कारगिल विजय दिवस किसी प्रेरणा दिवस से कम नहीं

punjabkesari.in Thursday, Jul 25, 2019 - 03:54 PM (IST)

नेशनल डेस्कः आज कारगिल युद्ध की 20वीं वर्षगांठ है। हर साल 26 जुलाई को देश कारगिल युद्ध को विजय दिवस के रूप में मनाता आया है। 1971के युद्ध में मुंह की खाने के बाद पाकिस्तान की परोक्ष रूप से भारत पर हमला करने की कभी हिम्मत नहीं हुई लेकिन छद्म रूप से आतंकवाद के रास्ते पाकिस्तान ने भारत पर अपरोक्ष रूप से हमले लगातार जारी रखे। ऐसा ही छद्म दुस्साहस पाकिस्तान ने कारगिल में 1999 में किया था। 18 हजार फीट की ऊंचाई पर कारगिल का यह युद्ध तकरीबन दो माह तक चला जिसमें 527 से ज्यादा वीर सैनिकों की शहादत देश को देनी पड़ी 1300 से ज्यादा सैनिक इस जंग में घायल हुए थे। पाकिस्तान के लगभग 1000 से 1200 सैनिकों की इस जंग में मौत हुई थी। इस युद्ध में भारतीय सेना ने अदम्य साहस और जांबाजी से दुश्मन को जिस तरह खदेड़ा उस पर हर देशवासी को गर्व है। हिमाचल प्रदेश को वीर भूमि के नाम से जाना जाता है। इसी वीरता का परिचय देते हुए प्रदेश से 52 वीर सैनिकों ने भी इस युद्ध में शहादत का जाम पिया। इन वीर सैनिकों में से कुछेक नाम ऐसे भी हैं जिनकी वीर गाथा आज भी हर प्रदेश वासी की जुबान पर है।
 

  • सबसे पहले बात करें कैप्टन विक्रम बत्रा की, जब वह पहली जून 1999 को कारगिल युद्ध के लिए गए तो उनके कंधो पर राष्ट्रीय श्रीनगर-लेह मार्ग के बिलकुल ठीक ऊपर महत्वपूर्ण चोटी 5140 को दुश्मन फौज से मुक्त करवाने की जिम्मेदारी थी। यह क्षेत्र बेहद दुर्गम था यह मात्र एक चोटी नहीं थी यह करोड़ों देशवासियों के सम्मान की चोटी थी जिसे विक्रम बत्रा ने अपनी व अपने साथियों की वीरता के दम पर 20 जून 1999 को लगभग 3 बजकर 30 मिनट पर अपने कब्जे में ले लिया। उनका रेडियो से विजयी उद्घोष 'यह दिल मांगे मोर....जैसे ही देश वासियों को सुनाई दिया मानों हर एक भारतीय की नसों में ऐसा जज्बा भर गया जैसे हर एक की जुबान भी यह दिल मांगे मोर... ही कर रही थी। अगला पड़ाव चोटी 4875 का था यह अभियान भी विक्रम बत्रा की ही अगुवाई में शुरू हुआ। विक्रम बत्रा बहुत से पाकिस्तानी सैनिकों को मारते हुए आगे बढ़े लेकिन इस बीच वह अपने घायल साथी लेफ्टिनेंट नवीन को बचाने के लिए बंकर से बाहर निकल आए। विक्रम बत्रा एक वीर योद्धा तो थे ही साथ ही मानवीय संवेदनाओं से लबरेज इंसान भी थे इसका अंदाजा इसी बात से चलता है कि जब अपनी टीम के एक सूबेदार के रोकने पर उन्होंने कहा कि तुम बीबी- बच्चों वाले हो यहीं रुको बाहर मैं जाता हूं। घायल लेफ्टिनेंट नवीन को बचाते-बचाते जब एक गोली विक्रम बत्रा के सीने को लगी तो भारत मां के इस लाल ने भारत माता की जय कहते हुए अंतिम सांस ली, इससे आहत सभी सैनिक गोलियों की परवाह किए बिना दुश्मन पर टूट पड़े और चोटी 4875 को आखिरकार फतह किया। इस वीरता के चलते 15 अगस्त 1999 को कैप्टन विक्रम बत्रा को परमवीर चक्र से नवाजा गया।
  • प्रदेश के बिलासपुर जिले से परमवीर चक्र विजेता संजय कुमार की वीर गाथा भी इसी तरह की है संजय अपने 11 साथियों के साथ कारगिल में मस्को वैली प्वाइंट 4875 के फ्लैट टॉप पर तैनात थे। पाकिस्तानी सैनिकों ने ऊंचाई का फायदा उठाते हुए टीम के 8 सैनिकों को घायल कर दिया जबकि 2 शहीद हो गए। संजय कुमार को 3 गोलियां लगने व अपनी राइफल में गोलियां खत्म होने के बावजूद यह साहसी योद्धा कहां मानने वाला था घायल अवस्था में भी दुश्मन के बंकर में घुसकर उनकी ही बंदूक छीन कर दुश्मन के 3 सैनिकों को मार कर दूसरे मुख्य बंकर पर कब्जा कर लिया था। इस अदम्य साहस के लिए संजय को भी परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
  • प्रदेश के कुल्लू जिला आनी से एक और वीर सैनिक डोला राम की वीरता की गाथा भी देश प्रेम के लिए प्रेरित करती है। डोला राम ने अपने 2 साथियों के साथ बिना हथियारों के सियाचिन ग्लेशियर की चोटी पर बंकर में छिपे 17 घुसपैठियों को मौत की नींद सुला दिया। डोला राम खुद शहीद होकर भी देश के लिए अमर हो गए।
  • कारगिल युद्ध में जब तक ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर के नाम का जिक्र न हो तब तक यह विजयी गाथा अधूरी है। प्रदेश के कुल्लू व मंडी जिला की सीमा पर स्थित गांव नंगवाई से संबंध रखने वाले ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर के नेतृत्व में सैन्य टीम ने तोलोलिंग चोटी पर कब्जा किया तो किसी ने सोचा नहीं था कि यह पड़ाव इस युद्ध का टर्निंग प्वाइंट साबित होगा।
  • 18 ग्रेनेडियर्ज के कमांडिंग अॉफिसर कर्नल खुशहाल ठाकुर की इस कमान में सबसे अधिक सैनिकों ने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। इतनी बड़ी संख्या में नुकसान का सीधा कारण दुश्मन के ऊंचाई पर बैठ कर वार करना था। इस नुकसान से स्तब्ध कर्नल खुशहाल ठाकुर ने खुद कमान संभाली और विजयी रथ को मंजिल तक पहुंचा दिया।
  • 13 जून का दिन था जब 18 ग्रेनेडियर्ज ने 2 राजपूताना राइफल्स के साथ मिलकर तोलोलिंग पर कब्जा किया। इस सफलता की भारी कीमत घायल लैफ्टिनैंट कर्नल विश्वनाथन ने कर्नल खुशहाल ठाकुर की गोद में अपने प्राण त्याग कर चुकाई थी। कर्नल खुशहाल ठाकुर ने अपनी यूनिट के साथ पहले तोलोलिंग व फिर सबसे ऊंची चोटी टाइगर हिल पर विजय पताका फहरा कर देश भर में अपने नाम का डंका बजवा दिया। भारतीय सैन्य इतिहास में रिकार्ड बनाते हुआ इस विजय अभियान के लिए भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ने 18 ग्रेनेडियर्ज को 52 वीरता सम्मानों से सम्मानित किया।
  • इसी कमान के ग्रेनेडियर योगेंद्र यादव को मात्र 19 वर्ष की आयु में परमवीर चक्र से नवाजा गया। यादव को परमवीर चक्र की घोषणा मरणोपरांत की गई थी लेकिन करोड़ों भारतीयों की दुआओं से अस्पताल में भर्ती घायल योगेंद्र यादव मौत को चकमा दे कर वापस लौट आए। विजय दिवस पर प्रदेश के एक और योद्धा की शहादत को यदि हम आज याद न कर पाए तो विजय दिवस अपने आप में अधूरा होगा। कैप्टन सौरभ कालिया को कोई नहीं भुला सकता । हिमाचल के इस सपूत ने कारगिल युद्ध शुरू होने से पहले ही अपनी जान देश के लिए कुर्बान कर दी।
  • 5 मई 1999 का ही वह दिन था जब कैप्टन कालिया लद्दाख की एक पोस्ट पर अपने 5 अन्य साथियों के साथ गश्त कर रहे थे तो उस समय पाकिस्तानी फौज ने इन्हें बंदी बना लिया था। 20 दिनों तक कैद में रखने के साथ इनके साथ तरह-तरह से अत्याचार किए गए। उनके शरीर में जलती सिगरेट दागी गई, कानों में लोहे की गरम सलाखें डाल दी, शारीरिक यातनाएं दी गई। उनके शव को बुरी तरह से क्षत-विक्षत कर दिया, पहचान मिटाने के लिए चेहरे व शरीर पर धारदार हथियारों से कई बार प्रहार किया गया। कई निजी अंग काट दिए थे। अटॉप्सी रिपोर्ट में इन सब अत्याचारों का पता चलने पर भारत की तरफ से विरोध भी दर्ज कराया गया लेकिन पाकिस्तान ने इसे कभी स्वीकार नहीं किया।
  • कैप्टन कालिया के माता-पिता आज 20 साल बाद भी शहीद बेटे के लिए न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं कभी किसी मंच पर तो कभी सर्वोच्च न्यायालय में जाकर। देश के लिए अपनी संतान द्वारा शहादत देना हर किसी माता-पिता के लिए गर्व की बात होती है लेकिन जिस तरह कैप्टन कालिया से अमानवीय व्यवहार हुआ वह किसी के भी सीने को छलनी कर सकता है। पिता एनके कालिया का यह कहना की भारतीय सरकारों द्वारा पाकिस्तान के समक्ष इस मुद्दे को उठाने में संवेदनहीनता बरती गई उनके अंदर शहीद बेटे के साथ हुए अमानवीय व्यवहार के दर्द को बयां करता है।

आज कारगिल युद्ध को 20 वर्ष पूरे हो गए हैं। यह बेहद गौरव की बात है कि देश इस युद्ध में शहीद हुए वीर सैनिकों को विजय दिवस मनाकर याद कर रहा है। देश का सैनिक जब सरहद पर होता है तो मातृभूमि ही उसके लिए उसका घर परिवार आदि सबकुछ होता है, इसकी हिफाज़त के लिए वह अपने प्राणों तक का बलिदान दे देता है। विजय दिवस एक दिवस मात्र ही नहीं यह सभी देशवासियों के लिए प्रेरणा दिवस भी है।
राजेश वर्मा (बलद्वाड़ा-मंडी)


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