संजीवनी फिर ले चलो
Wednesday, May 06, 2020 - 11:31 AM (IST)
विह्वल विकल संसार है
अभयदान फिर दे चलो
सुनो वायुपुत्र हे रामदूत
संजीवनी फिर ले चलो
छा रहा घोर अन्धकार
कर रहा तम नित प्रहार
भयव्याधि मृत्यु लायी है
विपदा ये कैसी आयी है
संतप्त व्याकुल सृष्टि है
यह काल की कुदृष्टि है
मूर्छा का भीषण वेग है
'श्वास' फिरभी शेष है
विध्वंस व्यापक है यहाँ
विश्वास धीरज खो रहा
महामारी नर्तन कर रही
विक्षुब्ध जीवन हो रहा
आस अन्तिम अब तुम्हीं
अतुलबली तुम हो कहाँ
संग पर्वत आओ हनुमत
लाओ औषध अब यहाँ
लक्ष्मण कई रण में पड़े
हैं काल से सब लड़ रहे
तेज विक्रम याद करके
आओ मारुत वेग धरके
सन्ताप पीड़ा बढ़ रही
उत्पात क्रीड़ा चल रही
संकट के ये जो ग्रास हैं
तेरे राम के सब दास हैं
द्वंद्व में हो युद्ध सम्भव
बैरी सम्मुख आए जो
षड्यंत्र लेकिन घोर है
त्रास को दोहराए जो
निदान ना ही अस्त्र है
रोग दुख बस नित्य है
पीठ पीछे वार करता
ये शत्रु भी 'अदृश्य' है
पर कौन जो तुमसे बली?
तुम पर कृपा रघुनाथ की
सागर तुम्हीं ने माप ली
लंका भी तुमने राख़ की
रघुवीर के तुम भक्त बन्धु
जयकार फिर करके चलो
सुनो वायुपुत्र ! हे रामदूत!
संजीवनी फिर ले चलो !
संजीवनी फिर ले चलो !
(जया मिश्रा 'अन्जानी')