70,000 मुस्लिम धर्म प्रचारकों ने आतंकी संगठनों के विरुद्ध जारी किया फतवा

Friday, Dec 11, 2015 - 12:00 AM (IST)

धर्म गुरुओं और धर्म प्रचारकों का समाज में विशेष स्थान है और लोग उनकी बातसुनते हैं। इसी कारण समय-समय पर मुसलमान मुफ्ती (धर्म प्रचारक) भी अपने समाज के लिए उन मुद्दों पर फतवे जारी करते रहते हैं जिन्हें वे समाज के हित में उचित मानते हैं। 

आज जबकि भारत तथा विश्व के अन्य भागों में असहिष्णुता और आतंकवाद जोरों पर है तथा आई.एस., लश्कर-ए-तोयबा और तालिबान जैसे आतंकवादी संगठनों द्वारा निर्ममतापूर्वक निर्दोष लोगों का खून बहाया जा रहा है, हिन्दू-मुस्लिम सद्भाव बढ़ाने और विश्व भर में जारी इस खून-खराबे को रोकने के लिए अनेक मुसलमान मुफ्तियों द्वारा आवाज उठाई गई है।
 
इसी शृंखला में भारत में असहिष्णुता को लेकर हुई हिंसक घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने और हिन्दुओं तथा मुसलमानों में टकराव समाप्त करने के लिए शिया धर्म गुरु तथा आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष डा. कल्बे सादिक ने 6 दिसम्बर को लखनऊ में एक अच्छा सुझाव दिया।
 
अज्ञानता को साम्प्रदायिक उपद्रवों का कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि ‘‘जिस दिन इंसान एक-दूसरे के मजहब को समझ लेगा फसाद अपने आप खत्म हो जाएंगे और एक-दूसरे के मजहब को समझने के लिए जरूरी है कि हिन्दू कुरान पढं़े और मुसलमान गीता पढ़कर जानकारी हासिल करें।’’
 
‘‘इस्लाम से आतंकवाद का कोई संबंध नहीं है। कुरान में कहा गया है कि जहां इस्लामी निजाम होगा वहां जुल्म नहीं होगा। जिस जगह जुल्म और अत्याचार हो, तुम समझ लो कि वहां अल्लाह का निजाम नहीं है। इस्लाम का निजाम ही दुनिया से जुल्म का खात्मा करना है। बेगुनाहों पर जुल्म व उनका खून बहाने का नाम ही आतंकवाद है।’’
 
‘‘इंसान की नमाज तभी कबूल होगी जब नमाजी किसी दूसरे पर जुल्म न कर रहा हो। इस्लाम में आतंकवाद के लिए कोई जगह नहीं है। दूसरों के सामने अपने मजहब को जरूरत से ज्यादा दिखाने वाला मजहबी नहीं होता।’’
 
इसी प्रकार 8 दिसम्बर को बरेली में आला हजरत दरगाह के उर्स-ए-रिजवी के आखिरी दिन विश्व के 70,000 के लगभग मुस्लिम धर्म प्रचारकों ने आतंकीसंगठनों आई.एस., तालिबान व अल कायदा के विरुद्ध फतवे जारी करते हुए कहा,‘‘इन संगठनों के विचार गैर इस्लामी और अमानवीय तथा इनकी गतिविधियां इस्लाम के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध हैं। ऐसे लोग सच्चे मुसलमान नहीं हैं।’’ 
 
फतवा जारी करने वाले एक मुस्लिम विद्वान मुफ्ती मोहम्मद सलीम नूरी के अनुसार 6 दिसम्बर से शुरू हुए उर्स में भाग लेने आए 15 लाख अनुयायियों के बीच दरगाह आला हजरत के सदस्यों ने पर्चे बांटे और उनसे आतंकवाद के विरुद्ध शपथ पर हस्ताक्षर करवाए जो एक रिकार्ड है। नूूरी ने अनुरोध किया कि‘‘मीडिया आतंकी संगठनों को मुस्लिम संगठन कहना बंद करे।’’ 
 
दरगाह आला हजरत के चेयरपर्सन हजरत सुभान रजा खान के अनुसार, ‘‘पैरिस में आतंकी हमले के बाद इस साल के उर्स में यह फतवा जारी करने का निश्चय किया गया था ताकि विश्व समुदाय को यह संदेश दिया जा सके कि मुसलमान समाज आतंकी हमलों के विरुद्ध है व इनकी निंदा करता है।’’
 
इसी अवसर पर मुस्लिम विद्वानों ने विश्व भर में आई.एस. तथा विभिन्न नामों से रक्तपात कर रहे इसके साथी गिरोहों पर प्रतिबंध लगाने की मांग  भी की। इसके साथ ही यह भी मांग की गई कि शक्तिशाली पश्चिमी देशों को आतंकवादियों को रोकने पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए। 
 
जहां मौलाना कल्बे सादिक द्वारा हिन्दुओं और मुसलमानों में सद्भाव बढ़ाने के लिए दोनों धर्मों के ग्रंथों के अध्ययन की सलाह पर अमल करने से दोनों ही समुदायों में भ्रांतियां दूर करके आपसी भाईचारा बढ़ाने में मदद मिलेगी वहीं हजारों मुफ्तियों द्वारा इस्लाम के नाम पर रक्तपात करने वाले संगठनों के विरुद्ध फतवा जारी करने से स्पष्ट है कि मुसलमान समाज भी धर्म के नाम पर कुछ निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा किए जा रहे रक्तपात और खून-खराबे से कितना दुखी है। 
 
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