दुन‍िया का एकमात्र मंद‍िर, जहां अंदर जाने से कतराते हैं लोग

Thursday, Jun 04, 2020 - 05:37 PM (IST)

चंबा के भरमौर में एक मंद‍िर ऐसा भी है, जहां अंदर जाने से भी लोग कतराते है। यह मंद‍िर सद‍ियों पुराना है। ह‍िमाचल प्रदेश के चंबा जिला के जनजातीय भरमौर स्थित चौरासी मंदिर समूह में संसार के इकलौते धर्मराज महाराज या मौत के देवता का मंदिर है। इस मंदिर की स्थापना के बाबत किसी को भी सही जानकारी नहीं है। बस इतना जरूर है कि चंबा रियासत के राजा मेरू वर्मन ने छठी शताब्दी में इस मंदिर की सीढिय़ों का जीर्णोद्धार किया था। इसके अलावा इस मंदिर की स्थापना को लेकर अभी तक किसी को भी जानकारी नहीं है। मान्यता है कि धर्मराज महाराज के इस मंदिर में मरने के बाद हर किसी को जाना ही पड़ता है चाहे वह आस्तिक हो या नास्तिक। इस मंदिर में एक खाली कमरा है जिसे चित्रगुप्त का कमरा माना जाता है।

चित्रगुप्त जीवात्मा के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। मान्यता है कि जब किसी प्राणी की मृत्यु होती  तब धर्मराज के दूत उस व्यक्ति की आत्मा को पकड़ कर सबसे पहले इस मंदिर में चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत करते हैं। चित्रगुप्त जीवात्मा को उनके कर्मों का पूरा लेखा-जोखा देते हैं। इसके बाद चित्रगुप्त के सामने के कक्ष में आत्मा को ले जाया जाता है। इस कमरे को धर्मराज की कचहरी कहा जाता है। गरुड़ पुराण में भी यमराज के दरबार में चार दिशाओं में चार द्वार का उल्लेख किया गया है।

मंदिर के पुजारी लक्षमण दत्त शर्मा बताते हैं कि सदियों पूर्व चौरासी मंदिर समूह का यह मंदिर झाडिय़ों से घिरा था और दिन के समय भी यहां कोई व्यक्ति आने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था। मंदिर के ठीक सामने चित्रगुप्त की कचहरी है और यहां पर आत्मा के उल्टे पांव भी दर्शाए गए हैं। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यहां पर अढ़ाई पौढ़ी भी है। मान्यता है कि अप्राकृतिक मौत होने पर यहां पर प‍िंड दान किए जाते है। साथ ही परिसर में वैतरणी नदी भी है, जहां पर गौ-दान किया जाता है। इसके अलावा धर्मराज मंदिर के भीतर अढ़ाई सौ साल से अखंड धूना भी लगातार जल रहा है।मंदिर के बाहर ही हाथ जोड़ कर चले जाते हैं लोग चंबा जिले में भरमौर नामक स्थान में स्थित इस मंदिर के बारे में कुछ बड़ी अनोखी मान्यताएं प्रचलित हैं। मंदिर के पास पहुंच कर भी बहुत से लोग मंदिर में प्रवेश करने का साहस नहीं जुटा पाते हैं। मंदिर के बाहर से ही हाथ जोड़कर चले जाते हैं। संसार में यह इकलौता मंदिर है जो धर्मराज (यमराज) को समर्पित है।

खाली कमरे में रहते हैं चित्रगुप्त इस मंदिर में एक खाली कमरा है, जिसे चित्रगुप्त का कमरा माना जाता है। चित्रगुप्त यमराज के सचिव हैं जो जीवात्मा के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। मान्यता है कि जब किसी की मृत्यु होती है तब यमराज के दूत उस व्यक्ति की आत्मा को पकड़कर सबसे पहले इस मंदिर में चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत करते हैं। कर्मों का दिया जाता है पूरा ब्योरा चित्रगुप्त जीवात्मा के कर्मों का पूरा ब्योरा देते हैं। इसके बाद चित्रगुप्त के सामने के कक्ष में आत्मा को ले जाया जाता है। इस कमरे को यमराज की कचहरी कहा जाता है। यहां पर यमराज कर्मों के अनुसार आत्मा को अपना फैसला सुनाते हैं। मान्यता है इस मंदिर में चार अदृश्य द्वार हैं जो स्वर्ण, रजत, तांबा और लोहे के बने हैं। यमराज का फैसला आने के बाद यमदूत आत्मा को कर्मों के अनुसार इन्हीं द्वारों से स्वर्ग या नरक में ले जाते हैं। गरूड़ पुराण में भी यमराज के दरबार में चार दिशाओं में चार द्वारों का उल्लेख किया गया है। यह मंद‍िर भरमौर के चौरासी मंद‍िर पर‍िसर में मौजूद है। यहां तक पहुंचने के ल‍िए आपको सबसे पहले चंबा पहुंचना होगा। चंबा से न‍िजी वाहन या बस के माध्‍यम से आप 60 क‍िलोमीटर दूर भरमौर पहुंच सकते हैं। यहां का नजदीकी रेलवे स्‍टेशन पठानकोट है। जहां से चंबा की दूरी 120 क‍िलोमीटर दूर है।

चम्बा से बैठकर सीधे हम लोग पहुंचे भरमौर। एक बार  फिर से संदीप भाई का धन्यवाद कि उन्होने एक औरजगह ऐसी सोच कर रखी थी जो कि कम जानी 
गयी और काफी महत्व की है क्योंकि इस जगह का महत्व जब मै आपको बताउंगा तब आप खुद ही समझ जायेंगे । गाडी में बैठे सब लोग हडसर से 12 किमी0 चलकर जब भरमौर पहुंचे तो थके हुए होने के कारण बस रूकने के मूड में थे कहीं होटल लेकर  पर जब संदीप भाई ने मंदिर देखने को कहा तो राजेश जी ने मना कर दिया कि आप देख आओ । भरमौर में गाडी सडक किनारे लगाने के बाद हमने एक पुलिस वाले से पूछा कि चौरासी मंदिर कितनी दूर पडेगा तो उसने बताया कि मुश्किल से चार सौ मीटर होगा तो हम चल दिये । भरमौर मे एक सुंदर सा गेट मेन रोड पर बना हुआ है जिसे बिना देखे आप गुजर नही सकते । आते या जाते इस गेट पर आपकी निगाह जरूर पडेगी इसलिये इसे देखना तो बनता है। मंदिर तक जाते जाते आपको भरमौर भी और उसका बाजार भी दिख जायेगा। यहां मुर्गे के अचार और जिंदा मुर्गे की काफी दुकाने हैं जैसा कि मैने डलहौजी की पोस्ट में सबसे पहला फोटो लगाया था यहां पर मांस की बहुतायत है ।

हममें से ज्यादातर लोग दक्षिण के नाम पर नाक भौं सिकोडते हैं कि वहां पर खाना वेज नही मिलता जबकि हकीकत ये है कि रोटी को छोडकर वहां पर कोई समस्या नही है जबकि जून में पूर्वोत्तर मे किसी भी जगह रोटी या वेज समस्या नही है बस मेघालय में एक ​चीज औरो से अलग थी वो ये कि जब आप किसी भी गांव या कस्बे से गुजरते हो तो आपको मीट की दुकाने आन रोड मिलेंगी और उस पर टंगा हुआ मीट जिससे कि हमारे साथ की औरते असहज हो जाती थी  हो तो हम्  भी जाते थे। ऐसा नही है कि सिक्किम या आसाम में मीट नही बिकता पर वहां ये मेन रोड और पर्यटक स्थलो पर इस तरह खुलेतौर पर नही बिकता है। मेन रोड के आसपास की गलियों में और परदे की दुकानो में बिकता है। ये थोडा सहज रहता है। 


(जीवन धीमान)

Riya bawa

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