साहिबजादों से जुड़ी अनमोल धरोहर "जहाज महल" पूछ रही सवाल- मेरा कसूर क्या है ?

punjabkesari.in Thursday, Feb 03, 2022 - 08:34 PM (IST)

हरप्रीत कौर जो हमारी  सहकर्मी है फतेहगढ़ साहिब जाते समय हम सब एक ही बस में सवार थे और वह हमें हर प्रकार की जानकारी भी दे रही थी । अचानक उसकी आवाज़ उभरी अब हम जहाज़ महल की तरफ़ जा रहे हैं । दोस्तों यहाँ जूते नहीं उतारने हैं और आप सबको सिर भी नहीं ढकना है ।उसने कहा हमने सुना और मैंने पूछा क्यों सिर क्यों नहीं ढकना  ? जूते क्यों नहीं उतारने ? वह बोली  जहाज़ महल कोई गुरुद्वारा नहीं है । ठीक है । उसने समझाया ।पर क्या हम उनका आदर नहीं करेंगे जिनका महल है ? मैंने जिज्ञासा वश पूछ लिया । अरे नहीं मैंने ऐसा कब कहा ? मैंने तो यह  बताया है कि वहाँ पर गुरुद्वारा साहब नहीं है इसलिए जूते उतारने की ज़रूरत नहीं है। नाम सुना , चौंकना सहज था । जहाज़ महल या जहाज़ जैसा महल ,  ? नाम बदल - बदल कर बोले कि शायद कल्पना कोई चित्र तैयार कर लें , पर हुआ कुछ भी नहीं । आज दुनिया जहाँ कार , बस , हवाई जहाज़ को रेस्टोरेंट का रूप देकर व्यापार कार्य कर रही है ,दुकानदारी कर रही है वहाँ जहाज़ - महल भी कुछ ऐसा ही नाम लगा ।

PunjabKesari

हम  सब फ़तेहगढ़ साहिब की भूमि पर जहाँ गुरु गोबिन्द सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों के साथ हुई क्रूरता से आहत हर साँस में दम घोंटती उन साहिबजादों की सांसों को महसूस कर रहे थे , दुखद एहसास के साथ आक्रोश हर एक के चेहरे पर  से झलक  रहा था । अचानक  बस उस स्थान के पास आकर रुकी  जिसे जहाज़ महल कहा जाता है ।हमारे सामने  एक दो मंजिली इमारत के भग्नावशेष दिखाई दिए, उसके दाहिनी तरफ़ एक अजीब प्रकार की बैठक थी , जो खंडहर के रूप में थी अनुमान तो हम लगा रहे थे , क्योंकि वहाँ पर कोई सूचना पट्ट नहीं था । न कोई गाइड ,न ही कोई पुरातत्व विभाग द्वारा दिए गए संकेत  थे , ना ही कोई  साहित्यिक दस्तावेज़। जर्जर और हर रोज़ बिखरती हवेली से झड़कर गिरती  ईंटें । जिन्होंने उसे जहाज़ रूप में देखा है उनकी आंखें धन्य हो गई होंगी , लेकिन जिन्होंने आज उसे एक खंडहर के रूप में देखा है वह जहाज़ भी कल्पना कैसे करेंगे ?

 

अचानक सामने  पैरों के पास पड़ी ईटों को देखकर मैं चिल्लायी पता है इन ईंटों का नाम भी होता है , इन्हें नानकशाही ईंट  करते हैं । नानकशाही  ? एक  साथ दो-  तीन लोगों का स्वर  सुनाई दिया । ले जाते हैं एक  एक ईंट  उठाकर अपने -अपने  घर । हमारे यहाँ तो इस तरह की  ईंट की पूजा होती है  । मैं सुन रही थी । मन उनकी बातों से दूर चला गया । इतनी बड़ी  हवेली, इतना बड़ा जहाज़ महल , आज एक इकहरी दीवार के अलावा कुछ भी नहीं ? महल के दरवाज़े,  खिड़कियाँ ईंटें,रोशनदान , फ़र्नीचर , सब कुछ । वह  सब कुछ जिसे धरोहर कहा जाता है । वह सब कुछ जिसे सहेजना चाहिए था ,  जिसकी संभाल करनी चाहिए थी दूसरी पीढ़ियों के लिए ।  उनके लिए जिन्हें तन -मन- धन से न्योछावर होने के वास्तविक अर्थ से परिचित करवाना था । क्या वह सरकारों के बदलने से उपेक्षित हो गई ? पुरातत्व विभाग इस तरह से काम करते हैं क्या ?

PunjabKesari

सन् 1704 से पहले की बनी इमारत या जहाज़ महल मुस्लिम साम्राज्य के ख़त्म हो जाने के बाद भी जीर्ण - शीर्ण होता रहा। समझ आता है । राजसी टक्कर कौन लेता ? अंग्रेजों का साम्राज्य  भारत के गौरव को मटियामेट करने का था यह भी माना । अंग्रेज़ चले गए ? फिर  क्या मुसीबत थी कि इस गौरव को इतिहास के साथ जुड़ने नहीं दिया गया ? विचारणीय हैं कि गुरु गोबिन्द सिंह के शहीद साहिबजादों और माता गुज़री के संस्कार के लिए यह ऐलान कर दिया गया था कि यहाँ की ज़मीन सरकारी ज़मीन है और सरकारी ज़मीन पर संस्कार नहीं होगा । यदि यहाँ संस्कार करना है तो अट्टा चौधरी से ज़मीन ख़रीद लो और उस पर संस्कार करो । यह फ़रमान भी नीचता से भरपूर था कि जिस ज़मीन को ख़रीदना है उस पर सोने के सिक्के खड़े करो , जहाँ तक सोने के सिक्के लगाओगे उतनी ज़मीन तुम्हारी हो जाएगी । उस ज़मीन को टोडरमल दीवान ने 78, हज़ार सोने के सिक्कों के बदले में ख़रीदा ।  और पूर्ण अदब के साथ माता गुजरी और दोनों छोटे साहिबजादों तीनों का संस्कार भी किया ।

PunjabKesari

उस गुरू  के लिए आत्मसमर्पण किया पूर्ण  समर्पित शिष्य  टोडर मल दीवान ने ।उनका  इतना बड़ा त्याग !  इतना बड़ा अनुदान   इतनी  बड़ी उपेक्षा का शिकार हो गया?  महल खंडहर में तब्दील हो गया और महल वासियों का नामोनिशान मिट गया  ? शर्मनाक है कि जातिवाद ,धर्मवाद के चक्कर में एक बहुत बड़ा अनुकरणीय प्रसंग धूल में मिल गया । धिक्कार है ऐसी मानसिकता पर। वहाँ मुलाक़ात हुई जगदीश  सिंह भाई जी से । जिन्होंने भरे गले से यह गौरव गाथा सुनाई ।  मन भीग गया। जो टोडरमल के अनुग्रह के लिए अपनी कौम को ऋणी मानते हैं । खंडहर में बदलते जहाज़ महल के गौरव को अपने शब्दों में बताते हुए वे कहते हैं कि तब लाहौर से दिल्ली तक इस तरह का कोई महल नहीं था । पुरखों के ज़माने से  जोड़ी जाती अशर्फ़ियों को सिक्कों के रूप में ज़मीन ख़रीद कर उन्होंने संसार की वह ज़मीन ख़रीदी जो आज तक कभी कहीं इतनी महँगी ज़मीन के रूप में नहीं बिकी ।

 

उनसे बहुत कुछ सुनना था, बहुत कुछ जानना था , जगदीश सिंह भाई जी ऐसे दिखाई दे रहे थे जैसे टोडरमल को उनके अपने भाई बंधु थे।  वह  ऐसे बोल रहे थे जैसे उन्होंने टोडरमल  दीवान को शहीद होते अपनी आँखों से देखा है  । बाद में मुस्लिम सत्ता धारियों ने गुरू परिवार को सम्मान देने के विरोध में सपरिवार उन सबकी हत्या भी कर दी थी । हम सब भावुक हो रहे थे , लेकिन एक आक्रोश था पंजाब सरकार के लिए , आक्रोश था भारत सरकार के लिए , आक्रोश था पुरातत्व विभाग के लिए। यदि यह ऐतिहासिक  साक्ष्य नहीं है तो आम लोगों के जाने पर पाबंदी लगाई जानी चाहिए , नहीं तो देश - प्रेमी देश की धरोहर के इस रूप से असन्तुष्ट ही रहेंगे ।आक्रोश कब फूट पड़ेगा कौन जानता है? मन पूछता है हमारा क्या क़सूर जो इतिहास चुप है ? मन पूछता है हमारा क्या क़सूर जो जहाज़ - महल का जीर्णोद्धार नहीं हुआ ? मन पूछता है हमारा क्या क़सूर कि हमें खंडहर ही देखने को मिले जिसका कल  नामोनिशान भी नहीं बचेगा ।
 PunjabKesari


                                                                                                                                                                   लेखिका- विभा कुमरिया शर्मा


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Tanuja

Recommended News