इक्कीसवीं सदी की नारी

Sunday, Apr 22, 2018 - 03:49 PM (IST)

मैं हूँ इक्कीसवीं सदी की नारी
आज भी पुरुष मुझ पर हैं भारी
दुल्हन बन जब आई आज तक  पल भर न चैन पाया
कर घर का हर काम मैंने समय बिताया
करी हैं पति बच्चो की देखभाल
नहीं देखा कभी क्या है मेरा हाल
फिर भी आज मैं लातो से मारी जाती हूँ
क्या कर्मफल है मेरा यही सोच मैं सहम जाती हूँ
मैं हूँ इक्कीसवीं सदी की नारी
आज भी पुरुष मुझ पर हैं भारी
बच्चो की माँ भी हूँ मित्र भी टीचर भी
पति की बनु प्रेमिका, सहचरी और माँ भी
नहीं है मेरे जैसा कोई दोस्त उसका
हर पल  रखूँ  ध्यान मेरे जैसा न हितैषी उसका
फिर भी बेल्टों से मारी जाती हूँ
आधी रात मे घर से निकाली जाती हूँ
मैं हूँ इक्कीसवीं सदी की नारी
आज भी पुरुष मुझ पर है भारी
पति के घर में न कोई खर्च मेरा
दफन कि हर इच्छा कभी माँगा न पैसा धेला
जैसा मिलता वैसा खाती नहीं कुछ मांगती हूँ
कपडे जैसे मिलते वैसे तन पर सवाँरती हूँ
अपना खर्च स्वयं काम करके मैं निकालती हूँ
फिर भी औरत होने का जुल्म मैं सहती हूँ
बच्चो की पढ़ाई की जब दी है जाती धमकी
कहाँ से लाओगी फीस के पैसे ,कैसे पढ़ाओगी
तब चुपचाप ,मूक ,आह भर अपनी नियति पर नैन बहाती हूँ

 

उमेश शर्मा

 

Punjab Kesari

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