सुशांत सिंह राजपूत केस - टीआरपी के लिए न्यायिक व जांच प्रक्रिया का मीडिया ट्रायल व लोगों का चरित्रहन

punjabkesari.in Sunday, Sep 27, 2020 - 02:49 PM (IST)

जब से मुंबई में प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने 14 जून 2020 को आत्महत्या की है, तब से उनके परिवार व सभी चाहने वाले इस आत्महत्या की घटना की एक-एक सच्चाई जानना चाहते हैं, वो चाहते है कि इस मामले में अगर कुछ झोलझाल है तो वो सभी देशवासियों के सामने आये और दोषियों को जल्द से जल्द सजा मिले, हालांकि उनकी यह बात एकदम सही है। लेकिन जब से सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या की यह घटना घटित हुई है, तब से ही इस मामले का देश के विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के चैनलों में टीआरपी का उच्च स्तर हासिल करने के लिए जबरदस्त ढंग से चौबीस घंटे बिना किसी ठोस साक्ष्य व तथ्यों के आधार पर अपने चैनल की दुकानदारी चलाने के लिए जमकर उपयोग किया जा रहा है। भारत की अति जिग्यासु इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अपने टीआरपी के खेल के लिए कभी इस मामले में लोकप्रिय राजनेता आदित्य ठाकरे के एंगल को लेकर लाती है, तो कभी वह हाथ धोकर अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती व सुशांत के आसपास रहने वाले दोस्तों, स्टाफ आदि अन्य लोगों का चैनलों पर जमकर चरित्रहनन करके जबरदस्त ढंग से मीडिया ट्रायल कर देती है। सभी को तरह-तरह के नियम कायदे व कानून की बात बनाने वाले न्यूज चैनल हमेशा की तरह ही खुद नियम कायदों को ठेंगा दिखा कर केस का मीडिया ट्रायल करके न्यायिक व जांच की प्रक्रिया में लगे लोगों की मानसिक स्थिति पर हावी होने का दुस्साहस करने लगते हैं, वो यह जरा भी नहीं सोचते है कि चैनलों की टीआरपी के इस खेल में वो केस का लाईव टेलिकास्ट करने के जुनून में जाने-अनजाने कही ना कही सबूतों को सार्वजनिक करके उनसे छेड़छाड़ करके अपराधियों की मदद कर रहे है। आज न्यूज चैनल टीआरपी के लिए पीड़ित परिवार व अन्य संदेह के दायरे में आये लोगों और उन सभी के परिवार की भावनाओं से जमकर खिलवाड़ कर रहे ह़ैं। आज कुछ न्यूज चैनल अपनी दुकानदारी चलाने के लालच में रोजाना सुशांत सिंह केस में लोगों का जमकर चरित्रहनन कर रहे हैं, जो कि हमारे देश की न्यायिक व्यवस्था व निष्पक्ष जांच प्रक्रिया के लिए बिल्कुल भी उचित नहीं है।

हमारे देश में जिस समय कोरोना जैसी घातक महामारी चल रही है लोग रोजीरोटी के लिए बेहद परेशान हैं, लोगों के सामने समस्याओं का अंबार लगा हुआ है लेकिन अफसोस कोई भी न्यूज चैनल इस पर आसानी से कुछ भी बोलने के लिए तैयार नहीं है। परंतु सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद से इस मामले को लगातार चौबीस घंटे विभिन्न चैनलों पर दिखाया जा रहा है, हालांकि किसी भी मामले को दिखा कर सोये सिस्टम को जगाना तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन मामले के कानूनी पहलूओं का मीडिया ट्रायल खुलेआम सड़कों पर करके जांच को प्रभावित करना बहुत बडा अपराध है। आपको याद होगा कि 15/16 मई 2008 की रात को नोएडा में आरुषि तलवार की अपने ही घर पर हत्या हो गयी थी, जिस में पहले दिन तो नौकर हेमराज को हत्या कांड का आरोपी मानकर केस का बहुत ही तेजी व सनसनीखेज ढंग से मीडिया ट्रायल शुरू हुआ था। उस समय की याददाश्त पर अगर थोड़ा जोर डाला जाये, तो जिस हेमराज को हत्यारा बताया जा रहा था उस हेमराज की डेडबॉडी 17 मई 2008 को घर की छत पर मिली थी। उस समय भी इस दोहरे हत्याकांड के खुलासे को लेकर देश के आमजनमानस में गजब की उत्सुकता थी, जिसका जबरदस्त फायदा टीआरपी के खेल के लिए देश की मीडिया ने चौबीस घंटे मीडिया ट्रायल करके लिया था। उस समय भी आरुषि तलवार व हेमराज हत्याकांड के मामले को लेकर देश के इलेक्ट्रॉनिक चैनलों के द्वारा जमकर आरुषि के माता पिता डॉक्टर नुपुर तलवार व डॉक्टर राजेश तलवार के खिलाफ मीडिया ट्रायल किया गया था। हालात यह हो गये थे कि चैनलों के रिपोर्ट की रिपोर्टिंग और एंकरों की प्रस्तुति ऐसी थी कि जांच करने वाले लोग व न्यायालय भी प्रभावित हुए बिना ना रह सकें। जबकि इस मामले की जांच भी सीबीआई ने ही की थी और 29 दिसंबर 2010 में सीबीआई ने सभी लोगों को क्लीनचिट देते हुए तलवार दंपति पर संदेह जताते हुए मामले पर क्लोजर रिपोर्ट लगा दी थी।  न्यायालय में क्लोजर रिपोर्ट लगाने के बाद भी इस मामले का जमकर मीडिया ट्रायल होना लगातार जारी रहा था, जिसके चलते केस में 9 फरवरी 2011 के दिन न्यायालय ने सीबीआई की उस रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए कहा था कि तलवार दंपति ने दोनों का मर्डर किया और सबूत मिटाए हैं। 21 फरवरी 2011 को आरोपी तलवार दंपति ने न्यायालय के समन को खारिज करने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का रुख किया था। जहां पर 18 मार्च 2011 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने समन को रद्द करने की उनकी याचिका को खारिज करते हुए उनके खिलाफ जांच के आदेश दे दिए थे। 19 मार्च 2011 को तलवार दंपति ने इस मामले को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया था जहां पर उनके खिलाफ चल रही जांच पर स्टे लगा दिया था। लेकिन फिर भी टीआरपी के लिए लगातार इस केस का मीडिया ट्रायल चलता रहा। 10 अक्टूबर 2013 को इस मामले में आखिरी जिरह न्यायालय में शुरू हुई और 25 नवंबर 2013 को गाजियाबाद की स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने तलवार दंपति को इस केस में दोषी मानते हुए 26 नवंबर 2013 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। 21 जनवरी 2014 को तलवार दंपति ने सीबीआई अदालत के फैसले के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय का रुख किया था। जहां पर 12 अक्टूबर 2017 को सबूतों के अभाव में संदेह का लाभ देते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तलवार दंपति को बरी कर दिया था। 

इस केस में भी उस समय अधिकांश न्यूज चैनलों पर चल रहे मीडिया ट्रायल में लगातार एक स्वर में कहा गया था कि अपनी लाड़ली बेटी के हत्यारे खुद माँ बाप हैं। जिसके चलते अपनी लाड़ली इकलौती बेटी को खोने वाले माँ-बाप डॉक्टर नूपुर तलवार और डॉक्टर राजेश तलवार पर क्या बीती होगी इसका अंदाज लगाना संभव नहीं है, किसी भी चैनल ने टीआरपी के लिए माता-पिता के दर्द का ध्यान रखना आवश्यक नहीं समझा था। अपने दर्द को कलेजे में रखकर तलवार दंपति इस केस में लम्बे समय के लिए जेल भी चले गये थे। हालांकि बाद में उन दोनों को इलाहबाद उच्च न्यायालय से बरी किया गया था और आज तक भी देश की सबसे ताकतवर एजेंसी सीबीआई यह पता नहीं चला सकी है कि आरुषि व हेमराज का आखिरकार हत्यारा कौन था। लेकिन अफसोस एक पल में ही टीआरपी हासिल करने के लिए मामले की जांच को कही ना कही सनसनीखेज बनाकर प्रभावित करने वाली मीडिया व सार्वजनिक रूप से लोगों का आयेदिन चरित्रहनन करने वाली देश की बहुत प्रभावी व ताकतवर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने आजतक भी किसी शख्स से माफी नहीं मांगी हैं। लेकिन अब सुशांत सिंह राजपूत केस में चल रहे मीडिया ट्रायल ने आरुषि हत्याकांड के समय चल रहे बेतुके मीडिया ट्रायल की याद को एक बार फिर ताजा कर दिया। आज हमारे देश के हुक्मरानों को अब हर-हाल में यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मीडिया अपनी टीआरपी बढ़ाने के नाम पर केस की जांच को प्रभावित ना कर सकें और जब तक कोई व्यक्ति न्यायालय से दोषी करार ना हो जाये तब तक उसको अपराधी बताकर लोगों का सार्वजनिक रूप से टीवी पर चरित्रहनन होना बंद हो और देश में आयेदिन चलने वाले मीडिया ट्रायल का प्रभाव भविष्य में किसी भी जांच एजेंसी व न्यायालय के निर्णय पर न हो पाये। यही हम लोगों की तरफ से सुशांत सिंह राजपूत के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

(दीपक कुमार त्यागी)


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