भारत में प्राथमिक शिक्षा- कैसे बदलेगी तस्वीर?

Thursday, Dec 27, 2018 - 12:46 PM (IST)

“अशिक्षित को शिक्षा दो, अज्ञानी को ज्ञान,
शिक्षा से ही बन सकता है, भारत देश महान”

कितनी सत्यता है इस वाक्य में, कितनी मौलिकता है इस वाक्य में। भारत को महान बनते देखने का सपना जो मैंने देखा है वह अशिक्षित को शिक्षा देकर व अज्ञानी को ज्ञान देकर ही पूरा हो सकता है। लेकिन वह शिक्षा किस प्रकार की हो यह बात मुझे परेशान कर रही है। मैं जब भी छोटे-छोटे बच्चों को बड़े-बड़े बस्ते पीठ पर उठाए देखता हूँ तथा उनके माता-पिता द्वारा उन बच्चों पर आशाओं के अधिक भार को देखता हूँ तो सोचता हूँ कि यह बच्चे कहीं अंकों की होड़ में कहीं उलझ कर न रह जाएं। यह बच्चें कहीं प्रतिस्पर्धी बनकर एक-दूसरे के ही दुश्मन न बन जाएं। जब इन प्रश्नों का लगातार चिंतन किया तो पाया कि इस स्थिति के लिए जहाँ प्रशासन तथा अध्यापक जिम्मेदार हैं। कहीं न कहीं माता-पिता भी उतने ही दोषी हैं। लेकिन अब प्रश्न है कि हमारी प्राथमिक शिक्षा कैसी हो?

वर्तमान सरकार ने जब से ‘भारतीय उच्च शिक्षा आयोग’ के गठन की बात की है तब से ही भारत में उच्च शिक्षा पर बहस तेज हो गई है। कुछ लोग इसे शिक्षा के क्षेत्र में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम मान रहे हैं तो कुछ लोगों का मानना है कि यहां से शिक्षा के स्तर का गिरना आरंभ हो रहा है लेकिन हमें आवश्यकता है कि हम इस बहस में न पड़े तथा प्रारंभिक शिक्षा का अध्ययन अच्छे से करें क्योंकि यहीं से उच्च शिक्षा का मार्ग प्रशस्त होता है यदि यहीं पर हमें खामियां दिखे तो बेहतर होगा कि उच्च शिक्षा के गठन से ज्यादा ध्यान प्रारंभिक शिक्षा की तरफ दिया जाए क्योंकि प्रारंभिक शिक्षा उच्च शिक्षा की नीवं है और यदि किसी मकान की नीवं ही मजबूत न हो तो मकान अधिक दिनों तक टिका नहीं रह सकता | कुछ दिनों बाद वह गिर जाएगा लेकिन प्रारंभिक शिक्षा की नीवं को मज़बूत करना एक बहुत बड़ी चुनौती है|

प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में प्रारंभिक शिक्षा एक अहम भूमिका निभाती है क्योंकि प्रारंभिक शिक्षा ही किसी व्यक्ति, समाज और देश की बुनियाद को मज़बूत करती है इसलिए प्राथमिक शिक्षा में सभी गुणों का होना नितांत आवश्यक है | प्रारंभिक शिक्षा की बुनियाद को मज़बूत करने के लिए तथा शिक्षा को हर बच्चे को दिलाने के लिए सरकार हर संभव प्रयास कर रही है | सर्वशिक्षा अभ्यान के तहत 6-14 वर्ष तक का कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं होना चाहिए | बच्चों को मिड-डे मील के तहत स्वादिष्ट भोजन दिया जाए, बालिका शिक्षा तथा एक समान शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा देना तथा उच्च एवं तकनीकी शिक्षा को वित्तीय सहायता प्रदान करना आदि अनेक सुविधाएँ देना इस आयोग का मुख्य लक्ष्य है लेकिन शिक्षा का जो स्तर होना चाहिए वह आज भी नहीं है | वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग है |

आज छात्र वर्ग कक्षा में अच्छे अंक पाकर तथा उन अंको के सहारे अधिकतम वेतन पा सकने की होड़ में उलझ कर रह गया है। वह विनाश के कगार पर खड़ा है। लेकिन क्या हमारी शिक्षा का स्तर ऐसा ही था जो आज हमारे सामने है, नहीं बिल्कुल भी नहीं। गुरुकुलों में जो शिक्षा गुरुओं द्वारा दी जाती थी ; उस शिक्षा से छात्र का मानसिक, शारीरिक तथा बौद्धिक विकास अथवा चहुमुखी विकास होता था | गाँधी जी भी कहते थे , ”मैंने ह्रदय की शिक्षा को अर्थात चरित्र के विकास को शिक्षा की बुनियाद माना है यदि बुनियाद पक्की है तो अवसर मिलने पर बालक दूसरी बातें किसी की सहायता से या अपनी ताकत से खुद जान सकता है। ” यदि प्राथमिक स्तर से ही बच्चों में राष्ट्रप्रेम तथा नैतिक गुणों के संस्कारों से अवगत करवाया जाए तो वे देश के अच्छे नागरिक बनकर उभरेंगे | शिक्षा का उद्देश्य केवल मनुष्य को उच्च जीवन जीने योग्य बनाना ही नहीं बल्कि पूर्ण रूप से सचेत, स्वस्थ तथा बुद्धिमान बनाना है। ऋग्वेद में भी कहा गया है कि शिक्षा व्यक्ति को आत्मविश्वासी तथा निस्वार्थी बनाती है | लेकिन बहुत अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि आज की शिक्षा अपने चरित्र निर्माण के उद्देश्य से पीछे हटती जा रही है | नैतिक मूल्यों का लगातार ह्रास हो रहा है जिस कारण छात्र चारित्रिक पतन का शिकार हो रहे हैं | सरकार का अधिक ध्यान उच्च शिक्षा पर है |इसी कारण ‘उच्च शिक्षा आयोग’ का गठन किया गया |

इस गठन ने कई ठोस कदम उठाएं है जो विद्यार्थियों के लिए भविष्य में लाभकारी सिद्ध होंगे | सी बी एस ई द्वारा लिया गया यह फैसला कि अब कक्षा आठ तक के बच्चों को भी फ़ैल किया जाएगा यदि वह परीक्षा में अनुत्तीर्ण होता है; सराहनीय है | इससे बच्चों के मन में जो मानसिकता घर कर बैठी है कि “वे पढ़ें या न पढ़ें पास तो हो ही जाएंगे” धारणा घटेगी तथा बच्चे चाहे मजबूरी में ही पढ़ें; पढना आरंभ अवश्य कर देंगे। उच्च आयोग द्वारा “खेलोगे कूदोगे बनोगे खराब, पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब” वाली धारणा को भी गलत साबित कर दिया है। आयोग के अनुसार पढाई के साथ-साथ खेलों का भी जीवन में उतना ही महत्त्व है। सी बी एस ई के नए पाठ्यक्रम के अनुसार शारीरिक शिक्षा के अध्यापक को एक सप्ताह में 6 बार कक्षा लेनी अनिवार्य है | इससे बच्चों पर से लगातार पढ़ाई करने का बोझ भी कम होगा तथा वे खेलों के साथ-साथ पढ़ाई में भी अच्छी तरह मन लगा सकेंगे। आयोग के अनुसार इससे आने वाले समय में भारत के पास अनेक अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाडी हो जाएंगे फलस्वरूप भारत भी विकसित देशों की कतार में खड़ा हो सकेगा। इसका परिणाम हमे तुरंत नहीं मिल सकता लेकिन जिस उद्देश्य से इसकी शुरुआत की है वह काफी महत्त्वपूर्ण है

उच्च शिक्षा को और अधिक रोचक बनाने के लिए बैठकें होती रहती हैं लेकिन प्रारंभिक शिक्षा की ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा | आज स्कूलों की स्थिति काफी दयनीय बनी हुई है | बच्चों को केवल पुस्तकीय ज्ञान ग्रहण करने के लिए विवश किया जाता है यदि बच्चों के बहुआयामी विकास की ओर ध्यान दिया जाए तो शिक्षा का स्वरूप बदल सकता है | स्कूलों की लगातार बढ़ती संख्या तथा उच्चकोटि के अध्यापक न होना प्रारंभिक शिक्षा के स्तर के गिरने का मुख्य कारण है | अभिभावकों की गलत मानसिकता भी इसमें शामिल है। अभिभावक बच्चों को महंगे से महंगे स्कूल में डालते हैं | ये लोग बच्चों को इन स्कूलों में अच्छी शिक्षा के लिए नहीं बल्कि दूसरों के सामने अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने की मानसिकता रखते हैं। उनके अनुसार समाज में प्रत्येक वस्तु खरीदी जा सकती है लेकिन आपको उसका दाम पता होना चाहिए। सादा जीवन उच्च विचार जैसे वाक्य अब अच्छे नहीं लगते। यदि प्रारंभिक शिक्षा का स्तर सुधारना है तो सरकार को उच्च शिक्षा के स्तर के साथ-साथ प्रारंभिक शिक्षा के स्तर पर भी ठोस कदम उठाने होंगे | कानूनों को सख्ती से लागू करना होगा। हमारा देश अन्य देशों से इसलिए पिछड़ रहा है क्योंकि यहां पर प्रारंभिक शिक्षा का स्तर ठीक ही नहीं है | यहाँ प्रारंभिक शिक्षा प्रथम स्थान पाने तक सीमित है जबकि विकसित देशों में प्रथम आने के लिए पढाई नहीं करवाई जाती बल्कि उनके व्यक्तित्व के बहुआयामी विकास पर जोर दिया जाता है | शिक्षा में गुणवत्ता की कमी भी पाई गई है। मूल्यों का ह्रास हो रहा है। बच्चे केवल पाठ्यक्रम में ही उलझे रहते हैं तथा बाहर की गतिविधियों में भाग ही नहीं लेते। संसार को सुन्दर और सभ्य रूप देने के लिए शिक्षा का सर्वांगीण होना आवश्यक है क्योंकि यही छात्र आगे चलकर हमारे देश के नेता हैं, नायक है, वैज्ञानिक हैं तथा डॉक्टर हैं अर्थात भविष्य हैं। छात्र राष्ट्र के निर्माता है उन्हें चाहिए कि समाज में फैली बुराइयों को अपनी निर्भीकता से मुक्ति दिलाएं। प्रारंभिक शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाना होगा तभी देश तरक्की कर सकेगा।

“ श्रद्धा ज्ञान देती है, नम्रता मान देती है, योग्यता स्थान देती है पर तीनों मिल जाएं तो व्यक्ति को हर जगह सम्मान देती है। ”
अत: शिक्षा चाहे प्राथमिक स्तर की हो अथवा उच्च स्तर की हो लेकिन उनका स्तर बच्चों के बौद्धिक विकास के अनुसार हो ताकि जैसे-जैसे बच्चे बड़े हों तो वह अपने आपको हर परिस्थिति के अनुसार ढाल लें क्योंकि “
जहाँ ज्ञान है वहीँ सुख है
बिना ज्ञान पूरा जीवन दुःख है”
 प्रिं. डॉ. मोहन लाल शर्मा

Seema Sharma

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