पत्थर
Wednesday, May 09, 2018 - 12:28 PM (IST)
बसंत कौर का एक बेटा तथा बेटी पहले ही विवाहित थे। इस बार उसने अपने बेटे बलजीत तथा बेटी मनजीत की शादी एक साथ कर दी थी। अपनी दोनों जिम्मेवारयिों को पूरा करके वह राहत महसूस कर रही थी। बलजीत की पत्नी नवजोत के आने से बसंत कौर के बहुत से काम आसान हो गए थे। वह बहुत खुश थी। एक दिन नवजोत ने उसको एक पत्र पढ़ के सुनाया जो बसंत कौर की बेटी के सुसराल से आया था। पत्र में लिखा था कि मनजीत ने बेटी को जन्म दिया है,आप आ कर अपनी नातिन को देख जाएं। पत्र सुन कर पहले तो बसंत कौर उदास सी हो गई परन्तु कुछ समय के बाद बोली कोई बात नहीं ‘बेटा हो चाहे बेटी आज के जमाने में सभी एक समान हैं। अब तो बराबरी का समय है।’ साल के बाद बसंत कौर की बहु नवजोत कौर ने भी एक बेटी को जन्म दिया। मन में पोते की चाह रखने वाली बसंत कौर को ऐसे लगा जैसे उसके सिर सौ घड़ा पानी का पड़ गया हो। बाहर से तो वह खुश दिखाई दे रही थी लेकिन अंदर से निराश थी। एक दिन बसंत कौर की एक सहेली उसको मिलने के लिए घर पर आई। बातों ही बातों में उसने बसंत कौर से पुछा,‘सुना बसंत कुरे! छोटी बहु क गोद में क्या है?’ उदासी के आलम में बसंत कौर ने कहा,‘प्रीतम कौरे! तमन्ना तो पोते को खिलाने की थी पर बहु ने जन्म दिया है पत्थर।‘ यह बात कह कर वह अपनी आँखें पोंछने लगी।
रमेश बग्गा चोहला
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