गुजराती साहित्य के स्वर्णिम साहित्यकार, झावरेचंद कालिदास मेघानी की जयंती पर ख़ास
punjabkesari.in Friday, Aug 28, 2020 - 05:32 PM (IST)
28 अगस्त को गुजरात के प्रसिद्ध साहित्यकार झावरचंद की जयंती है जिन्हें झवेरचंद कालिदास मेघानी के नाम से भी जाना जाता है। झावरचंद एक कवि, लेखक, समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी थे। उनका नाम गुजराती साहित्य के क्षेत्र में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है। 28 अगस्त 1896 को उनका जन्म चोटिला में हुआ था। केवल 12 साल की उम्र में ही उन्होंने अपनी पहली कविता लिख डाली थी। अंग्रेजी और संस्कृत लिटरेचेर में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने भावनगर में अध्यापक की नौकरी की। श्री झवेरचंद कालिदास को साहित्य में रंजीतराम सुवर्ण चन्द्रक और महिदा पारीतोषिक जैसे कई पुरस्कार मिले। उन्होंने 100 से अधिक किताबें लिखी। उनकी पहली किताब रवींद्रनाथ टैगोर की कथा-ऊ-काहिनी का अनुवाद था जिसका नाम कुर्बानी-नी-कथा रखा गया था जिसे 1922 में प्रकाशित किया गया था। रविन्द्रनाथ टैगोर की प्रसिद्ध बंगाली कविता हृदोय अमार नाचे रेशतो बारो नतो भाबो” का अनुवाद गुजराती में झावरचंद जी ने ही किया था। ये अनुवादित कविताएं मोर बानी थंगट करे, मारू मन मोर बानी थंगट करे” नाम से गुजरात में बहुत लोकप्रिय है और आज भी गुजराती कलाकार इसे विभिन्न कार्यक्रमों में गाते हैं। सरदार वल्लभभाई पटेल ने झवेरचंद की प्रशंसा करते हुए कहा कि उनकी साहस भरी आवाज़ सालों तक लाखों को प्रेरित करती है।
अपने इंग्लैड दौरे के पिछले दिन महात्मा गांधी को निराशा ने घेर लिया गया था क्योंकि उन्हें पता था कि अंग्रेजों उनकी पूर्ण स्वतंत्रता की मांग को स्वीकार नहीं करेंगे। मेघानी ने उसकी वक्त गांधी जी के लिए एक कविता “छेलौ,कटोरो” लिखी और उन्होंने बापू से कहा कि देश के लिए ज़हर का आखिरी घूंट भी पी लें। आख़िरी कुछ घंटों में लिखी गई यह कविता मेघानी जी ने गांधी जी को दी। उसे पढ़कर गांधी जी ने कहा कि तुमने मेरी आत्मा को समझ लिया और कविता में मेरी मनोस्थिति को पूरी सटीकता से लिख दिया। उसी वक्त गांधी जी ने झावरचंद मेघानी को राष्ट्रीय कवि की उपाधि दे दी। गुजराती लोक साहित्य में झावरचंद का व्यापक योगदान रहा। उन्होंने एक लोकगीतकार होने के नाते गुजरात की कई भूली हुई लोक संस्कृतियों को फिर से लोगों के बीच जगाने का प्रयास किया।
उन्होंने अपनी आवाज़ और ज्ञान का इस्तेमाल करते हुए ब्रिटिश साम्राज्य की ताकत के ख़िलाफ़ लोगों को इकट्ठा करने का काम किया और देश की मरती हुई लोक परंपराओं की आवाज़ को बचाया। वह लोक-कथाओं की तलाश में गाँव-गाँव गए और उन्हें सौराष्ट्र-नी-रसधर के विभिन्न संस्करणों में प्रकाशित किया। वह जन्मभूमि समूह के फूलचब अखबार जो राजकोट में आज तक प्रकाशित हो रहा है के संपादक भी थे। मेघाणी की कविताओं में सौराष्ट्र की आत्मा और कथाओं में उसके संवेदन अद्भुत वर्णन है। हजारो वर्षनो जूनो अमारी वेदनाओ। कलेजा चीरती कंपावती अम भय कथाओं।।
जैसी पक्तियां इस बात का प्रमाण हैं कि उनके स्वरों में अहिंसक क्रांति का दृढ़ विश्वास था। उनकी कविताओं को आज भी गुजरात बोर्ड स्कूलों (GSEB) में सिलेबल के एक भाग के रूप में पढ़ाया जाता है। जिस घर में मेघानी जी का जन्म हुआ था उसे गुजरात सरकार की तरफ़ से एक म्यूज़ियम में तब्दील कर दिया गया था। उनके पोते पिनाकीन मेघानी द्वारा इस संग्रहालय में उनके जीवन और काम को संजोया गया है। पिनाकीन मेघानी ने झावरचंद की याद में एक स्मृति संस्थान भी बनवाया गया है। पिनाकीन मेघानी कहते हैं ‘ हमारा मकसद युवा पीढ़ियों के बीच पारंपरिक संगीत से जोड़कर रखना है ताकि उन्हें अपनी संस्कृति पर गर्व महसूस हो”।