जब धुआँ है घना सा चारों ही तरफ
punjabkesari.in Thursday, Jun 07, 2018 - 03:07 PM (IST)
जब धुआँ है घना सा चारों ही तरफ
फिर आँखों को नज़र आता क्या है ।।1।।
खुद की ही बिसात लुटी हुई है इस बाज़ी में
फिर औरों के प्यादों को समझाता क्या है ।।2।।
खून से सींचा हुआ मंज़र यूँ ही नहीं बदल जाएगा
फिर खुशफ़हमी से दिल को बहलाता क्या है ।।3।।
अभी तो इब्तिदा है,इन्तहा बाकी ही है
ज़ुल्म से इतनी जल्द उकताता क्या है ।।4।।
देखना,मौत अभी सरेआम तमाशा भी करेगी
तू तो इसी तरह जिया है,फिर घबराता क्या है ।।5।।
खुदा कब दीदार को आज़िज़ है तेरे लिए
तू रसूक बनकर सबको फुसलाता क्या है ।।6।।
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ये तन्हाइयों का गूँजता शोर है कैसा
हर ओर छाया कुहासा घनघोर है कैसा ।।1।।
मस्जिद से अजान तो आती ही रही
फिर इंसानों में छिपा हुआ चोर है कैसा ।।2।।
हुकूमत तो सब्ज़बाग ही दिखाती रही
कौम के सीने पे चलता जोर है कैसा ।।3।।
रोशनी की तानाशाही ही जब हो रही
फिर निगाहों में अँधेरा हर ओर है कैसा ।।4।।
भाषणों में दिन रात गठजोड़ हो रही
फिर साबूत रिश्तों का टूटा डोर है कैसा ।।5।।
रात भर चाँदनी शीतलता उड़ेलती रही
फिर पसीने से तर-बतर ये भोर है कैसा ।।6।।
सलिल सरोज