हिमालय की तरह ही गौतम बुद्ध अतुलनीय हैं

punjabkesari.in Wednesday, May 02, 2018 - 03:00 PM (IST)

जिस प्रकार तीर्थ यात्रा करने से नहीं, बल्कि उसका मर्म जीवन में उतारने से वह फलदायी होती है, उसी प्रकार बुद्ध के उपदेशों को जानने मात्र से नहीं, जीवन में उनका अनुसरण करने से ही सच्ची बोध-यात्रा यानि आत्मिक उन्नति संभव होती है। बुद्ध पूर्णिमा पर अपने उक्त उदगार व्यक्त करते हुए समाजसेवी एवं करनाल बाॅर संघ के अधिवक्ता शक्ति सिंह ने कहाकि हिमालय की तरह ही गौतम बुद्ध अतुलनीय हैं। बुद्ध के बोल अत्यंत मीठे हैं। उनके वचन आमजन के लिए ग्राहय हैं। उनके द्वारा की गई धम्म गाथाओं में जीवन के बहुआयामी सत्य प्रतिबिंबत होते हे। प्रत्येक धम्म गाथा एक कथा कहती है और ज्रिदगी की राह दिखाती है। बुद्ध के कहने का ढंग ही कुछ और है। जिसने एक बार भी उनकी बातों को सुना, वही उनसे बंध गया। जिन लोगों पर भी उनकी दरिष्टी पडी, वे भटकने से बच गए। जिन लोगों को उनके बुद्धत्व की थोडी सी झलक मिल गई।, उनका समूचा जीवन रूपांतरित हो गया। ‘अप्प दीपो भव‘ बुद्ध का प्रसिद्ध वचन है। इसका तात्पर्य है कि अपने दीपक स्वयं बनकर अपने अंदर प्रकाश फैलाने का प्रयत्न आप स्वयं करें। बुद्ध के उपदेश गहरे होने के बावजूद इतने सरल हैं कि विद्वान और अशिक्षित दोनों को उसमें अपने योग्य काम की बातें मिल जाती हैं। उनके सभी उपदेश संसार के सभी लोगों को निम्न स्तर की अवस्था से निकालकर उच्च अवस्था को प्राप्त करने के उददेश्य से स्थापित किए गए हैं। शक्ति सिंह एडवोकेट ने कहाकि बुद्ध पूर्णिमा एक ऐसा पावन अवसर है जब गौतम नामक राजपुरूष के काया-सरोवर में बुद्धत्व का सुगंधित कमल खिला और उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। वैषाख माह की यह पूर्णिमा वास्तव में एक बुद्ध पुरूष को जन्म देकर निहाल हो गई। मनुष्य बुद्ध की गाथाओं का बखान तो बडे चाव से करते हैं, पर बुद्ध के बुद्धत्व के रहस्य को समझने का प्रयास नहीं करते। इसी वजह से एक भ्रमपूर्ण मान्यता आमजनों में फैली हुई है। सदकर्म करने की बजाए तीर्थ-यात्राओं के द्वारा हम ईश्वर की प्राप्ति करना चाहते हैं। हमें समझना चाहिए कि केवल अलग-अलग तीर्थस्थानों के दर्शन कर लेने भर से हम पाप मुक्त नहीं हो जाएंगे। इसके लिए स्वयं को गौतम से बुद्धत्व तक का, नर से नारायण तक का सफर तय करना होगा। केवल गंगा बोल देने से शरीर के मैल धुल नहीं जाएंगे। गंगा में डुबकी लगाकर खूब रगडकर हमें नहाना भी होगा। पापों के शमन के लिए तीर्थ गरिमा को बनाए रखना होगा। तार्थ की प्रेरणाओं को समझना होगा। उन्हें जीवन में उतारना होगा। बोध-यात्रा करनी होगी। गौतम बुद्ध ने यही यही संदेश तो दिया है।

 

शक्ति सिंह

9416469151
 
 


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