‘चंद भूली-बिसरी यादें’ ‘एमरजैंसी की’

Friday, Jun 26, 2020 - 03:14 AM (IST)

26 जून, 1975 को हम आदरणीय पिता लाला जगत नारायण जी के साथ हरिद्वार जा रहे थे। हम कुरुक्षेत्र में रुके और हमें रेडियो पर प्रसारित समाचारों द्वारा देश में एमरजैंसी लगने का समाचार मिला। यह सुनते ही पिता जी ने तुरंत वापस जालंधर चलने के लिए कह दिया। हम लगभग 2 बजे जालंधर पहुंच गए और कुछ ही देर बाद पुलिस अधिकारियों ने आकर कहा,‘‘लाला जी हमें आपको गिरफ्तार करना है।’’ इस पर लाला जी ने कहा कि मैं शाम 5 बजे गिरफ्तारी दूंगा। तब तक हमारे निवास के बाहर लोगों की भीड़ जुटने लगी थी और शाम को पुलिस उन्हें गिरफ्तार करके जालंधर जेल में ले गई। पंजाब में एमरजैंसी के दौरान यह पहली गिरफ्तारी थी और वह 19 महीने जेल में रहे। 

उन दिनों श्रीमती इंदिरा और संजय गांधी तथा एमरजैंसी के विरुद्ध काफी पम्फलेट आदि छप रहे थे। जब मैं तथा रमेश जी उनसे जेल में मिलने गए तो हम अपने साथ वह सब वहां ले गए। इन्हें लाला जी ने बाद में राजनीतिक बंदियों में बांट दिया जिन्हें पढ़ कर उन सबका समय अच्छा बीतने लगा। जेल में लाला जी के साथ वहां के स्टाफ द्वारा अधिक अच्छा व्यवहार करने और एमरजैंसी संबंधी लिटरेचर पहुंचने की सी.आई.डी. की रिपोर्ट पर उन्हें वहां से ट्रांसफर करके फिरोजपुर जेल भेज दिया गया। वहां जनसंघ के नेताओं के अतिरिक्त ज. गुरचरण सिंह टोहरा सहित बड़ी संख्या में अकाली नेता भी कैद थे। वहां भी जेल के कर्मचारियों व अधिकारियों के सहयोग से समाचारपत्र एवं गुप्त साहित्य पहुंचाने का इंतजाम हो गया। हम उन्हें जो लिटरेचर देकर आते वह राजनीतिक कैदियों में बंट जाता। उन दिनों वहां के जेल अधीक्षक के पिता ने अपने सुपुत्र को पत्र लिखा कि ‘‘लाला जी तेरी जेल में हैं तो समझो तुम्हारा पिता ही जेल में है। इसलिए उनकी सेवा में कोई कमी न आए।’’ 

फिरोजपुर जेल में बंदियों में कुछ जनसंघ और अकाली दल के सदस्य भी शामिल थे, उनमें पैरोल पर जाने का आवेदन करने की चर्चा होने लगी तो लाला जी ने उन्हें ऐसा न करने की सलाह दी तथा कहा कि बाहर जाते ही पुलिस उन्हें फिर गिरफ्तार कर लेगी और यहां जेल में ले आएगी। अकाली तो मान गए पर जनसंघ के सदस्य न माने और बाहर आने पर अभी उन्होंने ब्यास नदी भी पार नहीं की थी कि उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया जिस पर वापस जेल में आने पर उन्होंने कहा, ‘‘लाला जी आपकी बात सही थी।’’ फिरोजपुर जेल में लाला जी का अफसरों द्वारा ध्यान रखने व लिटरेचर आदि बंटने की शिकायत पर उन्हें नाभा जेल में भेज दिया गया और नाभा जाने पर वहां के जेलर ने भी उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया तथा सदैव उनसे सहयोग किया। 

कुछ ही दिनों के बाद लाला जी को पटियाला जेल भेज दिया गया। वहां उनके पहुंचने के चंद दिन बाद ही श्री चंद्रशेखर जी भी वहां आ गए जो बाद में भारत के प्रधानमंत्री बने। उनके काल-कोठरी में होने का लाला जी को जब पता चला तो लाला जी ने उन्हें एमरजैंसी विरोधी पत्रिकाएं व पम्फलेट आदि भेजने शुरू कर दिए। बाद में जब चंद्रशेखर जी लाला जी के बलिदान के बाद उनके श्रद्धांजलि समारोह में जालंधर आए तो उन्होंने कहा कि ‘‘जब जेल में मुझे किसी ने नहीं पूछा तो लाला जी ने ही मुझे पत्र-पत्रिकाएं पढऩे के लिए भेजीं।’’ जब लाला जी को लगा कि उन्हें इसी तरह एक जेल से दूसरी जेल में बदला जाता रहेगा तो उन्होंने पटियाला जेल में रहते हुए ही अपनी आंखों, एनजाइना, हाइड्रोसील व हाथ की तकलीफ के ऑप्रेशन भी राजेंद्रा अस्पताल में डा. धनवंत सिंह तथा डा. के.सी. सारोवाल की देखरेख में करवाने का फैसला ले लिया। 

उन्हीं दिनों लोकसभा अध्यक्ष श्री गुरदयाल सिंह ढिल्लों ‘पंजाब केसरी’ के कार्यालय में आए। उस समय रमेश जी सरकार द्वारा हम पर किए हुए मुकद्दमों के सिलसिले में चंडीगढ़ गए हुए थे और मैं दफ्तर में बैठा काम कर रहा था। उन्होंने मुझ से लाला जी का कुशल-क्षेम पूछा तो मैंने उनसे कहा, ‘‘एमरजैंसी लगी है, ऐसे में आपने यहां दफ्तर आने का जोखिम क्यों उठाया?’’ वह बोले, ‘‘क्या मैं यहां नहीं आ सकता? लाला जी मेरे परम मित्र हैं और चूंकि वह बीमार हैं इसलिए उनके पास परिवार के सदस्यों का रहना जरूरी है। मैं अमृतसर जाकर जैल सिंह को फोन करता हूं। आप लोग तैयार हों।’’ 

उन्होंने उसी दिन पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह से लाला जी की देखभाल के लिए पटियाला के राजेंद्रा अस्पताल में हमारे परिवार के एक पुरुष व एक महिला को रहने की स्वीकृति देने को कह दिया। इसके बाद मेरी भाभी जी और मेरी पत्नी नियमित रूप से बारी-बारी एक-एक सप्ताह वहां उनकी देखभाल के लिए रहने लगीं। मैं भी रोज शाम साढ़े पांच बजे जालंधर से पटियाला के लिए चल कर 8 बजे वहां पहुंच जाता। अगले दिन सुबह 7.30 बजे उनके साथ नाश्ता करने के बाद मैं जालंधर 10 बजे आ जाता और यह सिलसिला लाला जी के रिहा होने तक जारी रहा। श्री ढिल्लों के कहने पर ज्ञानी जैल सिंह ने अस्पताल आकर लाला जी से मिलने की योजना बनाई। 

प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी स्व. गोपाल सिंह कौमी के सुपुत्र जोगेंद्र सिंह कौमी जो उन दिनों पटियाला के उपायुक्त थे, ने इसकी सूचना लाला जी को अस्पताल में आकर दी तो उन्होंने जोगिन्द्र सिंह कौमी से कहा, ‘‘वह अस्पताल में मुझसे मिलने यहां कभी नहीं आएंगे।’’ हुआ भी ऐसा ही। वह लाला जी से मिलने पटियाला दाखिल हो गए। उनके साथ कार में बैठे उनके एक कांग्रेसी दोस्त ने उन्हें बार-बार समझाया कि लाला जी विरोधी खेमे में हैं अत: उनसे आपकी भेंट की खबर मिलने पर इंदिरा नाराज होकर आपको मुख्यमंत्री के पद से हटा देंगी। अंतत: वह लाला जी से मिले बिना ही राजेंद्रा अस्पताल से थोड़ी दूर पहले ठीकरीवाला चौक से वापस लौट गए। अस्पताल में जब लाला जी का स्वास्थ्य कुछ खराब होना शुरू हुआ तो उन्हें 4 जनवरी, 1977 को बिना शर्त कुछ समय के लिए रिहा कर दिया। 

यहां मैं इस बात का विशेष रूप से उल्लेख करना चाहूंगा कि उन दिनों इंदिरा सरकार ने प्रैस की जुबानबंदी के लिए भारत के सारे प्रैस पर सैंसरशिप बिठा दी थी परंतु खबरें फिर भी लोगों के पास किसी तरह पहुंच ही जाती थीं। सैंसर अधिकारी जिस खबर को भी सरकार के विरुद्ध समझते, उसे ही रद्द करके छापने के अयोग्य घोषित कर देते जिस पर अखबारों वाले उस समाचार की खाली जगह पर ‘सैंसर की भेंट’ लिख देते। उन दिनों जालंधर से ‘हिंद समाचार’ और ‘पंजाब केसरी’ के अलावा अन्य अखबार ‘मिलाप’, ‘हिन्दी मिलाप’, ‘प्रताप’, ‘वीर प्रताप’ आदि छपते थे और जालंधर के डिप्टी कमिश्रर रामगोपाल प्रतिदिन शाम को हमारे दफ्तर में आने लगे, क्योंकि उस समय हमारे दोनों समाचार पत्र भारी संख्या में छपते थे।
एक शाम हमारे समाचार सम्पादक स्व. इंद्रजीत सूद ने जब उन्हें एक खबर सैंसर करने के लिए दी तो उन्होंने उसके शीर्षक पर आपत्ति करते हुए कोई और शीर्षक बनाने के लिए कहा। श्री इंद्रजीत सूद ने उन्हें 5-6 शीर्षक बना कर दिखाए परंतु उन्होंने सभी शीर्षक रद्द कर दिए। 

इंद्रजीत सूद ने कहा कि आप ही कोई शीर्षक बना दीजिए तो रामगोपाल ने जो शीर्षक बनाकर दिया उसे लगाकर जब उन्हें कापी दिखाई तो उन्होंने उसे भी गलत करार दे दिया। इस पर इंद्रजीत सूद ने उनसे कहा कि यह शीर्षक तो आपने ही बनाया था। झेंप कर श्री रामगोपाल ने पुराने शीर्षक के साथ ही कापी भेजने की इजाजत दे दी। आज पूज्य लाला जी, ज्ञानी जैल सिंह, श्री गुरदयाल सिंह ढिल्लों, डा. धनवंत सिंह और डा. के.सी. सारोवाल, श्री टोहरा, श्री चन्द्रशेखर आदि में से कोई भी हमारे बीच नहीं हैं परंतु उनकी यादें आज भी मन में ताजा हैं। 

पहले पाकिस्तान से उजड़ कर आए, फिर अपने ही देश में समय की सरकारों की ज्यादतियां झेलीं। एमरजैंसी का सामना किया, आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में अपने दो मुख्य संपादकों पूज्य पिता लाला जगत नारायण और श्री रमेश चंद्र के अलावा 2 समाचार सम्पादक और उप-संपादक, 60 अन्य संवाददाता, छायाकार, ड्राइवर, एजैंट और हॉकर खोए और अब शेष देश के साथ मिलकर ‘कोरोना’ संकट का सामना कर रहे हैं। विश्वास है कि जिस प्रकार हम पिछले संकटों में सुर्खरू होकर निकले, उसी तरह वर्तमान संकट में भी समूचे देश के साथ सुर्खरू होकर निकलेंगे।—विजय कुमार

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