माँ का संघर्ष

punjabkesari.in Wednesday, May 06, 2020 - 03:05 PM (IST)

माँ का संघर्ष

हर सुबह देती हूं उम्मीदों
को तड़का शायद
कोई पक जाए
कर ली दोस्ती खट्टे मीठे से
ताकि जीवन में
कुछ स्वाद आ जाए
तवे की तरह तपती रहती हूं
रोटी कोई कच्ची न रह जाए
इसी उधेड़बुन
में कहीं घर मेरा
भूखा न रह जाए

मैं की आग में जब
सब्जी जलने लगती है
आंसूओं की ठंडक
उसे तब बचाती है

कपड़े लत्ते साफ सफाई में
बच्चों की पाठ पढ़ाई में
करती हूं कोशिश
बचपन अपना दोहराने की
छपकी मे 
करती कोशिश मां
से मिल आने की
सुबह से शाम और
शाम से रात हो जाती हूं
थक चूर कर  
खुद को मैं
ढांढस तब बंधाती हूं

बिस्तर पर जाते जाते
कल के लिए फिर नई उम्मीदें
जगाती हूं
इन सब के बीच
तू ही बता "हर्ष"
मैं खुद से कहां
मिल पाती हूं
कहां मिल पाती हूं,,,,,,,,,

(प्रमोद कुमार हर्ष)


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Author

Riya bawa

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