"मेरा ख़्वाब"
punjabkesari.in Thursday, May 07, 2020 - 05:10 PM (IST)
बंद कमरे में मैं मशाल जलाए बैठा हूँ।
अपने मन मंदिर में मैं नए ख़्वाब लिए बैठा हूँ। आ ना जाए कहीं से हवा का झोंका,
इस डर को साथ लिए बैठा हूँ।
काँटों के शहर में आने वाली है नई कली।उसके स्वागत को पलके बिठाए बैठा हूँ।।
बैठ किसी कौने में इंतज़ार लिए बैठा हूँ ।
न जाने मैं क्यों इतने ख़्वाब लिए बैठा हूँ।
पूरे होंगे एक दिन ख़्वाब मेरे,
ये संदेश लिए हर हवा के कण में मैं विराजमान बैठा हूँ।
बंद कमरे में मैं मशाल जलाए बैठा हूँ,
अपने मन मंदिर में मैं नए ख़्वाब लिए बैठा हूँ।
(आकांक्षा)