दिल में कुछ है आपके पर मुंहज़बानी और है

Thursday, Sep 05, 2019 - 11:02 AM (IST)

दिल में कुछ है आपके पर मुंहज़बानी और है
काग़ज़ों पर मसअलों की तर्ज़ुमानी और है

बात जब ईमान की होने लगी
सबके लिए आपकी तब बेईमानी,

बेईमानी और है ज़ख़्म देने का तरीका आ गया
शायद इन्हें याकि मिलता कैक्टस को खाद पानी और है

सच फ़क़त उतना नहीं था जो बताया है गया
सामने आयी जो सबके वो कहानी और है

घर बुलाकर दोस्त मेरा वार करता
पीठ पर क्या कहूँ उसकी यक़ीनन मेजबानी और है

सेक्स की रंगीनियों में खो गई है
ज़िन्दगी इश्क़ करने के लिए तो ज़िन्दगानी और है

दौर है कर्फ़्यू सरीखा हक़बयानी तू न कर
ये नयी सरकार ठहरी वो पुरानी और है
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स्वार्थ को दावत मिली तो ग्रास जंगल हो गया
अंततः इस द्वीप का इतिहास जंगल हो गया

शहर की ऊंची हवेली में भी जब था दिल उदास
ठीक ऐसे वक़्त में मधुमास जंगल हो गया

दूरियों के कैक्टस कुछ इस तरह बढ़ते रहे
गौर से देखा दिलों के पास जंगल हो गया

सभ्यता आगे बढ़ी है करने को अय्याशियां
आज विकसित देश का उपहास जंगल हो गया

जानवर बेहतर रहेंगे
गर वफ़ा की बात हो आदमी का इनदिनों विश्वास जंगल हो गया

रातरानी की ख़ुमारी रात भर छाई रही
सुब्ह तक हर मखमली अहसास जंगल हो गया

छिपकली, चींटी, पतंगे, मकड़ियां चारों तरफ़ तुम
गये तो क्या कहूं आवास जंगल हो गया

 

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फूल - पत्ती, होंठ - जुल्फें, गाल में उलझे रहे
कुछ सुखनवर हिरनियों की चाल में उलझे रहे

गाय - भैंसे, दूध-घी, सब अन्त तक 'उनका' रहा
शूद्र केवल डांगरों की खाल में उलझे रहे

खोजते कुछ लोग हैं चर्बी गलाने की दवा
और कुछ तो नून, रोटी, दाल में उलझे रहे

जिनकी ख्वाहिश आसमानी, मॉल था
उनके लिए हम जमीनी 'बीस का हर माल' में उलझे रहे

राज्य के सब मसले उलझे रहे
अपनी जगह और विक्रम हैं कि वो बैताल में उलझे रहे

कौन हूं मैं जानता है या बताऊं मैं
तुझे इस तरह कुछ सिरफिरे हर हाल में उलझे रहे

मुल्क खतना और जनेऊ पर मुखर होता रहा
हम सियासत के बिछाए जाल में उलझे रहे

सुभाष

Seema Sharma

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