पृथ्वी में बन रही है ''तबाही की सुरंग'' जैसी आकृति! वैज्ञानिकों की नई रिसर्च ने खोले चौंकाने वाले राज
punjabkesari.in Thursday, Apr 17, 2025 - 04:18 PM (IST)

International Desk: टेक्सास यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपनी नई स्टडी में ऐसा खुलासा किया है जिससे पूरी दुनिया के भूवैज्ञानिक हैरान रह गए हैं। अमेरिका के मध्य-पश्चिम हिस्से की गहराई में पृथ्वी की पपड़ी (Earth’s crust) का एक बड़ा टुकड़ा धीरे-धीरे मेंटल (Mantle) की ओर खिंचता जा रहा है। इस घटना को वैज्ञानिक 'क्रैटोनिक थिनिंग' कह रहे हैं, जिसका मतलब है- धरती की सबसे ठोस बाहरी परत यानी लिथोस्फीयर का पतला होते जाना।
'टपकता स्लैब' क्या है और कैसे बन रहा है?
भूकंपीय इमेजिंग (Seismic Imaging) के जरिए वैज्ञानिकों ने देखा कि धरती के नीचे एक टपकन जैसी विशाल संरचना बनी हुई है। यह बिल्कुल एक फनल की तरह है, जो उत्तरी अमेरिका की चट्टानों को अपनी तरफ खींच रही है। ये स्ट्रक्चर लगभग 640 किलोमीटर यानी 400 मील गहराई तक फैली हुई है और उत्तरी अमेरिका के बड़े हिस्से को अपनी ओर खींचते हुए नीचे समा रही है।
कब से हो रही है यह प्रक्रिया?
वैज्ञानिकों के अनुसार, यह प्रक्रिया हजारों सालों से जारी है, लेकिन अब इसके संकेत पहले से ज्यादा स्पष्ट रूप से दिख रहे हैं। मेंटल और लिथोस्फीयर के बीच हो रहा यह बदलाव भविष्य में बड़े भूगर्भीय बदलावों की ओर इशारा करता है। हालांकि अभी इससे किसी भी खतरे की संभावना नहीं जताई गई है।
क्या हो सकता है असर?
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महाद्वीप की सतह पर धीरे-धीरे असर दिख सकता है।
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भविष्य में भूकंप और ज्वालामुखीय गतिविधियां बढ़ सकती हैं।
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भूगर्भीय असंतुलन बड़े इलाकों को प्रभावित कर सकता है।
वैज्ञानिकों ने बताया कि यह प्रक्रिया उत्तर अमेरिका की पूरी पपड़ी को प्रभावित कर सकती है और इसके चलते धरती की सतह पर कई बदलाव देखे जा सकते हैं।
वैज्ञानिकों ने क्या कहा?
टेक्सास यूनिवर्सिटी के रिसर्चर और इस स्टडी के प्रमुख वैज्ञानिक ने कहा, “यह पहली बार है जब हमें किसी महाद्वीप के नीचे इस तरह की टपकन जैसी प्रक्रिया इतनी स्पष्ट रूप से दिखी है। इसका मतलब है कि धरती के अंदर बहुत कुछ ऐसा हो रहा है, जो हमारी सतह को भविष्य में बदल सकता है।” फिलहाल वैज्ञानिकों ने यह स्पष्ट किया है कि अभी इस प्रक्रिया से कोई तात्कालिक खतरा नहीं है। लेकिन आने वाले दशकों में इसके असर धीरे-धीरे दिखाई दे सकते हैं। इसीलिए, इस पर लगातार निगरानी और रिसर्च ज़रूरी है।