एक 88 वर्षीय बुजुर्ग का पत्र

Saturday, Jul 09, 2016 - 02:01 AM (IST)

मैं देश में बुजुर्गों की स्थिति और संतानों द्वारा उनकी उपेक्षा बारे अक्सर लिखता रहता हूं। इसी संदर्भ में मैंने 21 जून के अंक में एक संपादकीय सशीर्षक ‘बुजुर्ग अब हो रहे हैं घोर उपेक्षा के शिकार’  लिखा था। इस संबंध में मुझे श्री ए.एन. शर्मा का एक पत्र मिला है जिसमें वह लिखते हैं : 

 
‘‘श्रीमान जी, 21 जून के अंक में प्रकाशित आपके संपादकीय सशीर्षक ‘बुजुर्ग अब हो रहे हैं घोर उपेक्षा के शिकार’ से मैं बिल्कुल सहमत नहीं हूं। श्रीमान जी जिन बुजुर्गों को अपने बच्चों से इज्जत करवाना आता ही नहीं, वे यदि अपनी पुरानी नीति बच्चों पर थोपेंगे तो बच्चे आज्ञाकारी नहीं रहेंगे।’’
 
‘‘बुजुर्गों को चाहिए कि वे अपने बच्चों के काम में अधिक हस्तक्षेप न करें और हाथ पर हाथ धर कर बिल्कुल न बैठें बल्कि कुछ न कुछ काम करते रहें ताकि उनकी थोड़ी-बहुत आय भी होती रहे। ’’
 
‘‘मेरी आयु इस समय 88 वर्ष है और मेरे 7 बेटे हैं। प्रभु की कृपा से मैं अपने बच्चों की मदद कर सकता हूं और मेरा एक बेटा मुझसे वेतन लेता है। मेरी एक बहू जालंधर की रहने वाली है। वह मेरी 10-10 कमीजें इस्त्री करके मेरी अलमारी में रखती है। यदि कहीं बच्चे आपकी बात से सहमत नहीं होते तो बुजुर्ग का काम है उसकी उपेक्षा कर देना।’’ 
 
अपने 21 जून के संपादकीय में मैंने बुजुर्गों के भरण-पोषण संबंधी अधिकारों की चर्चा की थी। इस पत्र में श्री शर्मा ने बुजुर्गों से संबंधित एक अन्य पहलू की चर्चा की है। निश्चय ही उनके यह विचार महत्वपूर्ण हैं जिन पर हमारे आदरणीय बुजुर्गों को अवश्य मनन करना चाहिए।
 
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