राष्ट्र व्यापी बन गई ‘गरीबी’

Monday, Sep 25, 2017 - 03:43 PM (IST)

‘गरीबी’ भारत की आत्मा है
भारत की जान है, पहचान है
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने
‘गरीबी’ हटाओ का नारा दिया
‘गरीबी’ मिटाओ कभी नहीं कहा
‘गरीबी’ एक जगह से हटाई गई
तो दूसरी जगह बिठा दी गई।

‘गरीबी’ राष्ट्र व्यापी बन गई
कश्मीर से कन्याकुमारी तक
पूरे देश में चारों ओर फैल गई।

‘गरीबी’ भारतीय संस्कृति है
‘गरीबी’ भारतीय कलाकृति है
‘गरीबी’ कथा, कहानी, उपन्यास है
‘गरीबी’ गीत, ग़जल, शायरी है।

‘गरीबी’ से भारतीय साहित्य
करुणामय तथा समृद्ध बना है
गरीब-अमीर की प्रेम कहानी
हर प्रस्तुति में हिट होती है।

‘गरीबी’ पर फिल्मे बनती है
और ऑस्कर जीत कर लाती हैं
भारतीय राजनीति का मजबूत
और कारगर स्तम्भ है ‘गरीबी’

‘गरीबी’ हटाओ के नारे देकर
भारत में चुनाव जीते जाते हैं
सरकारें गरीबों के वोटो की
खरीद-फरोख्त से बन जाती हैं
चुनाव के समय नेता गरीबों के
दुःख-दर्द पर खूब आंसू बहाते हैं
जिसमें बह कर भोले-भले गरीब
भावनावश उन्हें वोट दे आते हैं।

‘गरीबी’ को खूब बेचा है सबने
मीडिया, कलाकारों, साहित्यकारों,
फिल्मकारों ने जमकर बेचा है इसे
सभी ने भारत की गरीबी को
बढ़ चढ़कर विश्वभर में दिखाया
और खूब धन और यश कमाया
लेकिन किसी ने भी गरीबों की
मदद के लिए या ‘गरीबी’ मिटाने -
के लिए ‘गरीबी’ के नाम पर कमाए
धन का एक अंश भी नहीं लगाया
गरीब नहीं, तो अमीर कौन ?
कौन किसे दान देगा, किसे
दरिद्र नारायण भोजन करवाएगा।

‘गरीबी’ हमारी दरियादिली है
‘गरीबी’ हमारे मोक्ष का द्वार है
‘गरीबी’ हमारी अर्थ व्यवस्था है
कर्ज पर अर्थ व्यवस्था टिकी है
‘गरीबी’ हमारी क्रूरता है, पाशविकता है
गरीबों की मजबूरियों के आगे हम
किसी भी हद तक गिर जाते हैं।

कुछ लोग ‘गरीबी’ को जड़ से
उखाड़ फैकने के पक्षधर हैं
‘गरीबी’ मिट गई तो हमारी
संस्कृति विलुप्त हो जायेगी
भिक्षुओं को भीख नहीं दे पाए तो
हमारी संवेदना नष्ट हो जायेगी।

भारतीय राजनीती और अर्थव्यवस्था
का मजबूत आधार है गरीबी
गरीबों को कर्ज देने से अर्थवस्था और
कर्ज माफ़ करने से राजनीति चलती है।

‘गरीबी’ केवल दुर्भाग्य नहीं
बल्कि मानसिकता भी है, जो
अकर्मयता से जन्म लेती है
संतोष इसकी सगी बहन है
जिसने ‘रूखा सूखा खाय के
ठंडा पानी पी’- जैंसी सोच को
जन्म दिया, जो अमीरी की
राह का सबसे बड़ा अवरोध है
कर्मवीर तो अपने परिश्रम से
धरती से सोना उगलवा लेते हैं।
- हरी किशन चावला ‘धनपत’

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