साहिबजादा बाबा फतेह सिंह जन्मदिवस को समर्पित
punjabkesari.in Tuesday, Jan 24, 2017 - 01:09 PM (IST)

दसवें गुरु श्री गोबिंद सिंह जी के चार साहिबजादे (पुत्र) थे। इनमें सबसे छोटे साहिबजादा बाबा फतेह सिंह थे। मुगल सेना और सिख सेवको (सेना) के बीच भारी युद्ध चल रहा था। मुगल भारी सेना ने अानंदपुर के किले को घेर लिया। यह घेरा सात महीने चला। सिख सेना काफी मुसीबतों का सामना कर रही थी। किले में राशन समाप्त हो गया और बहुत से लोग बीमार पड़ गए। मुगल सेना की ओर से संदेश आया कि मुगल बादशाह औरंगजेब की ओर से पैगाम है कि हम कुरान की कसम खाते हैं, गुरुजी और उनकी सेना आनंदपुर साहब का किला छोड़ कहीं भी चले जाए, मुगल सेना उन्हें कुछ नहीं कहेगी। सिखे ने गुरु गोबिंद जी को कहा कि हमें किला छोड़ देना चाहिए। गुरुजी ने कहा यह कसमे झूठी है परंतु चूंकि मेरे लिए अपने भक्तों की बात न मानना उचित नहीं होगा, अतः मैं विवश होकर यहां से जाने का आदेश देता हीं। गुरुजी और उनका परिवार व सिख किले के बाहर आ गए और दिल्ली की ओर बढ़ने लगे तभी पीछे से मुगल सेना ने युद्ध कर दिया। सभी इधर-उधर जिधर रास्ता सूझा निकलने लगे। गुरुजी के दोनों छोटे पुत्र जोरावर सिंह और फतेह सिंह जिनकी आयु 8 और 6 साल की थी, अपनी दादी गुजरी जी के साथ सरसा नहीं पार की और उनका रसोइया गंगू ब्राहमण उन्हें अपने गांव ले गया। उसे इनाम का लालच आ गया तो माता गुजरी और दोनों साहबजादे पकड़ लिए गए और दोनों साहबजादों को कचहरी में पेश किया गया।
सरहंद के सूबेदार को खबर भेज दी कि गुरुजी तुम्हारा पूरा परिवार व सिख पकड़ लिए गए हैं और दोनों छोटे भाइयों को कहा गया कि तुम्हारे पिता गुरु गोबिंद सिंह और तुम्हारे दोनों बड़े भाई और तुम्हारा पूरा परिवार शहीद हो गए हैं। सो तुम्हारी आयु बहुत कम है सो हम तुम्हें मारना नहीं चाहते। तुम अपना धर्म बदल लो तुम्हे ऊंचा पद व धन व सारे सुख साधन मिलेंगे और तुम्हारी शादी बहुत सुंदर कन्याओं के साथ कर दी जाएगी। दोनों छोटे साहिबजादों ने कहा हम धर्म नहीं छोड़ सकते और न ही हम किसी लालच में आएंगे सो अपना समय व्यर्थ न करो और हमें जो सजा दो वो हमें स्वीकार है। हाकिम वजीर खां ने आदेश दिया कि दोनों को जिन्दा दीवारों चिन दिया जाए। दोनों साहिबजादों के चारों दीवार बनाई जाने लगी, जब दीवार फतेह सिंह के सिर के पास आई तब उससे बड़े भाई जोराबार ने कहा आज शहीद होते हुए मुझे खुशी हो रही है। परन्तु मुझे दुख इस बात का है कि मैं फतेह सिंह से बड़ा हीं और शहीद मेरे से पहले मेरा छोटा भाई फतेह सिंह हो रहा है। गुरु गोबिंद जी ने अपने साहिबजादों का बदला लेने के लिए बंदा बहादुर को पंजाब भेजा। बंदा बहाुदर ने अपने हाथी के पैर के साथ वजीर खां को बांध कर सड़क पर घसीट-2 कर उसके किए की सजा दी। सुखमनी साहबयही कहता हैः-
‘आपन बीजि आपे ही खाहि’
-जगजीत सिंह अरोड़ा