अनजाने में आज भी खा रहे हैं भगत सिंह के खून से सनी चीनी: ''सेवा''

punjabkesari.in Saturday, Dec 29, 2018 - 01:52 PM (IST)

भगत सिंह व उनके साथियों की 'अदालती हत्या' करने में अंग्रेजों के साथ मिले साजिशकर्ताओं को देश द्वारा आज भी सहयोग दिए जाने से शहीदों की रूह भारत की और देखती होगी। शहीदों के खून से भीगी चीनी क्या इतनी मीठी है यह सवाल आज भी शहीदों की रूहों को अशांत कर रही होगी। यह विचार संस्था 'सेवा' के समारोह  में चर्चा का विषय रहे।

खन्ना की संस्था 'सेवा' द्वारा शहीदे आज़म भगत सिंह का 111 वां जन्मदिन नरोत्तम विद्या मंदिर में विद्यार्थियों के साथ मनाया गया। इस आयोजन में श्रद्धांजलि के बाद सेवा ने भगत सिंह की अंग्रेजों द्वारा अदालती हत्या करने में सहायक रहे साजिशकर्ताओं को गवाही देने के बदले मिली सम्पतियां जब्त करने की मांग की। इसके बारे पत्रकारों से बात करते हुए सेवा के चेयरमैन अनुज छाहड़ियाने कहा कि कहां तो हम भगत सिंह की शहादत को श्रद्धांजलि देते रहे कहां अब शहीदों की अदालती हत्या जैसी बातें सामने आने पर युवा आक्रोश में हैं । दूसरी ओर भगत सिंह व देश के गदारों को मिलीं श्यामली चीनी मिल जैसे तोहफों की आज भी चीनी अनजाने में खाये जाने से शर्मिंदा हैं। 

गत माह एक रस्म क्रिया में उत्तर प्रदेश के नगर श्यामली में जाने पर पता लगा कि वहां की चीनी मिल भगत सिंह के खिलाफ दिल्ली बम केस में गवाह बने शादी लाल को अंग्रेजों ने तोहफे में दी थीं। उस शादी लाल के प्रति नफरत के चलते उसकी मौत पर किसी ने वहां से कफ़न तक नही दिया था। परन्तु आजाद भारत मे ऐसा क्या हुआ कि उस मिल की चीनी लोगों को अनजाने में खिलाई जाती रही। उन्होंने बताया कि तथ्यों आदि की इंटरनेट के माध्यम से पड़ताल करने परपता चला कि भगत सिंह की क्रांति से बुरी तरह हिल चुके अंग्रेज उन्हें किसी भी तरह मारना चाहते थे। जिसका प्रमाण यह है कि सांडर्स केस में 1 मई 1930 को तत्कालीन वायसराय इरविन ने भगत सिंह केस को स्पेशल जज से लेकर तीन जज का ट्रिब्यूनल बनाया। जिसे सीमित समय मे केस निपटाने को कहकर साथ ही आदेश दिए कि इस ट्रिब्यूनल के आदेश को किसी उच्च न्यायालय में चेलेंज नही किया जाएगा। हैरानीजनक है कि यह आदेश कभी भी सेंट्रल असेम्बली या ब्रिटिश संसद ने पास नही किया और आगे चलकर यह आदेश संवेधानिक मान्यता न मिलने के कारण रदद् भी हो गया।

इस आदेश का मकसद ही सिर्फ शहीदों को कम समय मे बिना चेलेंज फांसी देने था। इस ट्रिब्यूनल के एक जज आग़ा हैदर ने वायसराय की बात न मानते हुए यह कहकर इस्तीफा दिया कि मैं जज हूँ बूचड़ नहीँ। वहीं दिल्ली बम केस में भगत सिंह सिर्फ दुनिया का ध्यान भारत की ओर खींचना चाहते थे जिसमें वह सफल हुए। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा सेंट्रल असेम्बली में फेंका बम्ब सिर्फ धुएं वाला था जिसे भरी सभा के मध्य में गिराने के बावजूद किसी को खरोंच तक नही आई। परन्तु इस केस में भी उनपर धारा 307 का मुकदमा चलाया गया। इस केस में भगत सिंह के खिलाफ कोई भी गवाह ना मिले तो अंग्रेजों ने अपने पिठु शादी लाल व शोभा सिंह को गवाह बनाया। इन दोनों को इसके बदले भारी सम्पति, श्यामली की चीनी व शराब फेक्ट्री आदि तोहफे में दी गयीं साथ ही दोनों को सर् रॉय बहादुर की उपाधि दी गई। अंग्रेज भगत सिंह को मारने के लिए इतने उतावले थे कि इस केस में पहले  बयान 6 जून 1929 को हुए और 6 दिन के भीतर उन्हें उम्रकैद की गई जोकि भारतीय इतिहास में जल्दबाजी का एक ही केस है।

छाहड़िया ने बताया कि भगत सिंह पर 2 केस चले बम केस व सांडर्स केस दोनों केस में ऐसे भारी तथ्य हैं जिनसे संदेह होता है कि भगत सिंह की अदालती हत्या की गई।' सेवा ' ने माननीय राष्ट्रपति जी व भारत सरकार से मांग की है कि भगत सिंह के खिलाफ हुई साजिश को बेनकाब किया जाए व अंग्रेजों के साथ शामिल रहे लोगों को मिले तोहफे जब्त किए जाएं। क्योंकि यह तोहफे इंग्लैंड से नही लाये गए थे इसलिए इनपर भारत का ही हक है।इसे दुश्मन के कब्जे की सम्पति मानते हुए जब्त किया जाये व सर राय बहादुर का सम्मान वापिस हो । श्यामली चीनी मिल के लिएकमेटी बनाकर मुनाफा किसानों में बांटा जा । जनता से अपील की गई कि जब तक ऐसा नहीं होता तब तक श्यामली चीनी मिल् की चीनी न खरीदी जाए। इस मौके पर रशिम विजन, आदर्श शर्मा विकास अग्रवाल, राजन छिब्बर , हरभजन सिंह , रामरीश विज, हरसिमरन जीत रिची, गोलड़ी तिवारी, हरीश मोहिंदरु, वकील आशु लटावा , मोहमद काज़िम, शेखर, दर्शन सिंह, साहिल सोफत , राजेश बंटी, लकी धीमान, दीपक वर्मा, संजीव मोदगिल, मनोज घई, रविन्द्र रवि, सुरिंदर कंसल आदि उपस्थित थे।


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vasudha

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