बढ़ती अनुशासनहीनता और क्रोध – शिक्षण एवं राष्ट्र के लिए एक चुनौती

punjabkesari.in Friday, Dec 15, 2017 - 03:36 PM (IST)

भारतीय संस्कृति में गुरु और शिष्य का अटूट संबंध रहा है। गुरु को ब्रह्मा ,विष्णु और महेश के समान दर्ज़ा दिया गया है। अज्ञान को नष्ट करने वाला जो ब्रह्म रूपी प्रकाश है , वह गुरु है। प्राचीन काल से आश्रमों में गुरु शिष्य परंपरा का निर्वाह होता रहा है। प्राचीन काल मेंगुरु शिष्य के संबंधों का आधार था ,गुरु का ज्ञान , मौलिकता और नैतिक बल , उनका शिष्यों के प्रति स्नेह भाव तथा ज्ञान बाँटने का निस्वार्थ भाव। शिष्यों में गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा होती थी , प्रिं:डॉ मोहन लाल शर्मा गुरु की क्षमता में पूर्ण विश्वासतथा गुरु के प्रति समर्पण एवं आज्ञाकारी होना भी एक भाव था।

 

अनुशासन शिष्यों का एक महत्त्वपूर्ण गुण माना गया है। अनुशासन के बिना शिष्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती। पहले शिष्य सहनशील ,गुरु का सम्मान करने वाला एवं आज्ञाकारी होता था। उन्हीं शिष्यों में एकलव्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है जिसने अपने गुरु द्रोणाचार्य की आज्ञा का पालन करते हुए अपने अँगूठे को काटकर गुरु दक्षिणा के रूप में दे दिया था। प्रत्येक भारतवासी प्राचीन गुरु शिष्य परंपरा आज भी देखना चाहता है। आधुनिक युग में गुरु शिष्य के संबंधों में बड़ी तेजी से बदलाव आ रहे हैं। आज के भौतिकवादी समाज में ज्ञान से अधिक धन को महत्त्व दिया जाने लगा है , अत: आज अध्यापन भी निस्वार्थ नहीं रह गया है। वह एक व्यवसाय के रूप में नजर आता है।

 

छात्र और शिक्षक का संबंध भी एक उपभोक्ता ( ग्राहक ) और सेवा प्रदाता का होता जा रहा है। इसमें शिष्यों की गुरुओं के प्रति अगाध श्रद्धा और गुरुओं का छात्रों के प्रति स्नेह और सरंक्षक का भाव लुप्त होता जा रहा है। छात्रों में बढ़ती अनुशासनहीनता एवं क्रोध का कारण घर के संस्कार , घर एवं स्कूल का वातावरण , गलत संगति, नैतिक मूल्यों का पतन ,धैर्य की कमी , शांत स्वभाव का न होना एवं आधुनिक शिक्षा प्रणाली है। आज विद्यार्थी स्कूल के नियमों का पालन दृढ़ता से नहीं करते। आज छात्र ऐशो आराम व सुखमय जीवन जीना चाहते हैं। छात्र आधुनिक समय में विद्यालय के लिए ग्राहक हैं ,निजी एवं प्राइवेट स्कूल उनसे ही चलते हैं।

 

अध्यापकों द्वारा उन्हें अच्छे के लिए डाँटना भी उन्हें बुरा लगता है और वे बहस करने लग जाते हैं। कुछ अभिभावक भी अपने बच्चों का पक्ष लेकर उन्हें बिगाड़ रहें हैं। छात्रों में नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है। माँ को बच्चों का पहला गुरु माना जाता है। प्रसिद्ध चिन्तक अरस्तु ने कहा था कि आप मुझे सौ अच्छी माताएँ दें तो में तुम्हें अच्छा राष्ट्र दूँगा। माँ के द्वारा दिए गए अच्छे संस्कार ही बच्चों को संस्कारवान बनाते हैं।

 

आज की शिक्षा पद्धति से भी छात्र तनाव में आ रहे हैं। यह तनाव युक्त जीवन शैली छात्रों में प्रतिशोध और हिंसक भावना की आदत पैदा करने लगी है। आजकल अभिभावक भी बच्चों पर पढ़ाई और कैरियर का अनावश्यक दबाव बनाते हैं। वे यह समझना ही नहीं चाहते कि प्रत्येक बच्चे की बुद्धि का स्तर अलग –अलग होता है जिसके कारण हर छात्र प्रथम नहीं आ सकता। बढ़ते मानसिक तनाव , संस्कारों की कमी एवं नकारात्मक सोच के कारण छात्रों द्वारा अध्यापकों का नाम निकालना ,उनके मन में पनप रहे आक्रोश को प्रकट करता है।

 

अभिभावकों की अपने बच्चों से बहुत अधिक अपेक्षा करना,उन्हें अधिक समय न देना ,उनकी ज़रूरतें पूरी न करना भी छात्रों में असंतोष को बढ़ावा देता है। कुछ अभिभावक धन उपार्जन के चक्कर में अपने बच्चों की ओर ध्यान नहीं दे पाते और बच्चे निराशा और कुंठा का शिकार हो जाते हैं और वे स्कूल ,समाज और माँ – बाप के लिए घातक बन जाते हैं।

 

बच्चों के क्रोध एवं उनकी अनुशासनहीनता को समझने के लिए गहन अध्ययन एवं मंथन की आवश्यकता है। आधुनिक समय में प्रत्येक विद्यालय में काउंसलर के पदों का होना अति आवश्यक है। काउंसलर शिक्षक और छात्र के बीच पुल का काम करते हैं। वे छात्रों का मार्गदर्शन करते हैं , कैरियर के बारे में रास्ता दिखाते हैं। वे छात्रों की अनुशासनहीनता और क्रोध को मनोवैज्ञानिक तरीके से दूर करते हैं। अत: विद्यालयों में सप्ताह में एक – एक कालांश (पीरियड ) छात्रों को अवश्य दिया जाना चाहिए। जिन छात्रों का पढने में मन नहीं लगता काउंसलर उनका भी मार्ग दर्शन करते हैं।

 

आज के भौतिकवादी युग में हम बच्चों को उचित समय नहीं दे पाते। उनकी पूर्ति पैसे से करने का प्रयास करते हैं। यही बात उनकी अपराध प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है। माता –पिता के साथ बिताए गए समय की पूर्ति किसी भी वस्तु से नहीं हो सकती। अध्यापकों को भी छात्रों के सम्मुख एक उदाहरण बनने की ज़रूरत है। अभिभावक अपने बच्चों में अच्छे संस्कार पैदा करें , अध्यापक उनके व्यक्तित्व का निर्माण करें एवं सरकार एक अच्छी शिक्षा प्रणाली विकसित करे। अभिभावक ,अध्यापक एवं सरकार , ये तीनों मिलकर छात्रों में बढ़ती अनुशासनहीनता एवं क्रोध को मिटाकर उन्हें सत्य और अहिंसा के मार्ग की ओर अग्रसर कर सकते हैं।

 

डॉ मोहन लाल शर्मा


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