किया वही आज उनकी संतानें अपने देश और समाज के लिए कर रही हैं। 

हमेशा परोपकार की भावना से ओतप्रोत पूज्य पिता जी ने विभिन्न आपदा पीड़ितों के लिए अनेक राहत कोष शुरू किए तथा 1966 बिहार, बंगला देश और आंध्र प्रदेश राहत कोषों में लाखों रुपए एकत्रित करके दिए। पूज्य पिता जी द्वारा शुरू किए गए राहत कोषों का वह सिलसिला अभी भी जारी है और उनके बलिदान दिवस पर उन्हें श्रद्धांजलि अॢपत करते हुए हम यह संकल्प लेते हैं कि जिन आदर्शों और सिद्धांतों के लिए पूज्य पिता  जीवन भर कायम रहे हम भी उन्हीं के आदर्शों और सिद्धांतों पर समॢपत रह कर देश और समाज की सेवा करते रहेंगे।—विजय कुमार 


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