महात्मा बुद्ध जी

punjabkesari.in Thursday, Apr 26, 2018 - 02:03 PM (IST)

अलग-अलग धर्म प्रमात्मा को मिलने के भिन्न-भिन्न मार्ग हैं। यह धर्म यहाँ मनुष्य को सत्य के साथ जोड़ते हैं,वहाँ उसके सच्यिार बनने में भी सम्पूर्ण अगुवाई करते हैं। इस अगुवाई के कारण कोई भी व्यक्ति अपने आप की पहचान करके जहाँ अपने जीवन को सार्थक बना सकता है वहाँ इलाही कृ पा का पात्र भी बन सकता है। यह पात्रता उसको लोगों के प्यार और सत्किार का भागीदार बना देती है। ऐसे ही प्यार तथा सत्किार के भागीदार हैं एशिया का उजाला करके जाने जाते महात्मा बुद्ध जी। महात्मा बुद्ध जी का जन्म 563 ईसा पूर्व में राजा शुद्धोधन तथा रानी महामाया के घर कपिलवस्तु (नेपाल की राजधानी) के नजदीक लुंबिनी नाम के स्थान पर हुआ। 

 

गौतम बुद्ध के जन्म के बारे में अलग-अलग विचारधाराएं प्रचलित है। एक विचारधारा (जो श्री लंका की परंपरा पर आधारित है) अनुसार बुद्ध को ईसवी की प्रारंभता से सवा छ: सौ वर्ष पहले पैदा हुआ माना जाता है। बोधी भाईचारे की ओर से बुद्ध का जन्म देसी महीने बैसाख की पूर्णिमा को मनाया जाता है। जो कि बुद्ध पूर्णिमा के नाम से पहचाना जाता है। जब महात्मा बुध कæ जन्म हुआ तब राज दरबार में बहुत खुशी मनाई गई। परन्तु इस खुशी की आयु ज्यादा समय न रही। एक हफ़ते के बाद बुद्ध की माता महामाया का देहांत हो गया। माता जी की मृत्यु के बाद उनका पालन-पोशण उनकी मौसी परजापती गौतमी ने किया। 

 

बाल अवस्था में बुद्ध को देखने के लिए एक आसित नामक जयोत्षि आया,जिसने उसके तेजस्वी पुरूष होने की भविष्यवाणी की। इस भविष्यवाणी के आधारित ही महात्मा बुद्ध क नाम सिद्धार्थ रखा गया। सिद्धार्थ जब थौड़ा बड़ा हुआ तो उसका मन उदास रहने लगा। उसकी उदासी को देखते हुए परिवार ने उसका विवाह करने क निर्णय ले लिया। इस निर्णय के अनुसार सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा नाम की लडक़ी से कर दिया गया। इन के घर एक बेटे कæ जन्म हुआ जिस का नाम राहुल रखा गया। पत्नी का साथ तथा पुत्र का मोह भी सिद्धार्थ का मन नहीं बदल सके। वह अब भी वैरागमई मिज़ाज में घूमता रहता था। परिवारक तथा सांसारिक खुशीयाँ भी उसको बंधन में नहीं डाल सकी। 

 

एक दिन जब सिद्धार्थ रथ पर बैठ कर महल से बाहर जा रहा था तो उसने एक बूढ़े आदमी को देखा जो बहुत कमजोर दिखाई दे रहा था। जब उसने अपने रथवान से इस प्राणी के बारे में पूछा तो उसने बताया कि ज्यादा उम्र के प्रभाव से सभी प्राणी ऐसे ही कमज़ोर हो जाते हैं और एक दिन खत्म हो जाते हैं। रथवान की इस बात से सिद्धार्थ के मन को बहुत चोट पहुँची। एक और स्थान पर सिद्धार्थ ने एक बीमार आदमी को देखा। तीसरी बार सिद्धार्थ ने एक लाश को देखा जिसको देखते ही वह उदासीन हो गया। इस उदासीनता के कारण उसको मौत सच और जीवन झूठ लगने लगा। एक दिन सिद्धार्थ सैर करने के लिए खेतों की और जा रहा था कि उसने किसानों को हल चलाते हुए देखा।

 

किसानों तथा बैलों,को खेतों में से कष्ट से गुज़रते देख कर उसका मन बहुत दु:खी हुआ। इस दु:खद अवस्था में सिद्धार्थ एक पेड़ के नीचे बैठ गया और उसकी समाधी लग गई। जब वह इस अवसथा से बाहर आया तो उसने अपना घर-बार त्यागने का मन बना लिया। घर-बार को त्याग के सिद्धार्थ ने अपने गुरू आलार कालाम द्वारा दरसाई हुई मंजि़ल तो प्राप्त कर ली,परन्तु उसके मन की संतुष्टि नहीं हुई,और वह वहाँ से आगे चल पड़ा। चलते- चलते जब सिद्धार्थ ने कुछ सफऱ किया तो उसकी मुलाकात आचार्य उर्दक रामपुत्र से हुई। उस आचार्य ने सिद्धार्थ को ‘न’ और निरसंकल्प अवस्था प्राप्त करने की शिक्षा दी। आचार्य की शिक्षा के अनुसार सिद्धार्थ ने वह अवस्था भी हासिल कर ली लेकिन इस अवस्था में भी उसको मुक्ति का मार्ग दिखाई नहीं दिया। 

 

अंत उसने उर्दक का डेरा भी छौड़ दिया। इन दोनों अवस्थाओं में सिद्धार्थ को मोक्ष की प्राप्ति नज़र नहीं आ रही थी। अतृप्ति मन को लेकर वह गया के पास उरवेला नदी के किनारे पहुँच गया ,क्योंकि उसके जीवन का लक्ष्य तो दु:खों से राहत प्राप्त करना था। इस नदीं के किनारे बैठ कर उसने अपने साथिओं समेत 6 साल कठिन तपस्या की। इस कठिन तपस्या ने सिद्धार्थ के शरीर को तिनके जैसे कर दिया। जब इस कठिन साधना से उसका मन उचाट होने लगा तो एक दिन मध्य वर्ग की एक लडक़ी सुजाता ने उसे खाने के लिए खीर भेंट की। जब सिद्धार्थ ने वह खीर खाई तब उसने मध्य मार्गी जीवन-जाच अपनाने का निर्णय ले लिया। यह सोच मझले राह की हिमायती है जिस के उपर चल कर अपने आप को दुनियावी रंग-तमाशे से दूर रखना होता है और कठोर साधनाओं से भी प्रहेज़ करना होता है। 

 

वैसाख की पूर्णमासी के दिन सिद्धार्थ परम-ज्ञान की प्राप्ति के लिए पीपल (बोधी) पेड़ के नीचे बैठ गया। उसी दिन शाम को मानवी कामनाओं और आत्मिक शक्तियों के संघर्ष का समय आ गया। मानवी कामनायें मार (अज्ञान) द्वारा और आत्मिक शक्तियां बोध (ज्ञान) द्वारा प्रकट हुई। सिद्धार्थ एक-एक करके धयान की चारे मंजिलां चढ़ता गया। ज्ञान की आखिरी मंजि़ल शुद्ध चेतना और समतुलित प्रवृत्ति की सूचक है।संपूर्णता की इस अवस्था में ही सिद्धार्थ ने वह सच्चाईयाँ देखी जिन्हों ने उसके भीतर जागृति और ज्ञान पैदा कर दिया। ज्ञान की इस अवस्था की प्राप्ति के बाद ही सिद्धार्थ महात्मा बुद्ध बन गया।

 

रमेश बग्गा चोहला

9463132719


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