स्मोग

Saturday, Dec 16, 2017 - 01:34 PM (IST)

पिछले कई दिनों से दिल्ली सहित पूरे उत्तर भारत में आसमान में एक धुंध सी छायी हुई है। जिस के लिए राजनितिक दल एक दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे है. जैसा की हमारे देश में आम होता है कोई भी बात हो उसे मुद्दा बनाकर असली हल सोचने की बजाए आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो जाता है परन्तु कभी भी ना तो उस समस्या का हल हो पाता है और ना ही ये बहस से पीछे हटते है और इस दौरान जनता का भरी नुकसान हो चुका होता है  इस समय ज्यादा हो हल्ला दिल्ली में हो रहा है जो की इसी महीने पिछले साल भी था।

 

आज दिल्ली सरकार नये नये आदेश जारी करके इस समस्या को हल करने की असफल कोशिश कर रही है. कभी फैक्ट्रीज बंद करने की बात करती है कभी ईंट भट्ठे बंद करने की बात करती है कभी भारी गाड़िओ की एंट्री ना होने की बात करती है और अब तो ओड इवन लागू कर दिआ है. क्या इससे ये आसमानी आफत कम होगी ? कभी नहीं। क्योकि ये सब चीज़े तो पहले भी चल रही थी तो फिर क्या है हल कहा से आ रही है ये मुसीबत।

 

दरअसल आजकल पूरे देश में धान का  सीजन होता है जिसमे पूरे देश में कंबाइन के द्वारा जीरी का कटाव होता है फिर उसमे पंखे के द्वारा झार लगाया जाता है यानी जीरी को साफ़ करने के लिए उसकी मिटटी उड़ाई जाती है। आज से कुछ समय पहले इसके खरीद केंद्र सिर्फ शहरों में थे। परन्तु समय के अनुसार पिछली सरकारों ने किसानो की मुश्किलों को आसान करने के लिए गांव गांव में खरीद केंद्र बना दिए जिसकी वजह से अब हर गांव में धान को झार लगाया जाता है और बचे हुए फूस पराली को आग लगाकर नष्ट किआ जाता है। जिसकी वजह से धुआँ और मिटटी हवा में मिक्स हो कर फ़ैल जाती है और पुरे वातावरण को दूषित कर देती है।

 

यह सीजन लगभग एक महीना चलता है हालांकि अब की बार हरयाणा व पंजाब सरकार ने पूरी सख्ती से पराली फूस जलाने पर बैन लगाया हुआ था जिसके तहत पंजाब सरकार ने इस साल ९ नवंबर तक पराली जलाने पर ३७ हजार मामले दर्ज किए सरकारी अफसरों को किसानो से दो चार भी होना पड़ा परन्तु सरकार इसे रोकने में असफल रही। कुछ ही दिनों में इसका सीजन ख़तम हो जाएगा और ये धुंध धुआँ अपने आप समाप्त हो जाएगा।

 

 

अफ़सोस ये होता है की हमारे वैज्ञानिक ऑफिसर जो इन डिपार्टमेन्टो से जुड़े है वो सही फैसला क्यू नहीं ले पाते या फिर फैसला लेने में इतना समया क्यू लगता है जबकि इन छोटी छोटी बातो के लिए बड़ी बड़ी मीटिंगे बिठाई जाती है और उसका खर्च जनता के खाते में जा चुका होता है जब तक ये लोग फैसला लेते है तब तक वो समस्या ही गायब हो जाती है। अगले साल इसी महीने यही समस्या फिर आएगी ये मै कहता हु परन्तु मेरे पास कोई डिग्री नहीं है लेकिन ये सत्य है क्या हम आने वाले कल का हल आज कर सकते है। शायद नहीं आज एक बिल्डिंग बनाने के लिए उसकी धुआँ मिटटी से बचने के लिए उसको चारो और से कवर करके बनाया जाता है तो फिर इस धान को साफ़ करने के लिए ऐसे  मिट्टी उड़ाने की परमिशन ही क्यू दी जाती है अगर इसे भी किसी कपड़े से कवर करके साफ़ किआ जाए तो आने वाले साल में ये धुंध और धुआँ देखने को ही नही मिलेगा।

 

शाम आनंद

94160-44100, 92500-44100
 

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