भारत माता के अमर प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी

punjabkesari.in Tuesday, Jan 24, 2017 - 02:52 PM (IST)

हिंदुस्तान के सवासौ करोड़ देशवासियों को एक ऐसे व्यक्तित्व के महान जीवन की याद हमेशा अपने जेहन में तरोताजा रखनी चाहिए जो भारत की कुख्यात एवं अवसरवादी कही जाने वाली राजनीती के विभिन आयामों से ऊपर उठकर देश के लिए राष्ट्रकर्प्रतिभा रखता था वह भारत माता के महान सपूत भूत पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी थे। ऐसा विशाल व्यक्तित्व,जो हमे  एक राजनीतिज्ञ, किसान, प्रबंधक, नैतिकता के प्रतीक, ईमानदारी, सादगी, कठिन परिश्रम, त्याग-तपस्या एवं संघर्षमय जीवन की याद दिलाता है। गांधी जी की जन्मतिथि 2 अक्टूबर थी तो वही दूसरे गांधीवादी ने तालाल बहादुर शास्त्री भी 2 अक्टूबर को वर्ष 1904 को जन्मे थे। बचपन में भयंकर गरीबी देखकर पले बढ़े शास्त्री जी बहुमुखी प्रतिभा के धनि थे। पढ़ाई का जज्बा इतना कि वे कई मील की दूरी नंगे पांव से ही तय कर स्कूल जाते थे। उनके पास नदी पार करने के लिए पैसे नहीं होते थे तो वह तैर कर गंगा नदी पार करते और स्कूल जाते थे।

कायस्थ परिवार में जन्में लाल बहादुर ने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि हासिल की और अपने उपनाम श्री वास्तव को हटाकर शास्त्री कर लिया। गांधी जी के आहवान पर असह योग आंदोलन में शामिल होने के लिए सोलह वर्ष की अल्पायु में पढ़ाई छोड़ दी और कूदपड़े स्वतंत्रता की लड़ाई में। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी जब वह जेल में थे तब उन्हें बताया गया कि उनकी पुत्री गंभीर रूप से बीमार है इसके लिए उन्होंने हुकूमत से 15 दिन की जमानत की इजाजत मांगी और वह इस शर्त पर मंजूरकर ली गई की वे ब्रिटेन विरोधी गतिविधयों में शामिल नही होंगे। जब तक वह घर पहुंच पाते उनकी बेटी मर चुकी थी वह अपनी बेटी के संस्कार और बाकि क्रियाक्रम करके मात्र 3 दिन में जेल वापिस लोट आए जबकि उनके पास 12 दिन की छूट बाकि थी। उन्होंने ब्रितानी अधिकारियों के सामने ऐसी ईमानदारी का परिचय दिया कि वे भी मंत्रमुग्ध हुए बिना नही रह सके।

आज भी जब बारी दहेज की आती है तो बड़े बड़ों के हाथ ललचा जाते है लोग द्वारा विदेशी महंगी गाड़िया दहेज में लेना एक आदत सी बन गया है ओर एक शास्त्री जी थे जिन्होंने दहेज में अपने ससुर जी से चरखा मांगा था ताकि स्वदेशी को बढ़ावा दे सके। सन 1947 में देश आजाद होने के बाद शास्त्री जी को उत्तर प्रदेश पुलिस एवं परिवहन मंत्री भी बनाया गया। उन्होने आजाद भारत की केंद्र सरकार में भी कई मंत्रालय संभाले। रेल मंत्री रहते उन्होंने रेलवे में कई महत्वपूर्ण सुधार भी किये ,रेलवे का तीस रादर्जा शास्त्री जी की देन है। जब दक्षिण भा रत में हुई रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने इस्तीफा दिया तो वो कई मायनो में अपनी छाप देश की राजनीत पर छोड़ गया उसकी प्रासंगिकता आज भी हमारे देश के पद लोलुपनेता ओ के मुह पर तमाचा है। जब वे हिंदुस्तान के गृहमंत्री बने तब भी उनके पास अपना घर तक नही था। वरिष्ठ पत्रकार कुल दी पनैयर अपनी पुस्तक बियॉन्डडी लाइन्स में बताते है कि शास्त्री जी परंपरा वादी बहुत थे और अपनी पत्नी ललित शास्त्री को स्नेह पुर्वक अम्मा कहकर बुलाते थे।

पंडित नेहरू कास्वर्ग वास हो जाने के बाद जब बात भारत का नया प्रधानमंत्री चुनने की आयी तो शास्त्री जी ने एक बार भी उतावला पनन ही दिखाया और वे आमसहमति बना करचलने के पक्ष में थे, शुरू में तो उन्होंने जय प्रकाश नारायण और इंदिरा जी में से किसी एक को चुनने का प्रस्ताव मोरार जी देसाई के सामने रख दिया था खैर अंत में जीत शास्त्री जी की हुई क्यो कि तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष के काम राज इसके लिए कांग्रेस में आम राय बना चुके थे। कांग्रेस का ख्यात सिंडिकेट समूह उन्हें प्रधानमंत्री के तौर पर रबरस्टाम्प कीतरह इस्तेमाल करना कह रहा था परंतु उन्होंने ऐसा होने नही दिया। जब वो प्रधानमंत्री बने तब देश खाद्यान की कमी से जूझ रहा था हमे खाद्यान के लिए अमेरिका पर निर्भर रहना पड़ता था और वहां से सुअरो को दिया जाने वाला लाल गेहू (पीएल 480 का आयात करना पड़ता था भारत पाकिस्तान युद्ध 1965 के समय हमारा देश सूखे की चपेट में था इतने कठिन हालात में भी शास्त्री जी अमेरिका जैसे देशो के आगे झुके नही।और देशवासियो से सप्ताह में एक दिन उपवास रखने की अपील की। खुद भीअपने खाने में कटौती कर दी।

उनकी अपील  का असर हम इस बात से समझ सकते है की बिहार राज्य के पिछड़े और दूरदराज के गांव के लोग भी उपवास रख रहे थे यानि देश का हर वर्ग अपना योग दान दे रहाथा। शास्त्री जी ने प्रधानमंत्री आवास मेंहल चलाकर खेती शुरू कर दीथी। यही नही खाद्यान की समस्या से छुटकारा पाने के लिए उन्होंने हरित क्रांति जैसे दूरगामी योजना को शुरू किया जिसका परिणाम हम आज देख रहे है की हमारा देश आत्म निर्भरता की राह पर है।

 

वो गांधी जी के भारतीय ग्रामीण आत्म निर्भरता केसिद्धान्त के बड़े पक्ष धर थे। सफेद क्रांतिया निदुग्ध की हर घर तक उपलब्धता का लक्ष्य भी उनकी दूरगामी सोच थी। उन्होंने भारत पाकिस्तान युद्धको जिस तरह से भारत के पक्ष में किया वह भी उनकी प्रबंधन शक्तका उदाहरण है,19 62 भारत चीन युद्ध के बाद भारत की सेना का मनोबल टूट चूका था और तीन साल बाद पाकिस्तान ने भारत के कश्मीर को कब्जाने के लिए घुस पैठिये और अपनी सेना भेजनी शुरू कर दी।पाकिस्तान प्रायोजित लडाके श्री नगर से लद्धाख जाने वाली आपूर्ति लाइन को इससे पहले की तोड़ पाते, शास्त्री जी ने बहुत ही साहस पूर्ण कदम उठाते हुए सेना को दूसरे फ्रंटसे अंतरराष्ट्रीय सीमापार कर पाकिस्तान पर हमला करने के आदेश जारी कर दिए।पाकिस्तान के सर्वेसर्वा अयूबखान आग बबूला हो उठे क्योकि उनको दूरदूर तक गुमान नही था कि भारत ऐसा भी कोई कदम उठा सकता है।

खैर अब लड़ाई भयंकर रूप धारण कर चुकी थी दोनों तरफ से भारी नुकसान हुआ, पाकिस्तान की सेना को इसकी भारी की मत चुकानी पड़ी,लगभग सत्रह दिन चले इस युद्ध को अंतरराष्ट्रीय दवाब के चलते रोक दिया गया I भारत ने पाकिस्तान की लगभग 450 वर्ग मील और पाकिस्तान ने भारत की 200 वर्ग मील भूमि पर कब्ज़ा कर लिया, परंतु उससे भी महतवपूर्ण बात यह थी की भारत ने सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हाजीपीर और तिथवाल सेक्टर को अपने नियंत्रण में लिया था युद्ध पश्चात समझौता करने के लिए सोवियत   प्रधानमंत्री अलेक्सेई को सिगिन ने शास्त्री जी और अयूबखान को ताशकंद आने का न्योता दिया जिसे बाद में हम ताशकंद घोषणा पत्र के नाम से जानते है। वही पर भारत लौटने से एक दिन पहले10 जनवरी को मध्यरात्रि  2 बजे शास्त्री जी का हृदय गति रुकने से निधन हो गया।ज्यो ही यह खबर भारत पहुची।

जंगल की आग की तरह फ़ैल गयी, जिसने भी सुना अवाक्रह गया। उनकी अचान क मौत के बाद बहुत से लोगो ने उनकी हत्या किए जाने का शकज ताया।और बहुत सी बाते इस और इशारा भी करती है क्योकि न तो उनके पार्थिव शरीर का सोवियतरूस में और नही भारत में पोस्टमॉर्टम कराया गया। उनकी पत्नी बताती है कि जब शास्त्री जी काशव उन्होंने देखा तो वह नीला पड़ा हुआ था और उनके शरीर पर कट के निशान बने हुए थे जो इस और इशारा करता है कि उन्हें जहर दिया गया था यह सब एक बड़े षड़यंत्र की ओर इशारा करता है इस की स्वतंत्र एजेंसी द्वारा जाँच कराई जानी चाहिए। पता नही आज से 51 सालपहले 11 जनवरी 1966 के दिन ताशकंत में वे कि सषड़यंत्र का शिकार बन गए जिसका परिणाम हमारा देश आज भी याद करके ठग सा महसूस करता है।

यक़ीन हमने उस दिन देश का सबसे बड़ा हितेषी और उदार आदमी खो दिया था। उन्होंने अपने जीवन में फर्श सेअर्श तक पहुंच कर सादगी का जीवन व्यतीत करते हुए ऐसी मिसाल कायम की थी जिसका आज कोई सानी नही है उनके पुत्र सुनील शास्त्री अपनी पुस्तक में लिखते हैकि देश के सबसे ऊँचे पद पर बैठकर भी उन्होंने कभी उस पद का अपने निजीहित के लिए दुरूपयोगनही किया। जब वे अपनी सरकारी गाड़ी को किसी निजी कार्य के लिए इस्तेमाल करते थे तो उसका पैट्रॉल आदिका खर्च अपनी जेब से भरते थे। ऐसे सादा जीवन उच्चविचार वाली हस्तिया इतिहास में बहुत काम देखने को मिलती है। हम आज उस  धरती माँ के लाल को दिल से श्रद्धांजलि अर्पित करते है।  

     
                                                                                                                                                          साहिल कुमार


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