वो सुगन्धित पुष्प तुम्हारे

Friday, Jun 01, 2018 - 02:24 PM (IST)

सृजन मेरी प्रेरणा
सृजन है श्रृंगार
सृजन बिन दिखे मुझको
सूना यह संसार
सृजन बीज अंकुरित हो
बने फूलवार
सृजन की इक किरन उगे
मिटाए अंधकार
सृजन मेरा जीवन-धन
मुझको इससे प्यार
सृजन ब्रम्हा को प्यारा
सृष्टि का आधार
सृजन ओस की बूँद
शीतल भाव विचार
सृजन मन की पीर हरे
जो बने संगीत सार
सृजन के दो भाव जुड़े
बने गीत नवाचार
सृजन की गंगा कहे
न रोको मेरी धार
सृजन मातृ-गर्भ उपजे
मिले स्नेह अपार
सृजन गर्भ-पुत्री तो
प्रेम की हकदार

 

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इस जीवन को...

 

खुशबू से भर दिए
वो सुगन्धित पुष्प तुम्हारे।
यह मधुरिम मधुमास सलोना,
ललित-पल्लवित वन-उपवन
चहुँ और बिखरी हरियाली।
पुष्प खिले हैं डाली-डाली।
जैसे कोयल मीठी तान सुनाती
ऐसे सुमधुर से गीत तुम्हारे
इस जीवन को
खुशबू से भर दिए
वो सुगन्धित पुष्प तुम्हारे।
जिस पल मुस्कुरा दो तो लगे
जैसे जुगनू की झिलमिल-सी टोली,
नित अपनेपन से स्नेह करती तुम
जैसे निर्मल बहती जल-धारा।
शीतल-शीतल पवन के झोंके जैसे
मीठे-मीठे एहसास तुम्हारे
शांत-सुगंधित नदी-किनारा हो जैसे,
सहज-सरल निर्मल स्वभाव तुम्हारा,
तुम्हारी अनुपम सुखद यादें
जैसे स्वप्निल-सी निशा अनोखी।
खूबसूरत हैं हर लफ्ज तुम्हारे
जैसे टिमटिम करते चाँद-सितारे
इस जीवन को
खुशबू से भर दिए
वो सुगन्धित पुष्प तुम्हारे।
स्मृतियों की एक किताब में,
अब तक मैंने रखा सहेजे
अपने हर शब्द में रख
तुमनें स्नेहिल सन्देश जो भेजे।
संदेश मुस्काते हैं हर पन्ने पर,
जो मुझे हैं अपने प्राणों से प्यारे
इस जीवन को
खुशबू से भर दिए
वो सुगन्धित पुष्प तुम्हारे।

 

डॉ. कीर्ति पाण्डेय

Punjab Kesari

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